New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back GS Foundation (P+M) - Delhi: 5 May, 3:00 PM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 11 May, 5:30 PM Call Our Course Coordinator: 9555124124 Request Call Back

क्षेत्रीय परिषद (Zonal Councils) स्थापना, उद्देश्य एवं संरचना

  • भारत की संघीय संरचना में केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय परिषदों (Zonal Councils) की स्थापना की गई। 
  • इन परिषदों का उद्देश्य राज्यों और केंद्र के बीच आपसी समन्वय बढ़ाना और आपसी हितों से संबंधित मामलों पर विचार-विमर्श करना है। 
  • क्षेत्रीय परिषदें भारत में राज्यों के बीच और संघीय ढांचे के भीतर सुधार और समन्वय के महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म के रूप में काम करती हैं।

Zonal-Councils

स्थापना:-

  • क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना States Reorganisation Act, 1956 के तहत की गई थी।
  • संविधान में सीधे तौर पर क्षेत्रीय परिषदों का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन ये वैधानिक निकाय (Statutory Bodies) के रूप में अस्तित्व में आईं। 
  • इनका कार्य केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना है।
  • भारत में कुल पांच क्षेत्रीय परिषदें हैं, जो विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करती हैं। 
  • इसके अलावा, उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए एक अलग निकाय उत्तर-पूर्व परिषद (North Eastern Council) की स्थापना 1971 में की गई थी।

क्षेत्रीय परिषदों के उद्देश्य:-

क्षेत्रीय परिषदों का मुख्य उद्देश्य राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है:

  • राज्यों के बीच सहयोग बढ़ाना:
    यह राज्यों को आपस में संवाद और सहयोग बढ़ाने का एक मंच प्रदान करता है, ताकि राष्ट्रीय विकास में साझा प्रयास किए जा सकें।
  • अंतर्राज्यीय विवादों का समाधान:
    जब विभिन्न राज्य किसी मुद्दे पर मतभेद रखते हैं, तो क्षेत्रीय परिषद इस पर चर्चा करने और समाधान खोजने का अवसर प्रदान करती है।
  • सामान्य हितों के मामलों पर विचार:
    जैसे जल विवाद, बुनियादी ढांचे का विकास, सुरक्षा, और सामाजिक-आर्थिक योजनाओं पर राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • प्राकृतिक संसाधनों का समान उपयोग:
    राज्यों के बीच संसाधनों, जैसे जल, जंगल, खनिज आदि के समान और न्यायपूर्ण उपयोग पर विचार-विमर्श किया जाता है।
  • संवेदनशील क्षेत्रों में विकास:
    विशेष रूप से नक्सल प्रभावित या पिछड़े क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना और वहां की सुरक्षा स्थिति को मजबूत करना।

क्षेत्रीय परिषदों की संरचना:

क्षेत्रीय परिषदों की संरचना इस प्रकार है:

  • अध्यक्ष (Chairman):
    केंद्रीय गृह मंत्री परिषद के अध्यक्ष होते हैं। वे परिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हैं और उसकी कार्यवाही का मार्गदर्शन करते हैं।
  • उपाध्यक्ष (Vice Chairman):
    हर परिषद का उपाध्यक्ष संबंधित क्षेत्र के राज्यपाल होता है। यह पद प्रत्येक क्षेत्र के लिए रोटेशन होता है, यानी एक राज्यपाल एक निश्चित अवधि के लिए उपाध्यक्ष बनते हैं।
  • सदस्य (Members):
    परिषद के सदस्य संबंधित क्षेत्र के राज्य प्रमुख होते हैं, जिनमें राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्रियों और मुख्य सचिव शामिल होते हैं। इसके अतिरिक्त, संबंधित राज्य के दो मंत्री भी परिषद के सदस्य होते हैं।
  • सलाहकार: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा नामित एक, मुख्य सचिव और जोन में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त होते हैं।

