New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

श्रीलंका में खाद्य व विदेशी मुद्रा का संकट 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ 

वर्तमान में श्रीलंका एक कठिन आर्थिक और खाद्य संकट से जूझ रहा है। 

खाद्य आपातकाल 

  • हाल ही में, श्रीलंका ने खाद्य संकट को लेकर आपातकाल लागू कर दिया है, क्योंकि निजी बैंकों के पास आयात के लिये विदेशी मुद्रा की भारी कमी है। 
  • श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे द्वारा देश के गिरते विदेशी मुद्रा भंडार को देखते हुए ‘खाद्य आपातकाल’ की घोषणा ने स्थानीय समुदायों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी चौंका दिया है। 
  • सिविल सोसाइटी कार्यकर्ता भी उनके द्वारा देश में ज़रूरी वस्तुओं का आसानी व तेज़ी से आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये एक सैन्य अधिकारी को आवश्यक सेवाओं का कमिश्नर जनरल बनाए जाने को लेकर चिंतित हैं। वस्तुतः यह उनके राष्ट्रपति शासन के दौरान नागरिक प्रशासन के सैन्यीकरण की दूसरी मिसाल है। 

कारण 

  • पिछले लगभग दो दशकों से श्रीलंकाई रुपए में लगातार गिरावट के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में भी निरंतर गिरावट दर्ज़ की गई 
  • इस दौरान मौजूदा सरकार कोरोना की पहली लहर की तरह ही दूसरी व तीसरी लहर को नियंत्रित करने में नाकाम रही है, जिससे स्थिति अधिक खराब होती चली गई। 
  • देश में राजनीतिक अस्थिरता के परिणामस्वरूप निवेशक यहाँ निवेश करने से बचते रहे। साथ ही, वर्ष 2019 में ‘ईस्टर सीरियल ब्लास्ट’ के कारण श्रीलंका का पर्यटन क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ, जो देश की अर्थव्यवस्था का एक मज़्बूत आधार था। 
  • कोरोना महामारी से भी निर्यात समेत विदेशों में नौकरी करने वाले श्रीलंकाई नागरिकों की भागीदारी में ज़बर्दस्त गिरावट दर्ज़ की गई, जिसकी श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी थी। 
  • वर्ष 2021 में पेश बज़ट में श्रीलंका सरकार ने हल्दी सहित अन्य खाद्य पदार्थों और रासायनिक खाद के आयात पर रोक लगा दी थी, जिससे स्थानीय किसानों और जैविक खेती को प्रोत्साहन मिल सके। वास्तविक विचार तो विदेशी मुद्रा के ऑउटफ्लो को रोकना था किंतु जल्दी और अनियोजित तरीके से आयात पर प्रतिबंध से कई स्तरों पर अलग-अलग संकट उत्पन्न हो गए।

अन्य मुद्दे 

  • सरकार ने जमाखोरों के ख़िलाफ भारी आर्थिक दंड की घोषणा की है किंतु इसके बावजूद स्थिति में विशेष बदलाव नहीं हुआ है। इसके लिये सरकार को व्यवस्था में ज़्यादा से ज़्यादा विदेशी मुद्रा भंडार को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है क्योंकि निजी बैंकों ने लंबे समय से आयातक-ग्राहकों या फिर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के फास्ट ट्रैक ऋण के लिये अपने दरवाजे बंद कर लिये हैं। 
  • श्रीलंका समेत तीसरी दुनिया के देशों का मानना है कि आई.एम.एफ. की शर्तों से लोगों को ज़्यादा लाभ नहीं हो पाता है और इसके लिये राष्ट्रीय स्तर पर सख़्त नीति की भी ज़रूरत होती है। यही वजह है कि आई.एम.एफ. की शर्तें चुनी हुई सरकारों के लिये असहज स्थिति उत्पन्न कर देती हैं। 
  • संभवत: श्रीलंका की ज़्यादातर ज़रूरी खाद्य सामग्रियाँ दक्षिण एशिया या पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया से आती हैं। अंतिम बार श्रीलंका को सबसे खराब खाद्य संकट से स्वतंत्रता के बाद 50 के दशक में गुजरना पड़ा था जब चीन ने श्रीलंका को ‘चावल के बदले रबर’ समझौता करने का विकल्प दिया था। 
  • इसके तहत चीन सूखाग्रस्त श्रीलंका को चावल निर्यात करता था और बदले में श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय कीमत से कम और वैश्विक बाज़ार के मुकाबले दूसरों से ज़्यादा कीमत पर रबर का आयात करता था। शायद इसीलिये ‘हबनटोटा समझौते’ के साथ चीन के ‘कर्ज-जाल’ में फंसने के बावजूद चीन-श्रीलंका के संबंध निरंतर बने रहे।
  • घरेलू मोर्चे पर खाद्य संकट के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और कोरोना से निपटने में अव्यवस्था ने निश्चित तौर पर सरकार की छवि पर असर डाला है।
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामाजिक और आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ दक्षिण की ओर देख रहे हैं क्योंकि मौजूदा संकट एवं पिछले दशकों में निरंतर सरकारों की इसे रोकने की नाकामी कहीं ‘सामाजिक क्रांति’ की शुरुआत ना कर दे। देश के दक्षिणी हिस्से में वर्ष 1971 और 1989 में बहुसंख्यक सिंहाला-बौद्ध समाज में हुआ विद्रोह इसका उदाहरण है।
  • उग्रवाद के बाद एल.टी.टी.ई. का बतौर अंतर्राष्ट्रीय आतंकी समूह के रूप में खड़ा होना देश को दक्षिण के मुद्दों से ध्यान हटाने पर मजबूर कर दिया। इस कारण सरकार आम लोगों की समस्याओं को लेकर उन्हें कभी भरोसे में नहीं ले सकी।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR