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पूर्वोत्तर में हिंसा और आंतरिक सुरक्षा

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन)

संदर्भ 

भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, जहाँ कई जातीय समूह, भाषाएँ, पहचान एवं परंपराएँ सद्भावनापूर्वक सह-अस्तित्व में हैं। हालाँकि, इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में जातीय संघर्षों और सांप्रदायिक हिंसा के अनेक उदहारण सामने आए है। जातीयता की जटिलताओं एवं अंतर-सामुदायिक संघर्षों के इतिहास ने कभी-कभी हिंसा में योगदान दिया है, जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में व्यापक शांति व आंतरिक सुरक्षा के लिए विभिन्न चुनौतियाँ पैदा हुई हैं। मणिपुर में जारी संघर्ष इसका उदाहरण है।  

हालिया घटनाक्रम 

  • मणिपुर में डेढ़ वर्ष से अधिक समय से हिंसा जारी है। इसमें बंदूकों, बमों, मिसाइल लांचर और हाईटेक ड्रोन का प्रयोग किया जा रहा है। यह अत्यंत घातक संकेत है।   
  • हालिया ड्रोन हमले में अमेरिका, चीन एवं म्यांमार जैसे देशों से संबंध रखने वाले ‘विदेशी तत्वों’ के शामिल होने की भी आशंका है।   
  • हालिया हिंसात्मक गतिविधियों में कुकी विद्रोहियों द्वारा भारतीय हथियारों के अलावा चीन, अमेरिका, इंग्लैंड एवं म्यांमार में निर्मित हथियारों का प्रयोग किया जा रहा हैं। इनमें से अधिकतर हथियारों का प्रयोग भारतीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा भी किया जाता है।   

मणिपुर में हिंसात्मक घटनाओं का कारण

  • पिछले वर्ष मणिपुर उच्च न्यायालय ने मणिपुर सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने की सलाह दी थी। इसी के विरोध में हिंसात्मक घटनाओं की शुरुआत हुई। 
  • भौगोलिक रूप से मणिपुर मुख्यतः दो भागों में विभाजित है, जिनमें नागा व कुकी एवं अन्य जनजातियाँ ज्यादातर पहाडी भागों में रहती है। ये आबादी का 40% हिस्सा हैं जो मणिपुर की कुल भूमि के 90% पर हैं। मैतेई समुदाय निचले घाटी क्षेत्रों में निवास करता है जो केवल 10% भाग पर जनसंख्या में लगभग 60% हिस्सेदारी के साथ निवास करती है।  
  • ऐसे में मौजूदा कानून के तहत मैतेई समुदाय के लोगों को राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने और वहां भूमि खरीदने का अधिकार नहीं है।  
  • कुकी एवं अन्य जनजातियों के अनुसार मैतेई समुदाय को यदि जनजातीय वर्ग में शामिल किया जाता है तो पहले से ही प्रभावशाली मैतेई समुदाय और मज़बूत हो जाएगा।

उत्तर-पूर्व में हिंसा एवं उग्रवाद के कारण 

  • जातीय विविधता : पूर्वोत्तर भारत में आठ राज्य शामिल हैं, जिनकी अलग-अलग जातीय पहचान और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है। इस क्षेत्र में 200 से ज़्यादा जातीय समूहों में नागा, कुकी, मैतेई, असमिया, बोडो आदि शामिल हैं।
    • असम में असमिया, बोडो एवं अन्य विभिन्न समुदायों के बीच विभिन्न मुद्दों पर तनाव होता है।
    • अरुणाचल प्रदेश में भी चकमा लोगों और स्वदेशी समुदायों के बीच संघर्ष सांप्रदायिक आयामों वाला एक बहुआयामी मुद्दा रहा है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व : भारत की मुख्य भूमि और पूर्वोत्तर के बीच अत्यधिक दूरी तथा भारतीय संसद में इस क्षेत्र के प्रतिनिधित्व की कमी के कारण देश के राजनीतिक ढांचे में पूर्वोत्तर की उपेक्षा हुई है, जो इस क्षेत्र में उग्रवाद के ऐतिहासिक कारणों में एक प्रमुख कारण रहा है।
  • अवैध आव्रजन का मुद्दा : बांग्लादेश युद्ध के दौरान वहाँ से अनुमानित 10 मिलियन लोगों ने भारत के विभिन्न राज्यों, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व असम में शरण ली। इससे इस क्षेत्र में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ। मूल निवासी समुदाय अप्रवासियों के कारण अपनी संस्कृति, भाषा एवं राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व के लिए खतरा महसूस करते हैं। 
    • परिणामतः स्थानीय लोगों और शरणार्थियों के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा होने से क्षेत्र में उग्रवाद को बढ़ावा दिया।
  • अल्प विकास संबंधी कारक : पूर्वोत्तर राज्य तुलनात्मक रूप से मुख्य भूमि वाले राज्यों से कम विकसित है तथा इस क्षेत्र को भारत सरकार और अन्य निवेशकों दोनों से बहुत कम निवेश प्राप्त हुआ है।
  • आर्थिक कारक : आर्थिक अवसरों की निरंतर कमी बेरोजगार युवाओं को सशस्त्र उग्रवाद में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है। 
  • हथियारों की उपलब्धता : खुली अंतर्राष्ट्रीय सीमा के कारण विद्रोही आसानी से भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भाग जाते हैं और अपने भूमिगत विद्रोही ठिकानों की स्थापना भी कर सकते हैं। 
    • इसके अलावा, ‘गोल्डन ट्राइंगल’ में नशीले पदार्थों की तस्करी के कारण पूर्वोत्तर के युवा नशे की लत के शिकार हैं। विद्रोहियों को हथियारों की आसान उपलब्धता उन्हें अपनी गतिविधियों को जारी रखने में सक्षम बनाती है।
  • सीमावर्ती देशों में अस्थिरता : म्यांमार व बांग्लादेश जैसे देशों की अस्थिरता की पूर्वोत्तर क्षेत्रों में उग्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • औपनिवेशिक कारक : औपनिवेशिक शासन के दौरान अंग्रेजों द्वारा पूर्वोत्तर का विभाजन मनमाने ढंग से किया गया जिसका प्रभाव आज भी इस क्षेत्र पर पड़ रहा है। उग्रवाद को बढ़ावा देने के महत्वपूर्ण कारणों में राज्यों का विभाजन भी एक प्रमुख कारण रहा है। 

