(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।) |
संदर्भ
भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रणनीतिक और विशेष साझेदारी वाला संबंध है। वैश्विक भू-राजनीतिक उथल-पुथल, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन संघर्ष और भारत-अमेरिका संबंधों में हाल की तनातनी, ने इस साझेदारी को और महत्वपूर्ण बना दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल की हालिया मॉस्को यात्रा और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ उनकी मुलाकात ने इस साझेदारी को नए आयाम दिए हैं।
नए युग में भारत-रूस संबंध
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भारत और रूस (पूर्व सोवियत संघ) के बीच वर्ष 1971 की मैत्री संधि से शुरू हुई साझेदारी आज रणनीतिक और विशेषाधिकार प्राप्त साझेदारी के रूप में विकसित हुई है।
- वैश्विक भूमिका: दोनों देश BRICS, SCO और G20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करते हैं, जिससे वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूती मिलती है।
- रणनीतिक महत्व: रूस भारत के लिए रक्षा उपकरणों, परमाणु ऊर्जा और तेल आपूर्ति का प्रमुख साझेदार है, जबकि भारत रूस के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और कूटनीतिक सहयोगी है।
हाल के घटनाक्रम
- उच्च-स्तरीय बैठक:
- जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मॉस्को में 22वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
- विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जुलाई 2024 में ब्राजील (BRICS) और तियानजिन, चीन (SCO) में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से वार्ता की।
- रक्षा सहयोग: 6 अगस्त, 2025 को भारतीय राजदूत विनय कुमार ने रूस के उप रक्षा मंत्री कर्नल जनरल अलेक्जेंडर फोमिन के साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर चर्चा की।
- पहलगाम हमले पर समर्थन: 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद रूस ने भारत का समर्थन किया।
- पुतिन की भारत यात्रा: राष्ट्रपति पुतिन की वर्ष 2025 में प्रस्तावित भारत यात्रा की तैयारी लगभग हो चुकी हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करेगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की राष्ट्रपति पुतिन के साथ बैठक
- बैठक: 7 अगस्त, 2025 को NSA अजित डोभाल ने क्रेमलिन में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की।
- मुख्य बिंदु:
- NSA ने रूस के साथ भारत की "रणनीतिक और विशेष साझेदारी" को वैश्विक उथल-पुथल के बीच महत्वपूर्ण बताया।
- राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा की तैयारियों पर चर्चा, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक नया मोड़ लाएगी।
- रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु के साथ भी चर्चा, जिसमें बहुपक्षीय सहयोग और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ।
- महत्व: यह मुलाकात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद के लिए अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने के एक दिन बाद हुई, जो भारत-रूस संबंधों की रणनीतिक गहराई को दर्शाती है।
द्विपक्षीय तेल व्यवसाय
- रूसी तेल आयात
- रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद भारत रूस से कच्चे तेल का प्रमुख आयातक बन गया है, जो वर्ष 2022 में 2% से बढ़कर वर्ष 2024 में 40% से अधिक हो गया।
- भारत ने वर्ष 2024 में रूस से 1.97 मिलियन बैरल प्रति दिन तेल आयात किया, जो सस्ती कीमतों के कारण आर्थिक रूप से लाभकारी रहा।
- अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव
- 6 अगस्त, 2025 को अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल आयात के लिए अतिरिक्त शुल्क लगाया, जिसे विदेश मंत्रालय ने "अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण" बताया।
- भारत ने इस शुल्क को नजरअंदाज करते हुए रूस के साथ तेल व्यापार को जारी रखने का संकल्प लिया।
- आर्थिक प्रभाव: रूस से तेल आयात ने भारत के व्यापार घाटे को कम करने और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में मदद की है।
चुनौतियां
- भू-राजनीतिक दबाव:
- अमेरिका और पश्चिमी देशों का दबाव भारत को रूस के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिए मजबूर करता है।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और ऊर्जा बाजारों को प्रभावित किया है।
- आर्थिक जोखिम:
- रूसी तेल पर निर्भरता भारत को वैश्विक तेल मूल्य अस्थिरता और प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
- अमेरिकी शुल्क भारत के निर्यात और व्यापार संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।
- रक्षा आपूर्ति में देरी: रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति में देरी हुई है।
- वैश्विक ध्रुवीकरण: भारत को रूस और पश्चिमी देशों के बीच तटस्थता बनाए रखने की चुनौती है, खासकर BRICS और SCO जैसे मंचों पर।
- सार्वजनिक धारणा: रूस के साथ गहरे संबंधों को लेकर कुछ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आलोचनाएं सामने आती हैं, जो भारत की तटस्थ विदेश नीति को प्रभावित कर सकती हैं।
आगे की राह
- विविधीकरण और संतुलन:
- भारत को रूसी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों से तेल आयात बढ़ाना चाहिए।
- रूस के साथ रक्षा सहयोग को मजबूत करते हुए स्वदेशी रक्षा उत्पादन (मेक इन इंडिया) पर जोर देना चाहिए।
- कूटनीतिक संतुलन:
- भारत को रूस और पश्चिमी देशों के बीच तटस्थता बनाए रखने के लिए बहुपक्षीय मंचों (BRICS, SCO, G20) का उपयोग करना चाहिए।
- वैश्विक दक्षिण के देशों (जैसे ब्राजील) के साथ सहयोग को और मजबूत करना चाहिए।
- आर्थिक सहयोग:
- रूस के साथ व्यापार को गैर-तेल क्षेत्रों, जैसे प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा, में विस्तारित करना चाहिए।
- रूसी निवेश को भारत में नवीकरणीय ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में आकर्षित करना चाहिए।
- संघर्ष समाधान में भूमिका: भारत रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है, जैसा कि पीएम मोदी ने वर्ष 2024 में मॉस्को में सुझाव दिया था।
- विशेषज्ञ समितियां: दोनों देशों को संयुक्त कार्य बल गठित करना चाहिए ताकि रक्षा, ऊर्जा और व्यापार में सहयोग को और गहरा किया जा सके।