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भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management in India)

भारत तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है — 2030 तक देश की लगभग 40% जनसंख्या शहरों में निवास करेगी। परंतु यह शहरी विकास अपने साथ ठोस अपशिष्ट (Solid Waste) का पहाड़ भी खड़ा कर रहा है।प्रत्येक भारतीय नागरिक प्रतिदिन औसतन 0.45 से 0.5 किलोग्राम ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है। देशभर में 62 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट हर वर्ष उत्पन्न होता है, परंतु इसका केवल 70% संग्रहित और 25% से भी कम वैज्ञानिक रूप से निस्तारित किया जाता है। यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और शहरी प्रबंधन — तीनों के लिए चुनौती है।

“कचरा समस्या नहीं, संसाधन है — बस हमें उसे पहचानने की समझ चाहिए।”

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की परिभाषा (Definition)

ठोस अपशिष्ट (Solid Waste) — मानव गतिविधियों से उत्पन्न ठोस पदार्थ जिन्हें संग्रह, परिवहन, उपचार या निपटान की आवश्यकता होती है।

इसमें शामिल हैं:

  • घरेलू अपशिष्ट (Household waste)
  • वाणिज्यिक एवं औद्योगिक कचरा
  • जैविक (biodegradable) एवं अजैविक (non-biodegradable) पदार्थ
  • निर्माण एवं ध्वंस कचरा (C&D waste)
  • इलेक्ट्रॉनिक व खतरनाक अपशिष्ट

Solid Waste Management (SWM) वह प्रक्रिया है जिसमें अपशिष्ट के संग्रहण → पृथक्करण → पुनर्चक्रण → उपचार → सुरक्षित निस्तारण की एकीकृत व्यवस्था की जाती है।

भारत में ठोस अपशिष्ट की स्थिति (Current Scenario)

संकेतक

आँकड़े / तथ्य

वार्षिक ठोस अपशिष्ट उत्पादन

62 मिलियन टन (CPCB, 2023)

प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन

0.5 किग्रा/दिन (औसतन)

संग्रहण दर

70%

वैज्ञानिक निस्तारण

केवल 27%

अपशिष्ट का जैविक अंश

50–55% (Biodegradable)

मुख्य स्रोत

घरेलू, वाणिज्यिक, अस्पताल, औद्योगिक

लैंडफिल साइट्स की संख्या

लगभग 3,100

शहरी निकायों की संख्या

~4,700 (जिन पर SWM लागू)

अनुमान: 2030 तक यह मात्रा 165 मिलियन टन/वर्ष तक पहुँच सकती है। (NITI Aayog, 2024)

कानूनी व नीतिगत ढाँचा (Legal & Policy Framework)

(a) Solid Waste Management Rules, 2016 (SWM Rules 2016)

मुख्य विशेषताएँ:

  1. स्रोत पर पृथक्करण (Segregation at Source) अनिवार्य — गीला, सूखा और घरेलू खतरनाक कचरा।
  2. सर्कुलर अर्थव्यवस्था पर बलपुनर्चक्रण, पुनः उपयोग, अपशिष्ट-से-ऊर्जा (Waste-to-Energy)।
  3. सार्वजनिक संस्थानों की जिम्मेदारी होटल, अस्पताल, ऑफिस, हाउसिंग सोसाइटी आदि को on-site treatment का निर्देश।
  4. Extended Producer Responsibility (EPR) निर्माताओं को अपने उत्पाद के जीवनचक्र तक जिम्मेदार बनाना।
  5. Rural SWM नियम अब ग्राम पंचायतों पर भी लागू।

(b) अन्य प्रमुख नियम:

  • Plastic Waste Management Rules, 2016
  • Construction and Demolition Waste Rules, 2016
  • E-Waste Rules, 2016
  • Bio-Medical Waste Rules, 2016

(c) नीति पहलें:

  • Swachh Bharat Mission (Urban & Rural)कचरा-मुक्त शहरों का लक्ष्य।
  • Waste-to-Wealth Mission (NITI Aayog) कचरे को ऊर्जा, जैव-उर्वरक और संसाधन में बदलने की पहल।
  • National Circular Economy Framework (2023)संसाधन-कुशलता को बढ़ावा।
  • Namami Gange Missionगंगा तटवर्ती शहरों में अपशिष्ट प्रबंधन पर विशेष जोर।

ठोस अपशिष्ट का प्रबंधन ढाँचा (SWM Process Flow)

