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युवा बेरोजगारी : भारत के लिए बड़ी चुनौती

संदर्भ:

मानव विकास संस्थान (IHD) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 ने युवा बेरोजगारी पर ध्यान आकर्षित किया है।

रिपोर्ट में श्रम बाजार की कुछ सकारात्मक बातें :

  • रोज़गार की गुणवत्ता में सभी राज्यों में अलग-अलग तरह से सुधार हुआ है। इसकी पुष्टि वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के बीच गैर-कृषि रोजगार की हिस्सेदारी में वृद्धि (और कृषि रोजगार में गिरावट) से भी होती है। 
  • महिला कार्यबल भागीदारी (FWFP) दर में वर्ष 2019 में 24.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2023 में 37.0 तक की वृद्धि देखी गई है। 
  • नियमित श्रमिकों के वेतन की तुलना में, 2019-22 के दौरान भी अनौपचारिक श्रमिकों के वेतन में वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2023 में गैर-कृषि नौकरियों में भी 2.6 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई, जो कि वर्ष 2012 से 2019 में प्राप्त की गई दर से अधिक है।
  • बेरोजगारी दर वर्ष 2018 में 6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 3.2 प्रतिशत हो गई है।
  • युवा बेरोजगारी दर भी वर्ष 2018 में 17.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2023 में 10 प्रतिशत हो गई।

UNEMPLOYED

रोजगार संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ:

  • युवा बेरोजगारी प्रमुख चुनौती बनी हुई है क्योंकि शैक्षिक प्राप्ति में भारी वृद्धि के साथ, भारत में बेरोजगारी की समस्या शिक्षित युवाओं पर केंद्रित होती जा रही है, जो कुल बेरोजगारी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि, शिक्षा स्तर में वृद्धि के साथ बेरोजगारी दर बढ़ती है; स्नातक और उससे ऊपर के बीच बेरोजगारी दर 28 % है (महिलाओं का अनुपात अधिक)।
  • रोजगार, शिक्षा और प्रशिक्षण (NEET) में नहीं रहने वाले युवाओं का अनुपात वर्ष 2022 में लगभग 28 % है, जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक है।
  • रोजगार पैटर्न कृषि की ओर झुका हुआ है, जिसमें लगभग 46.6 प्रतिशत श्रमिक कार्यरत हैं (वर्ष 2019 में 42.4 % की तुलना में)। 
    • इसके लिए गैर-कृषि रोजगार सृजन में तेजी लाने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • जहाँ एक ओर उत्पादन प्रक्रिया तेजी से पूंजी और कौशल-केंद्रित होती जा रही है वही भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में वृद्धि के बावजूद, अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिक बहुतायत में हैं। 
    • इसके लिए श्रम-प्रधान विनिर्माण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम है और वे बड़े पैमाने पर कृषि, अवैतनिक पारिवारिक कार्यों अथवा कुछ कम पारिश्रमिक वाली नौकरियों में लगी हुई हैं। 
    • इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त निवेश के साथ अन्य गैर-कृषि रोजगार अवसरों के सृजन की आवश्यकता है, जिसमें परिवहन और कनेक्टिविटी और बच्चों की देखभाल तक पहुंच शामिल है।
  • 90 %से अधिक रोजगार अनौपचारिक है, और 83 प्रतिशत रोजगार अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। 
    • मजबूत वेतन वृद्धि, विशेष रूप से आकस्मिक और नियमित श्रमिकों के निचले तबके के लिए, सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना, औपचारिकता के लिए सक्रिय नीतियां और श्रम उत्पादकता को बढ़ावा देना रोजगार की गुणवत्ता में सुधार करने में काफी मदद करेगा।

रिपोर्ट में कुछ नीतिगत उपायों की सिफारिश:

  • श्रम-आधारित विनिर्माण पर जोर देने और रोजगार सृजित करने वाली सेवाओं तथा कृषि पर उचित ध्यान देने के साथ उत्पादन व विकास को अधिक रोजगार-गहन बनाना होगा। 
  • नौकरियों की गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिए। 
  • श्रम बाजार की असमानताओं पर काबू पाना, विशेष रूप से महिलाओं के रोजगार को बढ़ावा देना और NEET से निपटने के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जानी चाहिए।
  • कौशल प्रशिक्षण और सक्रिय श्रम बाजार नीतियों के लिए सिस्टम को और अधिक प्रभावी बनाना, विशेष रूप से नौकरियों में आपूर्ति-मांग के अंतर को निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी द्वारा पाटना चाहिए। 
  • विश्वसनीय आँकड़े तैयार करना चाहिए ताकि तेजी से तकनीकी परिवर्तन के कारण श्रम बाजार के बदलते पैटर्न की जटिलताओं को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
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