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 चीन के संदेहास्पद समुद्री दावे 

(प्रारंभिक परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं एवं मानचित्र आधारित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : द्विपक्षीय और भारत से संबंधित, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ

हाल ही में, पेंटागन के प्रमुख लॉयड ऑस्टिन ने दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों का खंडन किया है। अपने वक्तव्य में इन्होने कहा कि समुद्री क्षेत्र पर चीन के दावे का अंतर्राष्ट्रीय कानून में कोई आधार नहीं है।

दक्षिण-चीन सागर- एक नज़र में

  • दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर का भाग है। इसमें लगभग 250 छोटे बड़े निर्जन द्वीप हैं। यह सिंगापुर से लेकर ताइवान तक लगभग 35 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में स्पार्टली एवं पार्सल द्वीपसमूह शामिल हैं। इसके तटवर्ती देशों में चीन, ताइवान, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम आदि शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। यह दुनिया के व्यस्ततम जलमार्गों में से एक है। वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग तीस प्रतिशत हिस्सा इसी क्षेत्र से होकर गुज़रता है। यहाँ पर कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के प्रचुर भंडार विद्यमान होने की संभावना व्यक्त की गई है। यह क्षेत्र मत्स्यन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।

    दक्षिण चीन सागर के प्रति चीन का दृष्टिकोण

    • चीननाइन डैश लाइनकी अवधारणा के आधार पर दक्षिणी चीन सागर के लगभग 90 प्रतिशत भाग पर अपना दावा करता है। चीन अपने इस दावे की पुष्टि ऐतिहासिकता के आधार पर करता है। इसके अनुसार, दक्षिणी चीन सागर के द्वीपों की खोज सबसे पहले चीन के हान राजवंश ने की थी। हालाँकि, वर्ष 2016 में अंतर्राष्टीय ट्रिब्यूनल ने दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों के विरुद्ध निर्णय देते हुए दावों को गैर-कानूनी बताया था।
    • चीन ने दक्षिणी चीन सागर में कई विवादित द्वीपों का निर्माण किया है। उसने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी का भी विस्तार किया है। चीन ने इस क्षेत्र में बंदरगाह सुविधाओं, सैन्य प्रतिष्ठानों एवं हवाई पट्टियों का भी निर्माण किया है। चीन की इस प्रकार की आक्रामक गतिविधियों को दक्षिणी चीन सागर के अन्य तटवर्ती देश अपने संप्रभु क्षेत्रों एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण मानते हैं।

    दक्षिण चीन सागर एवं अमेरिका

    • दक्षिण चीन सागर के संबंध में अमेरिका कोई क्षेत्रीय दावा प्रस्तुत नही करता है, किंतु इस क्षेत्र में चीन की आक्रामकता का विरोध करता है। अमेरिका इस क्षेत्र से व्यापारिक जहाज़ों के सुरक्षित संचालन पर बल देता है। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
    • दक्षिण चीन सागर जो कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र का ही भाग है, अमेरिकी दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में 1.9 ट्रिलियन डॉलर का अमेरिकी व्यापार इसी क्षेत्र से होकर गुज़रा। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में इस क्षेत्र से वैश्विक निर्यात का 42 प्रतिशत तथा आयात का 38 प्रतिशत गुज़रने की संभावना है।
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से ही अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, जापान एवं चीन को चतुर्भुज सुरक्षा (QUAD) वार्ता के अंतर्गत लाया है। यह संगठन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही अमेरिका ने आसियान एवं पूर्वी एशियाई देशों के लिये वित्तीय सहायता में  वृद्धि की है तथा इनके साथ द्विपक्षीय रक्षा सहयोग भी बढाया है।   

    दक्षिण चीन सागर एवं भारत 

    • दक्षिण चीन सागर के प्रति चीन का आक्रामक रुख हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा के संबंध में प्रमुख बाधा है। इसके कारण भारत की वैदेशिक नीति ( एक्ट ईस्ट नीति, हिंद प्रशांत नीति एवं आसियान देशों से संबंध) तथा आर्थिक हित प्रभावित हो रहे हैं। भारत इस क्षेत्र में शांति का पक्षधर रहा है। भारत ने इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि (UNCLOS) के पालन का समर्थन किया है, जिसका समय-समय पर चीन द्वारा उल्लंघन किया जाता है।
    • भारत दक्षिण चीन सागर का तटवर्ती राज्य नहीं है, परंतु उसके व्यापक आर्थिक हित इस क्षेत्र से जुड़े हैं। प्रतिवर्ष भारत का लगभग 200 बिलियन डॉलर का व्यापार इसी क्षेत्र से संचालित होता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ भारत का लगभग 55 प्रतिशत व्यापार इसी जल क्षेत्र से होकर गुज़रता है। साथ ही, भारत की ऊर्जा आवश्यकता की आपूर्ति एवं सुरक्षित व्यापारिक मार्गों के लिये इस क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था का सुदृढ़ होना आवश्यक है।
    • भारत एवं चीन के मध्य सीमा विवाद, तिब्बत के प्रति भारत का संवेदनशील रुख, दलाई लामा को शरण देना इत्यादि अन्य विवाद के प्रमुख बिंदु रहे हैं। विगत वर्ष गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशो के रिश्ते और भी तनावपूर्ण हो गए हैं। 

    निष्कर्ष 

    दक्षिण चीन सागर से संबंधित विवादों को आपसी सहमती से ही सुलझाया जा सकता है। इस क्षेत्र में अनावश्यक आक्रामक गतिविधियों से सागर के सीमावर्ती देशों को नुकसान उठाना पड सकता है। इस समस्या के समाधान के लिये आवश्यक है कि सीमावर्ती देश अपनी मानसिकता में परिवर्तन करते हुए एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें।

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