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डी.एन.ए. तकनीकी पर स्थाई समिति की रिपोर्ट

(प्रारंभिक परीक्षा- सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 4 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन लोकुर ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की स्थाई समिति के समक्ष एक लिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है। इसमें कहा गया है कि अन्वेषण एजेंसियों द्वारा संदिग्धों के डी.एन.ए. सैंपल को ‘डी.एन.ए. तकनीकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक 2019’ के तहत एकत्रित करने की अनुमति दी गयी है, यह अनियंत्रित शक्ति डी.एन.ए. दुरूपयोग को बढ़ावा दे सकती है, जिससे किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन, गरिमा और स्वतंत्रता को आघात पहुँचाया जा सकता है।

 स्थाई समिति की रिपोर्ट

  • डी.एन.ए. तकनीकी विधेयक पर पर बनी स्थाई समिति ने 3 फरवरी 2021 को अपनी रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की, इस पैनल की अध्यक्षता कांग्रेस नेता जयराम नरेश द्वारा की जा रही है।
  • यह विधेयक कुछ निश्तित वर्ग के व्यक्तियों जैसे अपराधी ,संदिग्ध ,लापता, या न्यायिक हिरासत में लिये गए व्यक्ति (जिनका मामला विचाराधीन है) आदि की पहचान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से डी.एन.ए. के प्रयोग एवं अनुप्रयोग को विनियमित करता है।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया कि वर्तमान में बहुत सीमित मात्रा में भारत में डी.एन.ए. जाँच की जाती है, मात्र 15-18 प्रयोगशालायें ही हैं जिनके लगभग 30-40 लगभग 3000 से कम मामलों की ही जाँच कर पाते हैं। वर्तमान में इन प्रयोगशालाओं के निरीक्षण तथा विनियमन का कोई भी मानक नहीं है।
  • ध्यातव्य है कि ‘राजीव सिंह बनाम बिहार राज्य (2011)’ के मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने अनुचित तरीके से डी.एन.ए. विश्लेषण के प्रमाण को ख़ारिज कर दिया था।
  • न्यायमूर्ति ओ चिन्नप्पा रेड्डी ने 2018 में निजता पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के 1981 के ‘मालक सिंह बनाम पंजाब राज्य’ मामले को उद्धृत किया और कहा कि संदिग्धों को करीब से परखे बिना संगठित अपराधों को सफलतापूर्वक सुलझाया नहीं जा सकता किन्तु इसकी आड़ में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने की स्वीकृति भी नहीं दी जा सकती है।
  • समिति ने विधेयक का अध्ययन करते हुए पूछा कि,
  1. क्या विधेयक ऐसा माहौल दे पा रहा है कि वैज्ञानिक सबूत एकत्रित किये जा सकें?
  2. सही प्रक्रिया का पालन करते हुए वैज्ञानिक सबूतों को अधिक से अधिक प्रयोग में लाने की संस्कृति का विकास करने के क्या प्रावधान हैं?
  3. सरकार द्वारा तकनीकी का दुरूपयोग कर समाज के किसी विशेष वर्ग को लक्षित किये जाने से रोकने का उपाय क्या हैं?
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बार अपराध स्थल के आस पास के लोगों का डी.एन.ए. संदिग्ध समझकर लिया जाता है, यदि बाद में वे अपराधी साबित नहीं होते हैं तो उनके डाटा को डी.एन.ए. बैंक से हटा दिया जाय।
  • रिपोर्ट में विधेयक से ‘स्थानीय डी.एन.ए. डाटाबैंक’ शब्द को हटा दिये जाने की बात भी कही गई है क्योंकि राष्ट्रीय डाटाबैंक खुद में पर्याप्त है।
  • साथ ही इस बात की आवश्यकता भी जाहिर की गई है कि डी.एन.ए. प्रोफाइल को डाटा बैंक को हस्तांतरित कर स्थानीय स्तर की प्रयोगशालाओं से उन्हें नष्ट कर देना चाहिये।

 डी.एन.ए. तकनीकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग ) विनियमन विधेयक 2018

  • इस विधेयक को जनवरी 2019 में लोक सभा में पास कर दिया गया था तथा विधेयक पर अध्ययन करने के लिये एक स्थाई समिति का गठन किया गया था।
  • इस विधेयक में डी.एन.ए. तकनीकी के प्रयोग के साथ अनसुलझे अपराधिक मामलों (जो कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता ,1860 के अंतर्गत अपराध के रूप में उल्लेखित हैं) और दीवानी मामलों (जैसे पैत्रिक विवादों ,प्रवास या अप्रवास तथा मानव अंग हस्तांतरण आदि) का यथाशीघ्र समाधान निकालने की बात भी की गई है।
  • इस विधेयक में राष्ट्रीय डी.एन.ए. डाटा बैंक को स्थापित करने की बात कही गई है।
  • इस विधेयक में डी.एन.ए. रेगुलेटरी बोर्ड के गठन का प्रावधान है।
  • विधेयक के अनुसार मृत्यु अथवा सात वर्ष से अधिक की सज़ा प्राप्त अपराधियों के डी.एन.ए. सैंपल लेने से पहले सहमती की आवश्यकता नहीं है किन्तु इसके अतिरिक्त हर प्रकार के मुजरिमों से लिखित सहमती प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
  • पुलिस फाइलिंग या कोर्ट आर्डर के बाद संदिग्ध की डी.एन.ए. प्रोफाइल को हटाया जा सकेगा।

डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग क्या है   

  • पुराने / अनसुलझे अपराधिक केस में व्यक्ति की पहचान को सुनिश्चित करने की तकनीकी डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग कहलाती है।
  • पोस्टमार्टम करने के बाद शरीर को सामान्य वातावरण में अधिक दिन तक नहीं रखा जा सकता। ऐसे में कुछ महत्त्वपूर्ण अंश को बाहर निकाल कर सुरक्षित रख लिया जाता है, जिनका उपयोग डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग में किया जा सकता है।
  • विदित है कि प्रत्येक व्यक्ति के डी.एन.ए. में उसकी एक अलग पहचान छिपी होती है क्योंकि सभी व्यक्तियों के जीन एक जैसे नहीं होते हैं। इसके लिये रक्त ,बाल वीर्य को सैंपल के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  • सैंपल से प्राप्त कोशिकाओं से सर्वप्रथम डी.एन.ए. को अलग कर लिया जाता है, फिर डी.एन.ए. के तंतुओं का प्रतिचित्र तैयार कर लिया जाता है। इसे डी.एन.ए. फिंगरप्रिंट कहा जाता है । इन सभी की प्रोफाइल तैयार की जाती है जो फॉरेंसिक जाँच में सहायक होती है।

विधेयक पर आपत्ति

  • जाँच एजेंसियाँ आसानी से अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर सकती हैं। जिन लोगों का सैंपल लिया गया है और वे अपराध का हिस्सा नहीं हैं उन लोगों के खिलाफ शक्ति का दुरूपयोग किया जा सकता है।
  • विधेयक में ‘संदिग्ध ‘ शब्द को हटाए जाने की भी माँग हो रही है क्योंकि इस वजह से बहुत से निरपराध लोगों को भी फंसाया जा सकता है क्योंकि संदिग्ध शब्द को विधेयक में ‘व्याख्यायित’ नहीं किया गया है।
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