New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

बायो-डीकम्पोजर तकनीक : वायु प्रदूषण पर लगाम का प्रयास

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : पर्यावरण व कृषि)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, वैज्ञानिकों द्वारा फसल अवशिष्ट और पराली को खाद/कम्पोस्ट में परिवर्तित करने हेतु बायो-डीकम्पोजर तकनीक का विकास किया गया है। इसका नाम 'पूसा डीकम्पोजर' रखा गया है।

पूसा डीकम्पोजर (PUSA Decomposer)

  • § पूसा डीकम्पोजर कैप्सूल के रूप में होता है, जो कवक स्ट्रेन से बने होते हैं। इन कैप्सूलों को पहले से तैयार इनपुट का प्रयोग करके तरल सामग्री का निर्माण किया जाता है। इस तरल को 8-10 दिनों के किण्वन के बाद फसल के अवशेष पर छिडकाव किया जाता है, जो धान के पुआल आदि के सामान्य से तीव्र गति से जैव अपघटन व सड़ने में सहायक होते हैं।
  • इसमें प्रयुक्त कवक जैव-निम्नीकरण की प्रक्रिया के लिये आवश्यक एंजाइमों का उत्पादन करते हैं।
  • पूसा डीकम्पोजर के 4 कैप्सूल को गुड़ और काबुली चने (Chickpea) के आटे के साथ मिलाकर 25 लीटर तरल मिश्रण तैयार किया जा सकता हैं। यह मिश्रण 1 हेक्टेयर भूमि के लिये पर्याप्त है।

पराली और कानूनी प्रावधान

  • वर्ष 2013 में पंजाब सरकार ने पराली को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने को प्रतिबंधित कर दिया था। पराली की समस्या से निपटने हेतु हैप्पी सीडर्स और रोटावेटर के माध्यम से किसानों को सहायता करने का भी निर्देश दिया था।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत यह एक अपराध है।
  • हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु एक स्थाई आयोग गठित करने के लिये अध्यादेश भी लाया गया है।

लाभ

  • सामान्य परिस्थितियों में धान के पुआल के जैव-निम्नीकरण में लगभग 45 दिन का समय लग जाता है, जबकि पूसा डीकम्पोजर से यह प्रक्रिया लगभग 20 दिन में पूर्ण हो जाती हैं। इससे गेहूं की फसल के लिये खेत की तैयारी हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है।
  • डीकम्पोजर मृदा की उर्वरता और उत्पादकता में वृद्धि करता है क्योंकि पुआल जैविक खाद के रूप में कार्य करता है। साथ ही, इससे उर्वरक की खपत भी कम हो जाती है।
  • पराली को जलाने से पर्यावरण को क्षति पहुँचती है तथा मृदा की उर्वरता में भी कमी आती है और उपयोगी बैक्टीरिया व कवक भी नष्ट हो जाते हैं।
  • पराली के जलाने पर अंकुश लगाने के लिये यह एक कुशल, प्रभावी, सस्ती, व्यावहारिक और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक है, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं उन्नयन केंद्र के एक अध्ययन के अनुसार, हैप्पी सीडर्स और सुपर एस.एम.एस. मशीनों के प्रयोग से कृषि उत्पादकता में 10% से 15% तक वृद्धि हो सकती है। साथ ही, इससे श्रम लागत को कम करने और मृदा को अधिक उपजाऊ बनाने में सहायता मिलती है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR