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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अनिश्चित परिस्थतियां

(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ब्याज दरों में 0.50 आधार अंक की वृद्धि की है। अमेरिकी फेडरल रिज़र्व बैंक ने भी बेंचमार्क ब्याज दर में 0.75 आधार अंक की वृद्धि की है। यह निर्णय वैश्विक परिदृश्य के अनुमानों के आधार पर लिया गया है। हालाँकि, वर्तमान अनिश्चितताओं के मध्य भारतीय अर्थव्यवस्था की संवृद्धि एवं अन्य कारकों का अनुमान लगाना त्रुटिपूर्ण हो सकता है। 

अर्थव्यवस्था के समक्ष वैश्विक अनिश्चितता 

रोग और मुद्रास्फीति जनित मंदी 

  • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 की शुरुआत से ही वैश्विक अनिश्चितता उत्पन्न हो गई। इसने उत्पादन में परिणामी क्षति के साथ-साथ मानवीय गतिविधियों को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। विभिन्न देशों में लॉकडाउन के कारण आपूर्ति में व्यवधान आ रहा है। 
  • अन्योन्याश्रित विश्व में उत्पादन प्रभावित होने के कारण मूल्य में वृद्धि (मुद्रास्फीति) और वास्तविक आय में कमी आई, परिणामस्वरूप मांग में कमी आने से अर्थव्यवस्था में मंदी महसूस की जा रही है। 
  • वर्तमान परिदृश्य में इन गिरावटों की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो गया है। वैश्विक स्तर पर कीमतों में वृद्धि के कारण कई देशों को मुद्रास्फीति जनित मंदी का सामना करना पड़ा है।
  • चीन द्वारा सख्त लॉकडाउन के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न हुआ है क्योंकि चीन वर्तमान में वैश्विक विनिर्माण का केंद्र है। मंकीपॉक्स वायरस का प्रसार भी चिंता का एक अन्य कारण है। 

रूस-यूक्रेन संघर्ष का प्रभाव 

  • यूक्रेन संघर्ष और रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण फरवरी 2022 के बाद से अर्थव्यस्था में भारी अनिश्चितता उत्पन्न हो गई है क्योंकि इस युद्ध को दो शक्तिशाली पूंजीवादी गुटों के बीच एक छद्म युद्ध माना जा रहा है। दोनों गुट सैन्य और आर्थिक रूप से मजबूत हैं। 
  • पश्चिमी शक्तियां युद्ध को लंबा खींचने और रूस को कमजोर करने के लिये हथियारों की आपूर्ति कर रही हैं। साथ ही, रूस पर लगे प्रतिबंधों का इस्तेमाल उसे आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिये किया जा रहा है।
  • महामारी, युद्ध और प्रतिबंधों ने पहले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से यूरोप को प्रभावित किया है। इसके कारण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में दो-चौथाई गिरावट के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था तकनीकी रूप से मंदी में प्रवेश कर गई है। श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल जैसी कई अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ संकट का सामना कर रहीं हैं। 
  • रूस और यूक्रेन से आपूर्ति प्रभावित होने से कीमतों में तेजी आई है। इस दौरान  यूरोप, अमेरिका और भारत ने उच्च मुद्रास्फीति का अनुभव किया है।
  • रूस से ऊर्जा आपूर्ति में व्यवधान से उत्पादन प्रभावित हो रहा है। खाद्यान्न, उर्वरक, धातु आदि की उपलब्धता भी प्रभावित हुई है। 
  • इस प्रकार, महामारी के कारण पहले से ही प्रचलित उच्च मुद्रास्फीति युद्ध और प्रतिबंधों के कारण और भी बढ़ गई है। चूंकि युद्ध की समाप्ति और प्रतिबंध अनिश्चित हैं, इसलिये इन समस्याओं के जारी रहने की संभावना है।

