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भारत में संपत्ति का अधिकार (Property Rights in India) :भारत में संवैधानिक प्रावधान, न्यायालयीन विकास और सामाजिक-आर्थिक महत्व

चर्चा में क्यों ?

  • प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2025):  सुप्रीम कोर्ट की 9-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक निर्णय दिया।
    • राज्य को निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन मानकर अधिग्रहण करने की असीमित शक्ति नहीं है।
    • पुराने फैसलों का खंडन:
      • रंगनाथ रेड्डी केस (1978)
      • संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग केस (1983)
        • इन फैसलों में निजी संपत्ति को सामुदायिक संसाधन माना गया था, जिन्हें अब सुप्रीम कोर्ट ने अस्वीकार किया।

हालिया निर्णय के मुख्य निष्कर्ष

(a) अनुच्छेद 39(b) का दायरा

  • अनुच्छेद 39(b) राज्य को निर्देश देता है कि सामुदायिक संसाधनों का समान वितरण हो।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी संपत्ति स्वतः "community resources" नहीं मानी जा सकती।
  • उदाहरण: किसी उद्योगपति की फैक्ट्री या निजी मकान केवल तभी सामुदायिक संसाधन माना जाएगा, जब इसका उपयोग सीधे सामुदायिक हित से जुड़ा हो।

(b) संपत्ति अधिग्रहण की शक्ति का स्रोत

  • यह शक्ति अनुच्छेद 39(b) से नहीं आती।
  • स्रोत:
    1. Eminent Domain सिद्धांत
    2. सातवीं अनुसूची, सूची III, प्रविष्टि 42

(c) वर्गीकरण के मानदंड

  • संपत्ति को सामुदायिक संसाधन मानने के लिए:
    • प्रकृति (पानी, जंगल, खनिज आदि)
    • उपलब्धता या कमी (scarcity)
    • सामुदायिक कल्याण पर प्रभाव
    • निजी हाथों में संकेंद्रण (concentration of wealth)

(d) आर्थिक नीतियों में लचीलापन

  • संविधान निर्माताओं का उद्देश्य किसी स्थायी आर्थिक मॉडल से राज्य को बाँधना नहीं था।
  • सरकार समय के अनुसार आर्थिक नीतियों में बदलाव कर सकती है।

(e) अनुच्छेद 31C की वैधता

  • केशवानंद भारती केस (1973) में मान्य ठहराया गया अनुच्छेद 31C अभी भी वैध है।
  • यदि कोई कानून अनुच्छेद 39(b) और 39(c) को लागू करने के लिए है, तो वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर भी सुरक्षित रहेगा।

(f) संतुलन की आवश्यकता

  • सार्वजनिक कल्याण और निजी संपत्ति के अधिकार के बीच संतुलन आवश्यक है।
  • राज्य के कार्य अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 300A (संपत्ति अधिकार) के अनुरूप होने चाहिए।

(g) Public Trust Doctrine

  • राज्य केवल मालिक नहीं बल्कि न्यासी (Trustee) है।
  • नागरिक इसके लाभार्थी (Beneficiaries) हैं।
  • संसाधनों का उपयोग भविष्य की पीढ़ियों के हित में होना चाहिए।

संपत्ति अधिकार का विकास-क्रम

(i) प्रारंभिक स्थिति (1950-1970s)

  • अनुच्छेद 19(1)(f): संपत्ति अर्जित करने, रखने और निपटाने का अधिकार।
  • अनुच्छेद 31(1): मनमाने वंचन से सुरक्षा।
  • अनुच्छेद 31(2): अधिग्रहण पर मुआवजा अनिवार्य।
  • सीमाएं: सार्वजनिक उद्देश्य, मुआवजा, न्यायिक समीक्षा।

(ii) पहला संशोधन (1951)

  • अनुच्छेद 31A जोड़ा गया।
  • कुछ कानूनों को चुनौती से संरक्षित किया।
  • कृषि सुधार को लागू करने की सुविधा।

(iii) चौथा संशोधन (1955)

  • मुआवजे की सीमित न्यायिक समीक्षा।

(iv) पच्चीसवाँ संशोधन (1971)

  • मुआवजा को “राशि” में बदल दिया।
  • संपत्ति अधिकार को अधिक प्रतिबंधित किया।
  • अनुच्छेद 31C जोड़ा गया।

(v) केशवानंद भारती केस (1973)

