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हिरोशिमा परमाणु हमले की 75वीं वर्षगाँठ तथा परमाणु सुभेद्यता की गम्भीरता

(प्रारम्भिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 2: विश्व के इतिहास में 18वीं सदी तथा बाद की घटनाएँ, विश्व युद्ध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, आंतरिक सुरक्षा)

पृष्ठभूमि

6 अगस्त, 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर विश्व के पहले परमाणु बम हमले को अंजाम दिया गया था। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन थे। वर्ष 2020 इस हमले की 75वीं वर्षगाँठ है। हिरोशिमा में विश्व शांति के लिये आह्वान किया गया। साथ ही, द्वितीय विश्व युद्ध जैसी घटनाओं को जन्म देने के लिये राष्ट्रवाद के खिलाफ चेतावनी दी गई और वैश्विक खतरों का सामना करने के लिये एक साथ आने का आग्रह किया गया।

संक्षिप्त इतिहास

  • हिरोशिमा में सुबह के समय पहला परमाणु हथियार शहर के ऊपर गिराया गया था। इस समय अधिकांश औद्योगिक श्रमिक या तो फैक्ट्रियो में थे या मार्ग में थे और बच्चे स्कूलों में थे।
  • 6 अगस्त को बी-29 बमवर्षक एनोला गे ने हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल ब्वॉय’ नामक परमाणु बम गिराया। हिरोशिमा पर हुए बम हमले में लगभग 1,40,000 लोग मारे गए थे। इसके तीन दिन बाद, अमेरिका ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम ‘फैट मैन’ गिराया, जहाँ लगभग 74,000 लोग मारे गए थे।
  • नागासाकी का भू-भाग असमतल होने के कारण क्षति एक विशेष घाटी तक ही सीमित थी, जिस पर बम गिराया गया था।
  • इन लोगों की मौत विकिरण जनित बीमारियों, विस्फोट के दुष्परिणाम स्वरुप ‘ब्लैक रेन’, भयानक जलन और अन्य प्रकार की चोटों के कारण हुई थी। अमेरिकी युद्ध विभाग ने कहा था कि बम फटने के बाद हिरोशिमा पर ‘धूल और धुएँ के अभेद्य बादल’ छा गए था।

हिरोशिमा के चुनाव का कारण

  • अमेरिका की सोच थी कि किसी मुख्य शहर पर बमबारी का व्यापक प्रभाव पड़ेगा और इसके लिये लक्षित शहरों का चुनाव सैन्य उत्पादन को ध्यान में रखते हुए किया गया। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया गया कि लक्ष्य के लिये चुने गए शहर जापान के लिये सांस्कृतिक महत्त्व न रखते हों।
  • इस बम का एक उद्देश्य जापान की युद्धक क्षमता को नष्ट करना था। उस समय हिरोशिमा जापान का सातवाँ सबसे बड़ा शहर भी था और सेकंड आर्मी के साथ-साथ चुगोकू क्षेत्रीय सेना का मुख्यालय भी था।
  • इसके अतिरिक्त, यह सबसे बड़े सैन्य आपूर्ति डिपो के साथ-साथ सबसे महत्त्वपूर्ण सैन्य शिपिंग स्थल भी था। ध्यातव्य है कि अमेरिका में परमाणु हथियार से सम्बंधित सभी अनुसंधान व विकास मैनहट्टन परियोजना के तहत किया गया था।

75वीं वर्षगाँठ

  • इस वर्ष की ऐतिहासिक वर्षगाँठ हमले से प्रभावित जीवित बचे लोगों की घटती संख्या को रेखांकित करती है, जिनको जापान में ‘हिबाकुशा’ के रूप में जाना जाता है। इनमें से कई लोग हमले के बाद शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से पीड़ित हुए।
  • जापान ने 15 अगस्त, 1945 को आत्मसमर्पण की घोषणा की थी। कुछ इतिहासकारों ने तर्क दिया है कि इन बम विस्फोटों ने अंततः युद्ध को लगभग ख़त्म कर दिया, परिणामस्वरूप ज़मीनी युद्ध और आक्रमण बंद होने के कारण कई लोगों की जान बच गई जो सम्भवतः अधिक घातक हो सकती थी।
  • हालाँकि, जापान में इन हमलों को व्यापक रूप से युद्ध अपराध की श्रेणी में माना जाता है क्योंकि इसमें नागरिकों को निशाना बनाया गया था। साथ ही, यह हमला अभूतपूर्व विनाश का कारण भी बना।

क्षति और भेद्यता (Damage and vulnerability)

  • परमाणु युग की शुरुआत के बाद से लगभग 1,26,000 से अधिक परमाणु हथियार बनाए जा चुके हैं।
  • इनमें से 2,000 से अधिक हथियारों का प्रयोग स्थल के ऊपर और नीचे विस्फोटक शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये परमाणु परीक्षणों में किया गया है। इससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को गम्भीर व लम्बे समय तक हानि होती है।
  • इन मौजूदा हथियारों में से यदि कुछ का ही प्रयोग नागरिक आबादी के खिलाफ किया जाए तो उससे होने वाला नुकसान परमाणु परीक्षणों की तुलना में बहुत अधिक होगा।
  • यह सोचनीय है कि यदि दुर्घटनावश या सोच-समझकर परमाणु हथियारों का प्रयोग किया जाता है तो बचाव के लिये कोई वास्तविक तरीका मौजूद नहीं है। अतः यह समझना चाहिये कि विश्व परमाणु हथियारों के विरुद्ध अत्यधिक सुभेद्य है।
  • 1950 के दशक के अंत में बैलिस्टिक मिसाइलों का आविष्कार हुआ। इनकी अत्यधिक गति के कारण एक बार लॉन्च होने के बाद परमाणु हथियारों का अवरोध करना लगभग असम्भव सा हो गया है।
  • परमाणु हथियारों से होने वाले क्षति और सुभेद्यता को रोकने में न तो फॉलआउट शेल्टर और न ही बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम सफल हुए हैं। फॉलआउट शेल्टर एक ऐसा स्थान है जिसे विशेष रूप से रेडियोधर्मी मलबे से रक्षा के लिये बनाया जाता है।