नव शीत युद्ध की आहट

  • वर्तमान में प्रत्यक्ष युद्ध के स्थान पर दो बड़े गुटों के मध्य एक नया शीत युद्ध प्रारंभ हो गया है, जिसमें में एक तरफ रूस और चीन तथा दूसरी तरफ पश्चिमी राष्ट्र हैं। 
  • रूस को कमजोर करने के लिये उसके साथ व्यापार करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इससे भारत और चीन सहित अन्य देश भी प्रभावित हो सकते हैं। हालाँकि, चीन के पास रूस के साथ जाने की मजबूरी है।
  • अंतत: दो बड़े आर्थिक गुटों के बीच युद्ध, प्रतिबंधों और नव शीत युद्ध के कारण निकट भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभावित रहने की संभावना बनी रहेगी।

डाटा अनुपलब्धता

  • भारतीय नीति-निर्माताओं को डाटा अनुपलब्धता से संबंधित मुद्दों का भी सामना करना पड़ता है। अर्थव्यवस्था के अधिकांश कारकों के लिये या तो डाटा उपलब्ध नहीं है या इसमें गंभीर त्रुटियां हैं।
  • भारत में तिमाही जी.डी.पी. से संबंधित डाटा बहुत कम उपलब्ध है जिनका उपयोग अर्थव्यवस्था की विकास दर की गणना के लिये किया जाता है।
  • कृषि को छोड़कर असंगठित क्षेत्र से संबंधित डाटा भी उपलब्ध नहीं है। साथ ही, संगठित क्षेत्र में भी सीमित डाटा की उपलब्धता है। इसके अतिरिक्त आर्थिक विकास की गणना के लिये विगत वर्ष के अनुमानों का उपयोग किया जाता है, जो अर्थव्यवस्था के सटीक अनुमानों को सीमित करते हैं।
  • मूल्य संबधित डाटा में भी त्रुटियाँ विद्यमान है। सेवा क्षेत्र का लेखांकन कम किया गया है जबकि इस दौरान कई सेवाओं के मूल्य में वृद्धि के साथ ही मूल्य सूचकांक में उनके मूल्य भार में भी वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था पर काले धन के प्रतिकूल प्रभावों को भी शामिल नहीं किया गया है।
  • उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक समान है। उच्च वर्ग की तुलना में गरीब अपनी लगभग पूरी आय का उपभोग करते हैं और मूल्य वृद्धि के अनुरूप व्यय बढ़ाने के लिये उनके पास कोई उपाय नहीं है। ऐसे में उन्हें अपनी खपत कम करनी होगी। 
  • असंगठित क्षेत्र, जिसमें 94% कार्यबल कार्यरत है, विगत कुछ वर्षों में आय में गिरावट और कीमतों में वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। कीमतों में वृद्धि के अनुरूप इनकी मजदूरी में वृद्धि के लिये कोई उपाय नहीं हैं। उपलब्ध डाटा इसे प्रतिबिंबित नहीं करता है।
  • यदि अर्थव्यवस्था 7.5% की दर से बढ़ रही है और मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक के 6% के स्तर के नीचे है, तो नीति निर्माता अर्थव्यवस्था की स्थिति को उचित मान लेते हैं। 

निष्कर्ष 

  • मौद्रिक नीति को डाटा पर आधारित होना चाहिये। उपयुक्त डाटा का अभाव अतिरिक्त अनिश्चितता में वृद्धि करता है, जिससे भावी अनुमान कठिन हो जाते हैं और नीतियां विफल हो जाती हैं। 
  • कोविड-19 के प्रसार में कमी तथा व्यापक स्तर पर टीकाकरण के कारण विभिन्न देशों द्वारा लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी जा रही है। इसके परिणामस्वरूप प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों में कमी आ रही है।
  • यद्यपि विश्व स्वास्थ्य संगठन को विश्वास है कि मंकीपॉक्स वायरस के खतरे से कोविड-19 की तुलना में अधिक आसानी से निपटा जा सकता है। फिर भी, इससे अनिश्चितता में वृद्धि हुई है।
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