उत्तर-पूर्व भारत में उग्रवाद से आन्तरिक सुरक्षा सम्बन्धी चिंताएं 

  • मादक पदार्थों की तस्करी में वृद्धि : उत्तर-पूर्व में उग्रवाद बढ़ने से पूरे देश में मादक पदार्थों की आपूर्ति में बढ़ोत्तरी हो सकती है जो युवाओं को नशे की ओर अग्रसर कर सकता है। पहले ही गोल्डन ट्राइंगल में नशीले पदार्थों के कारण पूर्वोत्तर के युवा नशे के शिकार हैं।
  • अलगाववाद  को बढ़ावा : पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठनों के म्यांमार, चीन, थाईलैंड और कभी-कभी बांग्लादेश से भी संबंध रहे हैं। ऐसे में यह भारत की अखंडता को कमजोर कर सकता है और चीन जैसी विदेशी ताकतों के लिए यह विस्तारवाद का अवसर हो सकता है।  
  • आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा : उत्तर-पूर्व में चीन जैसे देशों द्वारा हथियारों की आसान उपलब्धता पूरे देश में आपराधिक गतिविधियों को बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। 
  • विकासात्मक गतिविधियों में बाधा : पूर्वोत्तर भारत में विकास एवं कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अनेक योजनाएं और कार्यक्रम संचालित किए जा रहे है। ऐसे में बढ़ता उग्रवाद पूर्वोत्तर के विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।  

पूर्वोत्तर में शांति स्थापित करने में सरकार के प्रयास 

  • NLFT (SD) समझौता (2019): वर्ष 2019 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (एन.एल.एफ.टी./एस.डी.) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके बाद इसके 88 कैडरों ने 44 हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। 
  • ब्रू समझौता (2020): त्रिपुरा में ब्रू (रियांग) परिवारों के स्थायी निपटान के लिए वर्ष 2020 में ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • बोडो समझौता (2020): दीर्घकाल से लंबित बोडो मुद्दे को हल करने के लिए असम के बोडो समूहों के साथ वर्ष 2020 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • कार्बी समझौता (2021): असम के कार्बी आंगलोंग क्षेत्र में दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिए कार्बी समूहों के प्रतिनिधियों के साथ वर्ष 2021 में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। 
  • आदिवासी शांति समझौता (2022): असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों के दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिए 8 आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों के साथ वर्ष 2022 में समझौता किया गया। 
  • अंतरराज्यीय सीमा समझौते
    • असम-मेघालय : असम एवं मेघालय राज्यों के बीच अंतरराज्यीय सीमा की दशकों पुरानी समस्या को हल करने के लिए असम के मुख्यमंत्री और मेघालय के मुख्यमंत्री ने वर्ष 2022 में नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इसमें कुल बारह मतभेदों में से छह क्षेत्रों का समायोजन शामिल है। दोनों राज्यों ने मतभेदों के शेष 6 क्षेत्रों के निपटारे को अंतिम रूप देने के लिए क्षेत्रीय समितियों का गठन किया है। 
    • असम-अरुणाचल प्रदेश : असम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों ने 123 गांवों के संबंध में दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद को कम करने के लिए वर्ष 2022 अरुणाचल प्रदेश के नामसाई में एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। मतभेदों के क्षेत्रों को हल करने के लिए दोनों राज्य सरकारों द्वारा 12 क्षेत्रीय समितियों को अधिसूचित किया गया है।

आगे की राह

  • इन संघर्षों को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें पूर्वोत्तर भारत में विविध समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए संवाद, सुलह, समान संसाधन वितरण और समावेशी शासन शामिल है।
  • इस संदर्भ में निम्नलिखित कदम उठाये जाने की आवश्यकता है : 
    • भारत की मुख्य भूमि के साथ बेहतर संचार एवं संपर्क बढ़ाना और बुनियादी ढांचे में सुधार करना।
    • विद्रोहियों के हमलों के मामलों के त्वरित निपटान के लिए कठोर कानून और तेज आपराधिक न्याय प्रणाली का विकास करना।
    • बेहतर सामरिक प्रतिक्रिया के लिए केंद्रीय बलों और राज्य बलों के बीच बेहतर समन्वय।
    • देश के बाकी हिस्सों के साथ बेहतर सांस्कृतिक संपर्क और सामाजिक-आर्थिक विकास में समग्र समावेशी विकास पर ध्यान देना।
    • सतर्कता के साथ विकेंद्रीकरण, प्रशासनिक दक्षता में सुधार, जन-समर्थक शासन और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का सामना करना। 
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