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असमिया गमछा: परम्परागत पहचान के विभिन्न स्वरूप

(प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-1: कला व संस्कृति)

चर्चा में क्यों?

असम में परम्परागत रूप से प्रचलित एक विशेष प्रकार के सूती गमछे (Assamese Gamosa) को कोविड-19 के प्रसार में रोकथाम हेतु मॉस्क के रूप प्रयोग किया जा रहा है।

पृष्ठभूमि-

लॉकडाउन के दौरान देशभर में कई नूतन प्रयोग किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में असम के कुछ गैर लाभकारी संगठन व समूहों ने आजीविका के साथ-साथ लोगों को स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु असमिया गमछे से मॉस्क बनाने का निर्णय लिया है।

क्या है असमी गमछा?-

  • गमछा असम के लोगों की सांस्कृतिक, क्षेत्रीय पहचान के साथ-साथ उपयोग की एक महत्वपूर्ण वस्तु है। असमी गमछा समान्यतया सूती कपड़े से बना हुआ एक सफेद आयताकार टुकड़ा होता है।
  • परम्परागत रूप से प्राय: इसमें तीन तरफ लाल रंग के किनारे होते हैं, जबकि चौथे तरफ से यह खुला होता है। खुले हुए मुँह की ओर मिश्रित रंगों की विभिन्न स्थानीय व प्राकृतिक कलाकृतियां बनी होती हैं। इन कलाकृतियों को बनाने में मुख्यतः लाल रंग का प्रयोग होता है, परंतु इसमें कई अन्य रंगों को मिलाकर भी इसे बनाया जा सकता है।
  • असमी गमछे को बनाने हेतु कच्चे माल के रूप में अधिकतर सूती धागों का प्रयोग होता है। फिर भी विशेष अवसरों पर इसे 'पेट सिल्क' (Pat Silk) से बनाया जाता है।
  • असम में परंपरागत रूप से दो प्रकार के गमछे बुने जाते हैं। इन्हें 'उका' (Uka) और 'फूलम' (Phulam) कहते हैं। उका समान्यतया सादे रंग के टुकड़े होते हैं, जिनका प्रयोग प्राय: गर्मियों में और नहाने के बाद किया जाता है।
  • फूलम का प्रयोग विशेष अवसरों पर होता है। बिहू (रंगोली बिहू) जैसे त्यौहार के समय, स्मृति चिन्ह व अन्य भेंट पर फूलम को उपहार स्वरूप प्रदान किया जाता है। इस पर स्थानीय फूल व फसलों की कलाकृतियां बने रहने के कारण इसे फूलम कहते हैं, परंतु वर्तमान में इसमें अन्य प्रकार की कलाकृतियां भी बनाई जाने लगी हैं। फूलम की अपेक्षा उका का प्रयोग अधिक किया जाता है।

सांस्कृतिक व राजनीतिक महत्त्व-

  • पारंपरिक रूप से असम में गमछा का प्रयोग होता आया है। असम के सांस्कृतिक इतिहासकारों के अनुसार, गमछा को असमी राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में पहचान वर्ष 1916 में मिली, जब 'असोम छात्र संमिलन' और 'असमिया साहित्य सभा' जैसे संगठनों का गठन हुआ। फूलम गमछे को गले में पहनना या लपेटना उस समय सांस्कृतिक पहचान बन गया था।
  • बाद में यह सांस्कृतिक के साथ-साथ राजनीतिक प्रतीक के रूप में भी प्रयोग होने लगा। वर्ष 1979 से 1985 के असम आंदोलन के दौरान गमछा राजनीतिक विरोध का प्रतीक बन गया। यह आंदोलन विदेशियों के विरोध से सम्बंधित था।
  • उल्फा उग्रवादी समूह भी क्रांतिकारी छापों के साथ इसका प्रयोग किया करते थे। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के विरोध के दौरान भी यह राजनीतिक एकता व विरोध के प्रतीक के रूप में पुनः उभरकर सामने आया।
  • इसके अतिरिक्त इस गमछे द्वारा विभिन्न सामाजिक संदेश भी दिये जाते हैं। जैसे इस समय विभिन्न विलुप्त प्राय वन्यजीवों की छाप या चिन्हांकन वाले मॉस्क बनाए जा रहे हैं। इससे वन्यजीवों के संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है। इनमें हरगिला, हाथी व गैंडे प्रमुख हैं। इनसे बने मॉस्क को धुलकर, सुखाकर व कीटाणुशोधन करके पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
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