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महामारी के दौर में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की प्रासंगिकता 

संदर्भ 

वर्तमान कोविड-19 महामारी के कारण विभिन्न व्यवसायों के बंद होने से लोगों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हुआ है। इससे उनमें अवसाद, चिंता, तनाव और भय आदि नकारात्मक भावनाओं ने जन्म लिया है। इन सभी कारकों के संतुलन और प्रबंधन के लिये भावनात्मक बुद्धिमत्ता का होना अपरिहार्य है। इस परिप्रेक्ष्य में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन की भावनात्मक बुद्धिमत्ता का मॉडल अति प्रासंगिक है।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence)

  • व्यक्ति की स्वयं के साथ- साथ दूसरों की भावनाओं को समझने और उनका समुचित प्रबंधन करने की क्षमता ही भावनात्मक बुद्धिमत्ता है। इसका संबंध परिस्थिति के अनुरूप आचरण करते हुए स्वयं की भावनाओं के प्रबंधन से है। 
  • एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा के रूप में यह व्यावहारिक स्तर पर किसी व्यक्ति की सफलता को प्रतिबिंबित करती है।
  • भावनात्मक बुद्धिमत्ता वह आधार है जिस पर किसी व्यक्ति का चरित्र निर्मित होता है।

भावनात्मक बुद्धिमत्ता : डेनियल गोलमैन का मॉडल 

  • डेनियल गोलमेन ने वर्ष 1995 में अपनी पुस्तक ‘Emotional Intelligence: Why It Can Matter More Than IQ’ में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का व्यावहारिक स्वरूप प्रस्तुत किया। यह मॉडल अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इनके मॉडल में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को मुख्य रूप से निम्नवत् 4 क्षमताओं का समूह माना गया है-
    • आत्म-जागरूकता (Self Awareness)
    • आत्म-प्रबंधन (Self Management) 
    • सामाजिक जागरूकता (Social Awareness)
    • सामाजिक प्रबंधन (Social Management)
  • डेनियल गोलमैन की उपर्युक्त उद्धृत संकल्पना से दो असाधारण शब्द ‘आत्म- जागरूकता और ‘समानुभूति’ हैं। उनके अनुसार, यदि व्यक्ति की भावनात्मक योग्यताएँ नियंत्रण में नहीं हैं, उसमें आत्म-जागरूकता नहीं है, वह स्वयं की भावनाओं को प्रबंधित करने में सक्षम नहीं हैं, उसमें समानुभूति और प्रभावी संबंधों को स्थापित करने की योग्यता नहीं हैं, तो वह वर्तमान में कितना भी सफल क्यों न हों, उसकी यात्रा दूरगामी न होकर सीमित ही होगी।

      अन्य प्राणियों में भावनाओं का प्रदर्शन 

      • यह देखा गया है कि मनुष्य के अलावा अन्य जंतुओं में भी भावनात्मक बुद्धिमत्ता के स्वरूप उपस्थित होते हैं। 
      • डॉल्फ़िन और हाथी किसी न किसी रूप में आत्म-जागरूकता और समानुभूति प्रदर्शित करते हैं। वे प्रायः बड़े पारिवारिक समूहों में निवास करते हुए एक-दूसरे के साथ भावनात्मक संबंधों में बँधे होते हैं। यह भी देखा गया है कि वे अपने बच्चों की मृत्यु का शोक भी मनाते हैं। इस प्रकार वे भावनाओं की एक विस्तृत शृंखला का प्रदर्शन करते हैं। यही कारण है कि उन्हें उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता का श्रेय दिया जाता है। 
      • कांगो के वनों में वन रेंजरों द्वारा अपने सीने को पीटकर विशाल गोरिल्लाओं का प्रोत्साहन किया जाता है, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि वन में उनकी उपस्थिति एक मित्र के रूप में है। गोरिल्ला उत्साहपूर्वक इसका आनंद भी लेते हैं। यह ऐसे होता है जैसे भावनात्मक संबंधों को स्थापित करने के लिये सभी बंधनों को तोड़ दिया गया हो। 

      रोज़गार क्षेत्र में भावनात्मक बुद्धिमत्ता की भूमिका 

      आजकल ऐसी अनेक कंपनियाँ हैं जो भावनात्मक बुद्धिमत्ता के आधार पर लोगों को रोज़गार प्रदान करती हैं। यह प्रेक्षण किया गया है कि उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता से युक्त लोग समूह भावना के साथ कार्य करते हुए बेहतर परिणाम प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा, वे संबंधों को महत्त्व देते हैं, उनमें अनुकूलन क्षमता होती है तथा वे कम भावनात्मक बुद्धिमत्ता वाले लोगों की तुलना में आलोचना को सकारात्मक रूप में स्वीकार करते हैं।

      भावनात्मक बुद्धिमत्ता के विकास में परिवार की भूमिका 

      • स्वास्थ्य आवश्यकताओं ने हमारे जीवन को अकल्पनीय तरीके से परिवर्तित कर दिया है। लंबे समय तक मास्क लगाना, पूरे कार्यालय को घर से संचालित करना, ऑनलाइन शिक्षण और अधिगम आदि ने महीनों घर पर रहने के लिये बाध्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को परिवार तथा घनिष्ठ मित्रों की सुखदायक उपस्थिति और समर्थन की आवश्यकता होती है।
      • तनावपूर्ण समय में किसी व्यक्ति की भावनात्मक बुद्धिमत्ता को विकसित करने के लिये एक घनिष्ठ पारिवारिक ढाँचा अतीव उपयोगी हो सकता है।
      • परिवार में निहित प्रेम, स्नेह और परस्पर समझ की भावना, भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास करते हुए महामारी से जुड़े असंख्य मुद्दों से निपटने के लिये एक सक्षम, उपयुक्त व अनुकूल वातावरण का सृजन करती है। 

      बुद्धि लब्धि बनाम भावनात्मक बुद्धिमत्ता 

      • यह आवश्यक नहीं है कि बुद्धि लब्धि (Intelligence Quotient- IQ) का उच्च स्तर व्यक्ति में हर्ष, उल्लास, मानसिक स्थिरता या शारीरिक व मानसिक शांति को विकसित करता हो, जबकि भावनात्मक बुद्धिमत्ता का उच्च स्तर सामान्यतः आत्म-जागरूकता के महान स्तर को प्रदर्शित करता है। यह न केवल स्वयं में बल्कि दूसरे व्यक्तियों में भी भावनाओं को पहचानने और प्रबंधित करने की क्षमता है। 
      • आई.क्यू. अंतर्निहित व जन्मजात है, जबकि भावनात्मक बुद्धिमत्ता को निरंतर अभ्यास के माध्यम से विकसित किया जा सकता है। आत्म-जागरूकता, आत्म-मूल्यांकन, स्वयं के कार्यों की जवाबदेही सुनिश्चित करना तथा दूसरे व्यक्तियों की स्थिति को समझना, ये सभी कारक किसी व्यक्ति में भावनात्मक बुद्धिमत्ता को विकसित करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
      • एक संतुलित आचरण के लिये आई.क्यू. और भावनात्मक बुद्धिमत्ता दोनों आवश्यक हैं। एक ओर, आई.क्यू. स्थिति को समझने तो दूसरी ओर, भावनात्मक बुद्धिमत्ता सामाजिक मानकों के अनुरूप आचरण के लिये प्रेरित करती है।  
      • भावनात्मक बुद्धिमत्ता एक मृदु कौशल (Soft skill) है, जिसका मूल्य वर्तमान में सभी क्षेत्रों में तेज़ी से विकसित हो रहा है। 
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