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जलवायु परिवर्तन तथा भारतीय शहर 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्या परीक्षा प्रश्नपत्र-3;,पर्यावरण प्रदूषण, प्रभाव तथा आंकलन, पर्यावरण संरक्षण में तकनीक का प्रयोग से सबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की कि महाराष्ट्र के लगभग 40 शहर संयुक्त राष्ट्र समर्थित 'रेस टू ज़ीरो' वैश्विक अभियान में शामिल होंगे, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास के लक्ष्यों को पूरा करते हुए रोज़गार सृजित करना है।

विभिन्न भारतीय शहरों में जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियाँ

  • महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है, जिसे कई जोखिमों, जैसे- बाढ़, सूखा, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि आदि का  सामना करना पड़ता है और यहाँ जलवायु प्रतिरोधी विकास (Climate- Resilient Development) के संदर्भ में नीतिगत कार्रवाइयाँ भी अपर्याप्त हैं।
  • अधिकांश भारतीय शहरों के पास जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये परियोजनाओं का समूह है।
  • अहमदाबाद जैसे शहर के पास वर्ष 2010 से हीट एक्शन प्लान (HAP) है, इसकी कारण गर्मी से होने वाली मृत्यु दर में कमी आई है। एच.ए.पी. में प्रमुख सरकारी विभाग, गैर सरकारी संगठन, शोधकर्ता और नागरिक शामिल हैं।
  • एच.ए.पी. मुख्यत: उच्च जोखिम वाले सामाजिक समूहों, जैसे दैनिक मजदूरों, कम आय वाले समूहों, महिलाओं और बुजुर्गों पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • अवसंरचनात्मक हस्तक्षेपों (उदाहरण के लिये, छतों को सफेद रंग देना) और व्यवहार संबंधी पहलुओं (गर्मी के प्रबंधन पर जन जागरूकता का प्रयास) को मिलाकर इस मॉडल का अन्य शहरों में भी विस्तार किया जा रहा है।
  • तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव बहाली और बेंगलुरु में शहरी आर्द्रभूमि प्रबंधन जैसे प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बहाल किया गया है। विदित है कि आर्द्रभूमि प्रबंधन शहरी बाढ़ को नियंत्रित करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • हाल ही में, दिल्ली में दो स्मॅाग टावर स्थापित किये गए हैं। इसी वर्ष बेंगलुरु और चंडीगढ़ ने भी स्मॉग टावर लगाए हैं।
  • मुंबई की स्वच्छ वायु योजना शहर के प्रमुख यातायात चौराहों पर वायु निस्पंदन इकाइयों (Air Filteration Unit) को स्थापित करने के लिये शुरू की गई है।

चुनौतियाँ

  • शहर विभिन्न जोखिमों से निपटने के लिये अलग- अलग रणनीतियाँ अपनाते हैं, जबकि इसके लिये एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • भारत की लंबी तटरेखा तथा अत्यधिक संवेदनशील तटीय शहरों और बुनियादी ढाँचे के बावजूद तटीय बाढ़, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और चक्रवातों पर कम चर्चा की जाती है।
  • भारतीय शहरों  में आपदा पूर्व तैयारी की अपेक्षा आपदा पश्चात् प्रबंधन पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे क्षति की संभावना बढ़ जाती है।
  • शहरी स्तर पर अपर्याप्त वित्त और राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव भारतीय शहरों को जोखिमों के प्रति और अधिक सुभेद्य बनाते हैं।
  • अपर्याप्त संस्थागत क्षमता तथा सरकारी विभागों में उचित कार्यशैली का अभाव सुभेद्यता में वृद्धि करते हैं।
  • शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार करने वाले स्मॉग टावरों या किसी अन्य बाहरी वायु निस्पंदन इकाइयों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है, इनकी तैनाती अक्सर विज्ञान के बजाय प्रतीकात्मकता से प्रेरित होती है।

