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कृषि-ऋण और छोटे किसान

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता, किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी)

संदर्भ

कृषि सुधारों का मुद्दा न केवल राजनेताओं बल्कि नीति निर्धारकों के लिये भी अहम बन चुका है। फसलों में विविधता लाने के साथ-साथ आय में सुधार करने के लिये छोटे किसानों को उचित ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना चाहिये। यद्यपि पिछले कई दशकों में केंद्र, राज्यों और भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रयासों से ऋण की मात्रा में सुधार हुआ है परंतु दुर्भाग्यवश इसकी गुणवत्ता एवं कृषि पर इसके प्रभाव में विशेष फर्क नहीं पड़ा है।

रियायती कृषि ऋण की स्थिति

  • ऋण सीमा में वृद्धि- प्रत्येक वर्ष केंद्र सरकार सब्सिडी वाले कृषि ऋण के लक्ष्य में वृद्धि की घोषणा करती है और बैंक इन लक्ष्यों से आगे भी निकल जाते हैं। वर्ष 2011-12 में ऋण लक्ष्य ₹75 लाख करोड़ था जबकि ₹21,175 करोड़ की आवंटित सब्सिडी के साथ वर्ष 2020-21 में कृषि-ऋण ₹15 लाख करोड़ के लक्ष्य तक पहुँच गया है।
  • आय में स्थिरता- यदि कृषि संवृद्धि बढ़ाने में कृषि-ऋण प्रभावी और सक्षम होता तो 85% से अधिक किसानों की आय वर्षों तक स्थिर नहीं बनी रहती। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या ये ऋण वास्तव में किसानों को लाभ पहुँचा रहे हैं।

समस्याएँ और चुनौतियाँ

  • ऋण तक पहुँच न होना- पिछले 10 वर्षों में कृषि ऋण में 500% की वृद्धि हुई है परंतु 56 करोड़ लघु और सीमांत किसानों में से 20% किसान भी इस ऋण का लाभ नहीं ले पा रहे है।
  • कृषि उपकरणों पर उच्च ब्याज दर- कृषि-ऋण में वृद्धि के बावजूद आज भी देश में बेचे जाने वाले 95% ट्रैक्टर और अन्य कृषि-औंज़ारों को गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) द्वारा उच्च ब्याज दर (18%) पर वित्त पोषित किया जा रहा है, जबकि इन्हीं उपकरणों को खरीदने के लिये बैंकों द्वारा प्रदान किये जाने वाले दीर्घावधि ऋण की ब्याज दर 11% है।
  • बड़ी जोत वालों को अधिक ऋण- आर.बी.आई. ने संस्थागत स्रोतों (जैसे- बैंक, सहकारी समिति) से भी निम्नतम भूमि जोत (दो हेक्टेयर तक) वाले कृषि परिवारों को रियायती कृषि ऋण का केवल लगभग 15% मिलने पर सवाल उठाया है। इसका 79% हिस्सा उच्चतम भूमि जोत (दो हेक्टेयर से अधिक) वाले कृषि परिवारों को प्रदान किया जा रहा है।
  • एग्री-बिजनेस कंपनियों को अधिक ऋण- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के ‘कृषि परिवारों की स्थिति मूल्यांकन सर्वेक्षण’ में संस्थागत ऋणों में उच्चतम भूमि जोत के स्वामियों की अधिक हिस्सेदारी है, जो यह दर्शाता है कि बड़े किसानों और एग्री-बिजनेस कंपनियों द्वारा रियायती कृषि ऋण का एक बड़ा हिस्सा हथिया लिया जाता है।
  • एग्री-क्रेडिट की अस्पष्ट परिभाषा- कृषि-ऋण की ढीली और अस्पष्ट परिभाषा ने एग्री-बिजनेस क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को रियायती दरों पर ऋण प्रदान किये जाने की प्रवृति में वृद्धि की है।
  • ऋण सीमा का उल्लंघन- यद्यपि आर.बी.आई. ने बैंक के कुल समायोजित निवल बैंक ऋण/क्रेडिट (Adjusted Net Bank Credit) के लिये एक सीमा तय की है परंतु बैंक नियमित रूप से इसका उल्लंघन करते हैं। कुल समायोजित निवल बैंक ऋण का 18% कृषि क्षेत्र को प्रदान किया जाना चाहिये। साथ ही, कुल कृषि ऋण का 8% अनिवार्य रूप से लघु और सीमांत किसानों को और 4.5% अप्रत्यक्ष लोन के रूप में दिया जाना चाहिये।
  • वर्ष 2017 में नाबार्ड द्वारा महाराष्ट्र को मुहैया कराए गए कुल कृषि-क्रेडिट का 53% मुंबई शहर और उपनगरों को आवंटित किया गया था, जहाँ कोई कृषक नहीं बल्कि केवल कृषि-व्यवसाय ही हैं। इसमें अप्रत्यक्ष लोन खाद, कीटनाशक, बीज और कृषि उपकरणों के डीलरों और विक्रेताओं को प्रदान किया गया।