  • संसद संविधान संशोधन कर सकती है, पर मूल संरचना नहीं बदल सकती।
  • अनुच्छेद 31C आंशिक रूप से वैध ठहराया गया।

(vi) 44वाँ संविधान संशोधन (1978)

  • संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार से हटाकर अनुच्छेद 300A में रखा गया।
  • अब यह संवैधानिक अधिकार है, न कि मौलिक अधिकार।

निजी संपत्ति अधिग्रहण का सिद्धांत ( Eminent Domain )

मूल तत्व:

  1. सार्वजनिक उपयोग: अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य (सड़क, रेल, बांध, अस्पताल) के लिए।
  2. उचित मुआवज़ा: न्यायसंगत क्षतिपूर्ति।
  3. उचित प्रक्रिया: सूचना, सुनवाई और अपील का अवसर।
  4. कानूनी प्राधिकरण: केवल सरकार या अधिकृत निकाय।

सार्वजनिक न्यास सिद्धांत (Public Trust Doctrine)

  • राज्य = न्यासी (Trustee)
  • नागरिक = लाभार्थी (Beneficiaries)
  • उद्देश्य = प्राकृतिक संसाधनों का सतत एवं न्यायपूर्ण उपयोग
  • उदाहरण :  टी.एन. गोदावर्मन बनाम भारत संघ (1997)

हालिया निर्णय का प्रभाव

(a) विधायी प्रभाव

  • भूमि अधिग्रहण और सामाजिक कल्याण कानून प्रभावित।
  • सरकार को स्पष्ट आधार और उचित मुआवज़ा देना होगा।

(b) आर्थिक प्रभाव

  • निजी निवेशकों में भरोसा बढ़ेगा।
  • बाजार-उन्मुख सुधारों को बल मिलेगा।

(c) सामाजिक प्रभाव

  • भूमि पुनर्वितरण योजनाएं अधिक पारदर्शी।
  • न्याय और समानता में संतुलन।

(d) राजनीतिक प्रभाव

  • दलों के दृष्टिकोण में परिवर्तन।
  • भूमि सुधार और निजी संपत्ति पर बहस तेज।

(e) संवैधानिक प्रभाव

  • न्यायपालिका की भूमिका मजबूत।
  • अधिग्रहण को अनुच्छेद 14, 21 और 300A के तहत परखा जाएगा।

संपत्ति अधिकार का वर्तमान कानूनी ढांचा

  • संविधान: अनुच्छेद 300A
  • संरक्षा: कानून के बिना किसी को संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • अधिग्रहण के स्रोत: केंद्र/राज्य कानून या अधिकृत प्राधिकरण
  • सीमाएं: कार्यकारी आदेशों से नहीं, कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य।

ऐतिहासिक और सुप्रीम कोर्ट मामले

  • एके गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950)
    • राज्य की संपत्ति अधिग्रहण शक्ति की शुरुआत।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
    • संविधान की मूल संरचना और संशोधन शक्ति पर असर।
  • मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारत संघ (1980)
    • 42वें संशोधन का आंशिक निरस्तीकरण।
  • जिलुभाई नानभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य (1995)
    • संपत्ति अधिकार संविधान की मूल संरचना का हिस्सा नहीं।
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986)
    • कानून को न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिए।
  • बी.के. रविचंद्र बनाम भारत संघ (2020)
    • अनुच्छेद 300A और 21/265 के बीच संतुलन।

निष्कर्ष

  • संपत्ति का अधिकार अब मूल अधिकार नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकार है।
  • व्यक्तिगत संपत्ति की सुरक्षा से सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित हुआ।
  • निर्णय ने समानता, न्याय और विकास के बीच संतुलन स्थापित किया।
  • Public Trust Doctrine के माध्यम से संसाधनों का सतत और जिम्मेदार उपयोग सुनिश्चित।

प्रश्न: भारतीय संविधान में संपत्ति का अधिकार अब किस अनुच्छेद के तहत संरक्षित है ?

(a) अनु. 19(1)(f)

(b) अनु. 31

(c) अनु. 300A

(d) अनु. 32


प्रश्न: 44वें संविधान संशोधन (1978) का मुख्य प्रभाव क्या था ?

(a) संपत्ति अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर संवैधानिक अधिकार बनाया

(b) संपत्ति अधिकार को नए मौलिक अधिकार में जोड़ा

(c) अनुच्छेद 31C को निरस्त किया

(d) Eminent Domain को समाप्त किया

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