पृथक्करण (Segregation):

  • गीला, सूखा, घरेलू खतरनाक।

संग्रहण (Collection):

  • डोर-टू-डोर सिस्टम, स्मार्ट बिन्स, GPS ट्रैकिंग।

परिवहन (Transportation):

  • पृथक अपशिष्टों का स्वतंत्र वाहन से स्थानांतरण।

उपचार (Processing):

  • कम्पोस्टिंग, बायो-मीथनेशन, रीसायकलिंग, Waste-to-Energy प्लांट।

निस्तारण (Disposal):

  • वैज्ञानिक लैंडफिल, पुरानी साइट्स का रेमेडिएशन (Bio-mining)।

सफल मॉडल (Best Practices)

शहर

मॉडल

उपलब्धि

इंदौर (म.प्र.)

Zero Waste City मॉडल

लगातार 7 वर्ष “India’s Cleanest City”

अंबिकापुर (छत्तीसगढ़)

Women Self-Help Groups (SHGs) द्वारा स्रोत पर पृथक्करण

90% कचरे का पुनः उपयोग

पुणे (महाराष्ट्र)

SWaCH Cooperative (कचरा बीनने वालों का संगठन)

नागरिक भागीदारी आधारित मॉडल

सूरत (गुजरात)

Waste-to-Compost & Energy Plant

नगर निगम की आय में वृद्धि

मायनगरी (केरल)

Decentralized Composting Units

प्रत्येक वार्ड में अलग प्रबंधन इकाई

चुनौतियाँ (Challenges)

  1. स्रोत पर वर्गीकरण की कमीकेवल 50% शहरों में आंशिक रूप से लागू।
  2. इन्फ्रास्ट्रक्चर अभाव ट्रांसफर स्टेशन, उपचार प्लांट, वैज्ञानिक लैंडफिल्स की कमी।
  3. अनौपचारिक क्षेत्र की उपेक्षा कचरा बीनने वाले श्रमिकों का कोई सुरक्षा/मान्यता नहीं।
  4. वित्तीय स्थिरता का अभावनगर निकायों के पास नियमित फंड नहीं।
  5. निगरानी व प्रवर्तन कमजोर CPCB/SPCB स्तर पर अनुपालन रिपोर्टिंग सीमित।
  6. नागरिक जागरूकता का अभावBehavioral change सीमित।
  7. तकनीकी चुनौतियाँWaste-to-Energy प्रोजेक्ट्स का संचालन महँगा और अप्रभावी।

आगे की दिशा (Way Forward)

(1) सर्कुलर इकॉनमी की ओर संक्रमण:

  • “Waste as Resource” नीति अपनाना — Reduce, Reuse, Recycle (3R)।
  • Extended Producer Responsibility (EPR) को सख्ती से लागू करना।

(2) विकेन्द्रीकृत प्रबंधन मॉडल:

  • वार्ड-स्तरीय कम्पोस्टिंग, माइक्रो रीसायकलिंग यूनिट्स।
  • बायो-मीथनेशन के छोटे प्लांट्स स्थापित करना।

(3) समुदाय आधारित भागीदारी:

  • महिला समूह, NGOs, स्थानीय निकायों की भागीदारी।
  • नागरिकों को “स्वच्छता व्यवहार परिवर्तन” के लिए प्रेरित करना।

(4) वित्तीय व तकनीकी नवाचार:

  • PPP मॉडल, ग्रीन बांड्स, CSR फंडिंग।
  • IoT आधारित Waste Tracking सिस्टम।

(5) नियामक सुधार:

  • ठोस अपशिष्ट नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक प्रविधान।
  • नियमित ऑडिट, पारदर्शी डेटा पोर्टल।

निष्कर्ष (Conclusion)

“कचरा वहीं समस्या है जहाँ समझ और जिम्मेदारी नहीं है।”

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन केवल स्वच्छता का नहीं, बल्कि पर्यावरणीय न्याय और संसाधन प्रबंधन का प्रश्न है। सही नीतियों, तकनीकी नवाचार, सामाजिक भागीदारी और ‘सर्कुलर सोच’ से हम “कचरा-मुक्त भारत” को वास्तविकता में बदल सकते हैं। 2030 तक यदि प्रत्येक नगर निकाय स्रोत-वर्गीकरण और वैज्ञानिक उपचार को अपनाए —तो भारत Zero Waste Economy की दिशा में अग्रणी राष्ट्र बन सकता है।

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