New
Holi Offer: Get 40-75% Discount on all Online/Live, Pendrive, Test Series & DLP Courses | Call: 9555124124

जैव-विविधता शासन: समझौते और कानून

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

पृष्ठभूमि

विगत दशकों में, जैव विविधता में व्यापक हानि ने विकसित व विकासशील सभी देशों को अत्यधिक प्रभावित किया है। इस कारण से ‘वैश्विक जैव विविधता शासन’ के विकास को गति मिली है। प्रजातियों के विलुप्त होने, अति-कटाई, विदेशी प्रजातियों को अपनाने, निवास स्थान के नुकसान, प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के कारण हाशिये पर स्थित समुदायों के जोखिम में वृद्धि हुई है। जैव विविधता के नुकसान की इन चिंताओं ने मानव जाति की विकास आवश्यकताओं के साथ संसाधन उपलब्धता को एकीकृत व समन्वित करने के क्रमिक पुनर्मूल्यांकन का प्रयास किया है।

आरम्भ

  • जैव विविधता में तीव्र गति से हो रहे नुकसान के परिणामस्वरूप इसके कारणों पर चिंतन हेतु दुनिया भर के देश वर्ष 1992 में रियो शिखर सम्मेलन में साथ आए।
  • इसी सम्मलेन के दौरान ही प्रकृति की सुरक्षा के लिये जैविक विविधता अभिसमय (Convention of Biological Diversity- CBD:सी.बी.डी.) सहित मुख्य रूप से बाध्यकारी अन्य अभिसमयों को अपनाया गया था।
  • 197 देशों द्वारा सी.बी.डी. का पक्षकार बने हुए 25 वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है। इनमें से कई देशों ने जैव विविधता की रक्षा के लिये अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

जैविक विविधता पर अभिसमय (सी.बी.डी.)

  • जैविक विविधता पर अभिसमय (सी.बी.डी.) कानूनी रूप से बाध्यकारी एक बहुपक्षीय संधि है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य हैं।
  • इन तीन लक्ष्यों में शामिल है- जैविक विविधता (या जैव विविधता) का संरक्षण, इसके घटकों का सतत उपयोग तथा आनुवंशिक संसाधनों से होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत साझाकरण।
  • 5 जून 1992 को रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान सी.बी.डी. पर हस्ताक्षर के लिये प्रस्ताव लाया गया था तथा 29 दिसम्बर 1993 को यह अभिसमय लागू हुआ।

सी.बी.डी. की सफलता

  • सी.बी.डी. ने लक्ष्यों के अनुरूप जैव-विविधता के अनुचित प्रयोग पर नीतिशास्रीय रोक लगाने की नींव रखी। साथ ही, इसके अनुच्छेद 15 व अनुच्छेद 8 (J) के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उसके लक्ष्यों व प्राथमिकताओं की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया।
  • सी.बी.डी. के अनुच्छेद 15 द्वारा राज्यों को उनके आनुवंशिक संसाधनों के अधिकार को स्वीकृति प्रदान की गई है, जबकि अनुच्छेद 8 (J) के माध्यम से समुदायों को उनके पारम्परिक ज्ञान के अधिकारों को मान्यता दी गई है।
  • इन दिशा निर्देशों को ध्यान में रखते हुए सी.बी.डी. के अधिकांश हस्ताक्षरकर्त्ता देश वर्ष 2010 में जापान के नागोया में पुन: मिले तथा नागोया प्रोटोकॉल को अपनाया गया। इस प्रोटोकॉल का उद्देश्य सी.बी.डी. के निष्पक्ष व न्यायसंगत बंटवारे के प्रावधानों को प्रभावी बनाना है।

सी.बी.डी. के अंतर्गत दो प्रमुख प्रोटोकॉल

  • सी.बी.डी. के दो पूरक समझौते भी हैं– पहला कार्टाजेना प्रोटोकॉल (Cartagena Protocal) तथा दूसरा नागोया प्रोटोकॉल (Nagoya Protocol)।
  • जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (LMO) के संचालन को नियंत्रित करती है।
  • नागोया प्रोटोकॉल आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग से होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण पर ध्यान देता है। सरल शब्दों में, नागोया प्रोटोकॉल के द्वारा आनुवंशिक संसाधनों के वाणिज्यिक और अनुसंधानगत उपयोग को इस प्रकार सुनिश्चित किया गया जिससे ऐसे संसाधनों का संरक्षण करने वाले देशों और समुदायों के साथ लाभों को साझा किया जा सके।
  • सी.बी.डी. के अनुसार, आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच राष्ट्रीय सरकार के पास निहित होने के साथ-साथ यह विषय राष्ट्रीय कानून के अधीन है। इस निर्णय ने जैव संसाधनों के उपयोग की शक्ति का संतुलन उपयोगकर्ता देशों से प्रदाता देशों में स्थानांतरित कर दिया।