अनियमितताएँ

  • विभिन्न विसंगतियाँ- वर्ष 2019 में आर.बी.आई. के आंतरिक कार्य समूह ने पाया गया कि कुछ राज्यों में कृषि क्षेत्र में किया गया ऋण वितरण उस राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में कृषि के अंश से अधिक था। साथ ही, ‘फसल के लिये ऋण का वितरण’ उसके ‘लागत आवश्यकता’ से बहुत अधिक था।
  • गैर-कृषि उद्देश्यों में प्रयोग- इसका उदाहरण केरल (326%), आंध्र प्रदेश (254%), तमिलनाडु (245%), पंजाब (231%) और तेलंगाना (210%) हैं। यह असमानता दर्शाती है कि ऋण का प्रयोग गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये किया गया है, जिसका एक कारण कम ब्याज दर पर प्राप्त रियायती ऋण को अन्य छोटे किसानों और खुले बाजार में उच्च ब्याज दर पर पुनर्वितरित किया जाना है।

उपाय

  • प्रत्यक्ष सहायता- छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बनाने के लिये उन्हें बेहद रियायती ऋण के बजाय प्रति हेक्टेयर के आधार पर प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान किये जाने पर विचार करना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी का प्रयोग- भारत में कृषि परिवारों के बीच मोबाइल फोन की पहुँच 1% से अधिक होने के कारण प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों के माध्यम से अधिक से अधिक कृषि परिवारों के लिये संस्थागत ऋण वितरण किया जा सकता है।
  • फसल रिकॉर्ड का प्रयोग- इसके अतिरिक्त विभिन्न एप के माध्यम से डिजिटल भूमि रिकॉर्डवाले राज्यों में सैटेलाइट इमेज का प्रयोग करके फसल उगाने के लिये किसान क्रेडिट कार्ड ऋण को डिजिटल रूप से विस्तारित किया जा सकता है।
  • भूमि पट्टेदारी व्यवस्था में सुधार- भूमि पट्टेदारी व्यवस्था के ढांचे में सुधार करने के साथ-साथ कृषि ऋण सुधारों के विषय में राज्यों और केंद्र के बीच आम सहमति बनाने के लिये एक राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी बनाए जाने पर भी विचार किया जा सकता है।
  • कमोडिटी स्टॉक के विरुद्ध छोटे किसानों के ‘किसान उत्पादक संगठनों’ को उच्चतर फसल ऋण की सुविधा के लिये कृषि-ऋण प्रणाली को सुव्यवस्थित करना भी एक अच्छा उपाय है।

प्रिलिम्स फैक्ट्स :

  • कृषि जनगणना, 2015-16 के अनुसार देश में छोटे और सीमांत किसानों वाले घरों की कुल संख्या 12.56 करोड़ थी। विदित है कि छोटी और सीमांत जोत भारत के कुल जोत का 86.1% हैं।
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