परमाणु हथियार और निवारक सिद्धांत

  • परमाणु हथियार सम्पन्न देशों द्वारा इसकी सुभेद्यता और गम्भीरता पर जो विचार व्यक्त किये गए वे स्वयं में केवल आदर्श हैं। इन विचारों के अनुसार, परमाणु हथियारों का उपयोग परमाणु सम्पन्न राज्यों के विरुद्ध निवारक सिद्धांत के कारण लगभग असम्भव है।
  • परमाणु हथियार इतने विनाशकारी होते हैं कि कोई भी देश उनका उपयोग नहीं करेगा क्योंकि इससे उस देश के विरुद्ध भी परमाणु हमलों का खतरा पैदा हो जाएगा। इस प्रकार, कोई भी देश अपने नागरिकों की सम्भावित मौत के जोखिम के लिये तैयार नहीं होगा। यही निवारक सिद्धांत के पीछे का विचार है।
  • निवारक सिद्धांत के उत्साही लोगों का दावा है कि परमाणु हथियार न केवल दूसरे देशों द्वारा परमाणु हमलों के खिलाफ रक्षा करते हैं, बल्कि सम्भावित युद्ध को भी रोकते हैं जिससे क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा मिलता है।
  • हालाँकि, इस तरह से स्थिरता को बढ़ावा मिलने सम्बंधी बात पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि ऐसे कई उदाहरण हैं जब परमाणु खतरों ने अन्य देशों में डर (निवारक) पैदा नहीं किया है परिणामस्वरूप डर की कमी के कारण हमेशा सावधानी (निवारक उपाय) नहीं बरती गई है।
  • इसके विपरीत, कुछ मामलों में परमाणु खतरों से आक्रामकता पैदा हुई है और यह आक्रामकता गतिरोध को बढ़ा सकती है, जैसा कि क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान फिदेल कास्त्रो के साथ हुआ था।
  • साथ ही, परमाणु निरोध को स्थिर नहीं माना जाना चाहिये। रणनीतिक नियोजक अधिकांशत: अन्य देशों की मंशा और क्षमताओं के बारे में सबसे खराब स्थिति वाली धारणाओं का ही उपयोग करते हैं, जिससे अधिक विनाशकारी क्षमताओं के विकास के लिये तार्किक आधार और बल मिलता है। यह सोच परमाणु शस्त्रागार के अंतहीन उत्थान को बढ़ाता देता हैं और नए देशों को भी परमाणु हथियारों से सम्पन्न होने के लिये आधार मिल जाता हैं।

परमाणु हथियार और उसके नियंत्रण का भ्रम

  • परमाणु हथियारों के नियंत्रण का भ्रम भी एक अन्य चिंता का विषय है। वास्तविकता में, योजनाकारों व रणनीतिकारों के लिये पूर्ण नियंत्रण रखना सम्भव नहीं है। परमाणु हथियारों को सही प्रकार से नियंत्रित करने और उसकी सुरक्षा में विश्वास अति आत्मविश्वास पैदा करती है, जो खतरनाक है।
  • इस मामले में, फिर से क्यूबाई मिसाइल संकट को सबसे अच्छा उदाहरण माना जा सकता है क्योंकि लगभग चार दशकों के अनुसंधान और सरकारी दस्तावेजों ने इस संकट के ख़त्म होने में भाग्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका को ही स्वीकार किया है न कि नियंत्रण व निवारक उपायों को।
  • ऐसे कई और मामले हैं, जब विश्व परमाणु युद्ध के करीब आ गया था परंतु परमाणु हथियार और उसके नियोजन की गोपनीयता के कारण शायद आमजन को कभी इसका आभास नहीं हो पाया।

निष्कर्ष

सभी परमाणु हथियार सम्पन्न देशों ने इस सम्भावना को स्वीकार किया है कि निवारक उपाय विफल हो सकता है क्योंकि वास्तव में उन देशों द्वारा परमाणु हथियारों का उपयोग करने की योजना के साथ-साथ परमाणु युद्ध लड़ने की भी तैयारी की जाती है। इस प्रकार यह सोचना एक भ्रम है कि परमाणु युद्ध असम्भव है। हिरोशिमा में अपने सम्बोधन में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ‘परमाणु हथियार विहीन विश्व के लिये सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने और हर समय शांति’ के लिये संकल्प लिया। हाल ही में, जापान के संविधान में एक प्रमुख शांतिवादी खंड को संशोधित करने के प्रयासों के लिये शिंजो आबे की आलोचना भी की गई थी। इसके अतिरिक्त, यू.एन. महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने कहा कि परमाणु जोखिम को पूरी तरह से खत्म करने का एकमात्र तरीका परमाणु हथियारों को पूरी तरह से खत्म करना है।

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