भारत द्वारा किये गए प्रयास

  • एक प्रमुख वृहद्-जैव विविधता वाले देश भारत ने वर्ष 2002 में जैव-विविधता के नुकसान को रोकने के साथ-साथ नुकसान से होने वाले प्रभावों को रिवर्स करने के उद्देश्य से जैविक विविधता अधिनियम (बी.डी. एक्ट) को अपनाया।
  • बी.डी. अधिनियम भारत की विशाल जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह एक अग्रणी कानून माना जाता है क्योंकि इस कानून के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों पर देश के सम्प्रभु अधिकार को मान्यता दी गई।
  • सी.बी.डी. के अनुसरण में, बी.डी. अधिनियम के द्वारा अन्य देशों की तरह भारत को भी अपने प्राकृतिक संसाधनों पर सम्प्रभु अधिकार को मान्यता मिली। साथ ही, इससे जैव-संसाधनों के अन्य उपयोगकर्ता देशों को प्रतिबंधित भी किया गया।
  • बी.डी. अधिनियम एक प्रकार से गेम-चेंजर था जो संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग को सुनिश्चित करता है। इससे लाभों के उचित साझाकरण में स्थानीय आबादी को बढ़ावा मिला है।

जैव-विविधता अधिनियम के प्रमुख पहलू

  • बी.डी. अधिनियम के तहत, एक महत्त्वपूर्ण नियामक तंत्र द्वारा स्थानीय आबादी तक संसाधनों के पहुँच और लाभ-साझाकरण (Access and Benefit-Sharing- ABS: ए.बी.एस.) पर ज़ोर दिया गया था।
  • सी.बी.डी. के एक दशक के भीतर ए.बी.एस. को एकीकृत करने के बाद, भारत को एक अग्रणी देश के रूप में माना जाने लगा। सी.बी.डी. पर हस्ताक्षर करने वाले 197 देशों में से केवल 105 देश ने ही जैव संसाधनों के विनियामक उपयोग के लिये राष्ट्रीय कानून का निर्माण किया।
  • बी.डी. अधिनियम इन संसाधनों पर देश की सम्प्रभुता या समुदाय के अधिकारों से समझौता किये बिना सम्भवत: सबसे विकेंद्रीकृत तरीके से जैव संसाधनों के प्रबंधन सम्बंधी मुद्दों का समाधान करता है। इसके माध्यम से संसाधनों के वास्तविक मालिकों के लिये लाभ को भी सुनिश्चित किया गया।
  • यह अधिनियम उन परिस्थितियों और शर्तों को भी सूचीबद्ध करता है जिनके तहत व्यक्ति, वाणिज्यिक फर्म और अन्य संस्थान जैविक संसाधनों तथा उससे सम्बंधित सूचना तक पहुँच सकते हैं। इन संसाधनों का उपयोग या तो अनुसंधान, वाणिज्यिक उपयोग, जैव-सर्वेक्षण या जैव-उपयोग के लिये किया जा सकता है।
  • यह अधिनियम इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी सक्षम अधिकारी से विशिष्ट अनुमोदन के बिना भारत में उत्पन्न आनुवंशिक सामग्री के हस्तांतरण पर यह प्रतिबंध लगाता है।
  • इसके तहत देश में त्रि-स्तरीय संरचनाओं का निर्माण किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA), राज्य स्तर पर राज्य जैव विविधता बोर्ड (SSB) तथा स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) का गठन किया गया।
  • इससे यह संदेश दिया गया कि आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से गरीब लोगों को बाईपास नहीं किया जाना चाहिये।

संसाधनों तक पहुँच और लाभ-साझाकरण (Access and Benefit-Sharing- ABS)

  • बी.डी. अधिनियम को अपनाने के साथ ही सी.बी.डी. के सिद्धांतों को साकार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • यह महसूस किया गया कि सभी देशों के लिये स्वीकार्य एक कुशल व प्रभावी तंत्र तथा जैव संसाधनों सम्बंधी मुद्दों के लिये एक संदर्भ बिंदु को अपनाने की आवश्यकता है।
  • सी.बी.डी. के साथ वर्ष 1992 में शुरू हुई एक प्रक्रिया के अंतर्गत ही नागोया प्रोटोकॉल के तहत विस्तृत कार्रवाई बिंदुओं को अपनाया गया था।
  • जल्द ही देशों ने नियामक ढ़ाँचों को अपनाने के लिये राष्ट्रीय कानून को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की। इसमें भी भारत ने अग्रणी नेतृत्व करते हुए वर्ष 2014 में ए.बी.एस. दिशानिर्देशों को अपनाया।

भारत के लिये लाभ

  • भारत, आनुवांशिक संसाधनों और इससे जुड़े पारम्परिक ज्ञान के दुरुपयोग या जैव-चोरी (Bio-Piracy) का शिकार था जो अन्य देशों में पेटेंट किये गए थे। इसके प्रसिद्ध उदाहरणों में नीम व हल्दी शामिल हैं।
  • जैव-चोरी के शिकार भारत सहित अन्य विकासशील देशों ने इन ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के लिये कई अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में कड़ा संघर्ष किया और जीत हासिल करने में सफल रहे।
  • उम्मीद है कि ए.बी.एस. पर नागोया प्रोटोकॉल ने इस चिंता का समाधान किया है जिस समस्या को सी.बी.डी. में स्थान नहीं दिया गया था।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR