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डी.एन.ए. विधयेक और सम्बंधित आशंकाएँ

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान, भारतीय राज्यतंत्र और शासन : अधिकार सम्बंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2, 3 व 4 : शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका, भेदभाव रहित तथा गैर-तरफदारी, निष्पक्षता)

चर्चा में क्यों?

जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थाई समिति ने डी.एन.ए. विधेयक के सम्बंध में कुछ चिंताएँ व्यक्त की हैं।

डी.एन.ए. कानून : संक्षिप्त इतिहास

  • वर्ष 1994 में अमेरिका द्वारा डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी कानून लाया गया। इसके बाद लगभग 60 देशों ने इससे सम्बंधित कानून बनाए।
  • वर्ष 1985 में भारतीय अदालतों द्वारा डी.एन.ए. साक्ष्य को पहली बार स्वीकार किया गया परंतु जनवरी 2019 में इस मुद्दे पर संसद में पेश किसी विधेयक को पहली बार लोकसभा द्वारा पारित किया गया। इसके बाद इस विधयेक को जाँच के लिये संसद की एक स्थाई समिति को भेज दिया गया।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 में अपराधों को रोकने के लिये डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग शुरू करने वाला भारत का पहला राज्य आंध्रप्रदेश बना।

पृष्ठभूमि

  • इस विधयेक का पूरा नाम ‘डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019’ है।
  • इस विधयेक के माध्यम से डी.एन.ए. नियामक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव किया गया है, जिससे प्राप्त उपयुक्त जानकारी का उपयोग करके देश में डी.एन.ए. परीक्षण गतिविधियों के वैज्ञानिक उन्नयन और उन्हें सुव्यवस्थित करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • इसके अतिरिक्त विधेयक में राष्ट्रीय डी.एन.ए. डाटा बैंक और क्षेत्रीय डी.एन.ए. डाटा बैंकों की स्थापना का प्रावधान है।
  • साथ ही यह भी परिकल्पना की गई है कि प्रत्येक डाटाबैंक अपराध, अपराधियों और संदिग्धों के सूचकांक के साथ-साथ लापता व्यक्तियों तथा अज्ञात मृतक व्यक्तियों से सम्बंधित सूचकांक को भी बनाए रखेगा।
  • ध्यातव्य है कि अपराध सम्बंधी मुद्दों को हल करने और लापता व्यक्तियों की पहचान के लिये डी.एन.ए. आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग विश्व भर में हो रहा है।

उद्देश्य

  • इस विधेयक का उद्देश्य गुमशुदा व्यक्तियों, पीड़ितों, अपराधियों के साथ-साथ अज्ञात मृत व्यक्तियों की पहचान के लिये डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी के उपयोग और अनुप्रयोग का नियमन करना है।
  • साथ ही, प्राथमिक अपेक्षित उद्देश्य देश की न्याय वितरण प्रणाली को समर्थ और मज़बूत बनाने के लिये डी.एन.ए.-आधारित फोरेंसिक प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग का विस्तार करना है। इसके लिये डी.एन.ए. प्रयोगशालाओं को अनिवार्य रूप से मान्यता प्रदान करने के अतिरिक्त इनका विनियमन भी किया जाएगा।
  • इससे देश में इस तकनीक के विस्तारित उपयोग के साथ डी.एन.ए. परीक्षण के परिणामों की विश्वसनीयता भी सुनिश्चित की जा सकेगी। साथ ही नागरिकों के निजता के अधिकार के अनुरूप डी.एन.ए. डाटा को संरक्षित और सुरक्षित रखने तथा इसका इसका दुरुपयोग न होने का भी आश्वासन दिया गया है।
  • प्रस्तावित विधेयक पूरे देश में डी.एन.ए. परीक्षण में शामिल सभी प्रयोगशालाओं में समान कोड ऑफ प्रैक्टिस के विकास को गति प्रदान करेगा।

लाभ

  • समिति द्वारा उठाई गयी चिंताओं के अतिरिक्त लापता बच्चों और महिलाओं की पहचान तथा संरक्षण के लिये ऐसे विधयेक की तत्काल आवश्यकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग एक लाख बच्चे लापता हो जाते हैं।
  • साथ ही यह विधयेक आपदा पीड़ितों और बार-बार बलात्कार व हत्या जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त अपराधियों और अज्ञात बीमारियों की पहचान करने में सहायक होगा।
  • डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग के उपयोग से माता-पिता की पहचान भी सम्भव है।
  • प्रस्तावित कानून डी.एन.ए. साक्ष्य के अनुप्रयोग को सक्षम करके आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली को सशक्त करेगा।

स्थाई समिति की रिपोर्ट

  • स्थाई समिति के अनुसार, विधयेक में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिनका जाति या समुदाय आधारित सैम्पलिंग और प्रोफाइलिंग के लिये दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग किसी व्यक्ति की अत्यंत संवेदनशील जानकारी, जैसे- वंशावली और व्युत्पत्ति, त्वचा का रंग, व्यवहार, बीमारी, स्वास्थ्य की स्थिति तथा रोगों के प्रति संवेदनशीलता को भी प्रकट कर सकती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विधेयक के प्रावधानों के तहत, आनुवंशिक डाटा द्वारा ऐसी कुछ जानकारी तक पहुँच का दुरुपयोग विशेष रूप से लक्षित व्यक्तियों और उनके परिवारों के विरुद्ध किया जा सकता है।
  • विशेष रूप से यह इसलिये भी चिंताजनक है क्योंकि इसका उपयोग किसी विशेष जाति या समुदाय को आपराधिक गतिविधियों से गलत तरीके से जोड़ने के लिये भी किया जा सकता है।

डाटाबेस में क्या शामिल है?

  • समिति के अनुसार अधिनियम व्यक्तिगत गोपनीयता और अन्य सुरक्षा उपायों की अवहेलना करता है क्योंकि इसमें भविष्य की जाँच के लिये संदिग्धों, विचाराधीन कैदियों, पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों के डी.एन.ए. प्रोफाइल को संग्रहीत करने का प्रावधान है।
  • हालाँकि, डी.एन.ए. डाटाबेस की मदद से बार-बार अपराध करने वाले अपराधियों को आसानी से पहचाना जा सकता है, परंतु ऊपर बताए गए अन्य श्रेणियों के डी.एन.ए. डाटाबेस हेतु कोई कानूनी या नैतिक औचित्य नहीं है, अत: इसके दुरुपयोग की अत्यधिक सम्भावना है।
  • अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध में गिरफ्तार किया जाता है, जिसकी सज़ा सात वर्ष तक की है तो अधिकारियों को उसका डी.एन.ए. नमूना लेने से पूर्व उस व्यक्ति की लिखित अनुमति हासिल करनी होगी। अगर वह व्यक्ति अपनी सहमति नहीं देता है, तो अधिकारी मेजिस्ट्रेट के पास जा सकते हैं। मेजिस्ट्रेट अपने विवेकानुसार उस व्यक्ति का डी.एन.ए. नमूना लेने का आदेश दे सकता है।
  • इस प्रकार, इस विधेयक में सहमति का समर्थन करने वाले कई प्रावधान हैं, परंतु मजिस्ट्रेट द्वारा स्वविवेक का प्रयोग करने के आधार और कारणों के बारे में कोई मार्गदर्शन नहीं है। ऐसी स्थिति में सहमति के ऐसे प्रावधानों का किसी मजिस्ट्रेट द्वारा आसानी से उल्लंघन (Override) किया जा सकता है, अत: प्रभावी रूप में सहमति एक दिखाव मात्र है।
  • किसी अपराध के सम्बंध में अपराध स्थल पर मिले डी.एन.ए. को भी सदा के लिये संग्रहीत करने की अनुमति विधयेक में प्रदान गयी है, भले ही अपराधी की सजा पलट दी गई हो। इस प्रकार किसी व्यक्ति के निर्दोष पाए जाने की स्थिति में भी यह विधेयक उसकी डी.एन.ए. प्रोफाइल से सम्बंधित डाटा को रखने की अनुमति देता है।
  • इन कारणों के फलस्वरूप समिति ने सरकार से निर्दोष व्यक्ति के डाटा को हटाने के प्रावधानों में संशोधन करने का आग्रह किया है।

समिति के सुझाव

  • समिति ने सिफारिश की है कि जैविक नमूनों को नष्ट करने और डाटाबेस से डी.एन.ए. प्रोफाइल को हटाने के प्रस्तावों की स्वतंत्र जाँच होनी चाहिये।
  • विधेयक में नागरिक मामलों के लिये भी डी.एन.ए. प्रोफाइल को एक स्पष्ट और पृथक सूचकांक के बिना ही डाटा बैंकों में संग्रहीत किये जाने का प्रावधान है। इस पर भी विचार किया जाना चाहिये।
  • समिति ने ऐसे डी.एन.ए. प्रोफाइल के भंडारण की आवश्यकता पर सवाल उठाया है, इससे निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है और यह सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है।

आगे की राह

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत में डी.एन.ए. परीक्षण बेहद सीमित पैमाने पर किया जा रहा है। लगभग 30-40 डी.एन.ए. विशेषज्ञों द्वारा 15-18 प्रयोगशालाओं में प्रति वर्ष 3,000 से भी कम मामलों का परीक्षण किया जाता है, जो की कुल आवश्यकता का केवल 2 से 3% ही है। हालाँकि, इन प्रयोगशालाओं के मानकों की निगरानी या विनियमन नहीं किया जाता है। भारत में गोपनीयता और मज़बूत डाटा संरक्षण कानूनों के अभाव में बड़ी संख्या में डी.एन.ए. प्रोफाइल की सुरक्षा भी संदिग्ध है। हालाँकि, समिति की चिंताओं पर विचार करते हुए एक सशक्त और प्रभावी कानून की आवश्यकता है, जो प्रशासन में विभिन्न प्रकार से सहयोगी साबित होगा।

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