समाधान

  • विभिन्न जोखिमों के लिये अलग-अलग रणनीतियों अपनाने के स्थान पर एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जैसे चेन्नई एक साथ बाढ़ तथा जल अभाव की विरोधाभासी स्थितियों का सामना करता हैं।
  • प्रकृति-आधारित समाधानों, जैसे- मैंग्रोव बहाली तथा आर्द्रभूमि प्रबंधन को अपनाकर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बहाल करते हुए मानव प्रणालियों को भी लाभ पहुँचाया जा सकता है।
  •  स्मॉग टावर स्वच्छ हवा की दिशा में प्रगति का भ्रम पैदा करते हैं, वे तत्काल कार्रवाई की माँग करने वाले क्षेत्रों से ध्यान हटाकर नीति निर्माताओं और नागरिकों को गुमराह करते हैं। इसलिये, बाह्य वायु निस्पंदन प्रणाली में निवेश करने वाली सरकारों को अपनी इस योजना के वैकल्पिक समाधानों के बारे में विचार करना चाहिये।
  • नए स्थापित स्मॉग टावरों की प्रभावशीलता पर डाटा स्वतंत्र मूल्यांकन के लिये सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिये। जब तक उनकी प्रभावशीलता पर वैज्ञानिक सहमति नहीं होती, तब तक नए स्मॅाग टावर की स्थापना से बचना चाहिये।
  • नीति निर्माताओं को सीमित या बिना वायु गुणवत्ता निगरानी वाले क्षेत्रों में वायु प्रदूषण निगरानी का विस्तार कर शहरों में पूर्वानुमान क्षमता को मजबूत करना चाहिये।
  • उन क्षेत्रों में जहाँ कोई निगरानी बुनियादी ढाँचा नहीं है, उपग्रह अवलोकनों के संयोजन से कम लागत वाली वायु गुणवत्ता निगरानी जैसे विकल्पों का पता लगाया जाना चाहिये।
  • शहरों को पारदर्शी वैज्ञानिक संस्थानों के साथ सहयोग करके अपनी वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान प्रणाली को मज़बूत करना चाहिये तथा इनका उपयोग संभावित उच्च प्रदूषण वाले दिनों में यात्रा प्रतिबंध, व्यावसायिक गतिविधियों को रोकने या घर से काम करने को प्रोत्साहित करने जैसे निवारक उपायों को लागू करने में किया जाना चाहिये।
  • शहर-स्तरीय उत्सर्जन सूची को समय-समय पर अद्यतन किया जाना चाहिये, ये आँकड़े वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों की पहचान करने और स्थानीय संदर्भ के अनुसार प्रभावी स्वच्छ वायु योजनाओं को डिज़ाइन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिये, जिनकी पहुँच खाना पकाने के लिये स्वच्छ ऊर्जा तक नहीं है, स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • प्राथमिक ईंधन के रूप में एलपीजी के निरंतर उपयोग को सुनिश्चित करने के साथ-साथ इन घरों में एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। पहल योजना इसमें प्रभावकारी भूमिका निभा रही है।
  • शहरों को बदलने में निहित एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू बदलते व्यवहार और जीवन शैली पर ध्यान केंद्रित करना है, जैसे- स्थानीय जैव विविधता को बढ़ाना; जैविक कचरे से खाद बनाना और लैंडफिल दबाव को कम करना;  सामूहिक कृषि को बढ़ावा देना, समुदायों को करीब लाना और खाद्य फ़सलें उगाने के बारे में जागरूकता का प्रसार  करना आदि।

निष्कर्ष

भारत में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है, ऐसे में जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इनके सतत् समाधान हेतु उपयुक्त कदम उठाते हुए ऐसी जोखिम प्रबंधन प्रणालियों में निवेश करना होगा, जो तकनीकी रूप से कुशल तथा प्रमाणित हों तभी हम वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में सफल होंगे।

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