भारत की पाँच प्रमुख क्षेत्रीय परिषदें:-

क्षेत्रीय परिषद

संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश

उत्तरी क्षेत्रीय परिषद

पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, चंडीगढ़, दिल्ली

मध्य क्षेत्रीय परिषद

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़

पूर्वी क्षेत्रीय परिषद

बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल

पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद

राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव

दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पुडुचेरी, लक्षद्वीप

  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए एक अलग निकाय उत्तर-पूर्व परिषद (NEC) है, जिसे 1971 में स्थापित किया गया था। यह क्षेत्रीय परिषद, विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी राज्यों के विकास, उनकी सुरक्षा और प्रशासनिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई थी।

क्षेत्रीय परिषदों के कार्य और भूमिका:-

  • नीति निर्माण में सहायता:
    क्षेत्रीय परिषदों की बैठकें केंद्र और राज्यों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण मंच हैं। यह राज्यों को योजनाओं और नीतियों पर चर्चा करने का अवसर देती हैं, ताकि राष्ट्रीय विकास में समन्वय बना रहे।
  • विकास योजनाओं की निगरानी:
    क्षेत्रीय परिषदें न केवल नीतियों पर चर्चा करती हैं, बल्कि विकास योजनाओं की कार्यान्वयन स्थिति पर भी निगरानी रखती हैं। यह सुनिश्चित करती हैं कि योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन हो रहा है और किसी राज्य विशेष को अनदेखा नहीं किया जा रहा।
  • राजनीतिक और प्रशासनिक समन्वय:
    जब राज्यों के बीच विवाद उत्पन्न होते हैं या किसी राज्य को किसी योजना के लागू करने में कठिनाई होती है, तो क्षेत्रीय परिषद इसका समाधान तलाशने में सहायक होती है। यह एक निर्णायक मंच की तरह काम करती है।
  • संवेदनशील मामलों पर परामर्श:
    जब किसी राज्य में असहमति या विवाद उत्पन्न होते हैं, तो क्षेत्रीय परिषद संवेदनशील मुद्दों, जैसे जल विवाद, अंतर्राज्यीय सीमाओं, आंतरिक सुरक्षा आदि पर विचार करती है।

क्षेत्रीय परिषदों की वर्तमान प्रासंगिकता और महत्त्व:

  • संघीय संरचना को मजबूती देना:
    क्षेत्रीय परिषदें भारतीय संघीय ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय और सहयोग बढ़ाने के लिए कार्य करती हैं, जिससे एक मजबूत संघीय ढांचा स्थापित होता है।
  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता:
    क्षेत्रीय परिषदें राज्यों के बीच मतभेदों को सुलझाकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देती हैं। यह विभिन्न राज्यों को एक मंच पर लाती है, जिससे भारत की विविधता में एकता स्थापित होती है।
  • आर्थिक और सामाजिक विकास:
    इन परिषदों के माध्यम से राज्यों के बीच संसाधनों का समान वितरण और विकास योजनाओं का सही क्रियान्वयन सुनिश्चित होता है। इस प्रकार, यह आर्थिक और सामाजिक विकास में सहायक होती हैं।

Zonal Councils – FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न :- क्षेत्रीय परिषदें (Zonal Councils) क्या हैं?

उत्तर: क्षेत्रीय परिषदें केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देने के लिए स्थापित वैधानिक निकाय (Statutory Bodies) हैं। ये राज्यों को आपसी संवाद और विकास की योजना बनाने का एक साझा मंच प्रदान करती हैं।

प्रश्न :- क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना किस अधिनियम के तहत हुई थी?

उत्तर: क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना States Reorganisation Act, 1956 के तहत हुई थी।

प्रश्न :-क्या संविधान में क्षेत्रीय परिषदों का उल्लेख है?

उत्तर: नहीं, संविधान में क्षेत्रीय परिषदों का सीधे उल्लेख नहीं है, परंतु ये वैधानिक निकाय के रूप में कार्य करती हैं।

प्रश्न :- भारत में कुल कितनी क्षेत्रीय परिषदें हैं?

उत्तर: भारत में कुल पाँच क्षेत्रीय परिषदें हैं। इनके अतिरिक्त एक उत्तर-पूर्व परिषद (North Eastern Council) भी है, जिसे 1971 में गठित किया गया था।

प्रश्न :- क्षेत्रीय परिषदों का अध्यक्ष कौन होता है?

उत्तर: सभी क्षेत्रीय परिषदों के अध्यक्ष केंद्रीय गृह मंत्री (Union Home Minister) होते हैं।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR