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समूह कूटनीति : आवश्यकता या अवरोध 

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्न पत्र-2; द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और भारत के हितों कोम प्रभावी करने वाले करार) 

संदर्भ 

वैश्विक स्तर पर समूह कूटनीति के कई उदाहरण मौजूद हैं, परंतु इनके उद्देश्य, सफलता एवं प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं। हाल ही में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम एवं ऑस्ट्रेलिया के मध्य हुए त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौते (ऑकस) ने भी समूह कूटनीति के संभावित जटिलताओं को उजागर किया है।

सार्क गठबंधन 

  • दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) का गठन दक्षिण एशिया में सहयोग बढ़ाने के लिये किया गया था।  इस संगठन के माध्यम से बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया-उर-रहमान का उद्देश्य भारत को प्रतिसंतुलित करने के लिये दक्षिण एशिया को एक मंच पर लाना था।
  • इस संगठन में शामिल होने को लेकर भारत दुविधा में था। उसके संगठन में शामिल न होने पर पड़ोसी देशों में उसकी नकारात्मक छवि बनती तथा उनके अंदर भारत के प्रति ‘बिग ब्रदर सिंड्रोम’ की भावना मज़बूत होती। और यदि भारत संगठन में शामिल होता तो विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर उस पर दबाव बनाने के लिये सार्क संस्थाओं के उपयोग की संभावना का सामना करना पड़ता।
  • भारत संतुलन की नीति अपनाते हुए कई महत्त्वपूर्ण शर्तों, जैसे- संगठन में द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार न किया जाना, किसी निर्णय के लिये मतदान की व्यवस्था तथा सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं इत्यादि के साथ इस संगठन में सम्मिलित हुआ।
  • सार्क गठबंधन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग की अनिवार्यता के बावजूद पाकिस्तान द्विपक्षीय मुद्दों पर भारत को घेरने का माध्यम बन गया। यह बहुपक्षवाद के स्थान पर द्विपक्षीय कूटनीति का उदाहरण था।
  • वर्ष 2014 में संगठन की बैठक काठमांडू में हुई थी। वर्ष 2016 की बैठक इस्लामाबाद में प्रस्तावित थी। इस बैठक का उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने बहिष्कार कर दिया था। इसके पश्चात् संगठन के अन्य सदस्य देशों ने भी बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से यह मृतप्राय हो गया है।

समूह कूटनीति के अन्य उदाहरण

  • वर्तमान में विश्व में समूह कूटनीति के कई उदाहरण मौजूद हैं। इसमें एक छोर पर यूरोपीय संघ से लेकर दुसरे छोर पर अफ्रीकी संघ तक विद्यमान हैं। ये संगठन आपसी सहयोग को सुदृढ़ करने की आशाओं के साथ मौजूद हैं। इन संगठनों के अतिरिक्त उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) तथा दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) जैसे संगठन भी हैं। इनके साथ ही G-2 (अमेरिका एवं चीन) जैसे काल्पनिक तथा G-27 जैसे वास्तविक संगठन भी मौजूद हैं।
  • इनमे से कई समूहों के पास क्षेत्रीय, वैचारिक या विषयगत एकरूपता का अभाव है। इन समूहों के द्वारा शिखर सम्मेलनों को आयोजित करने में खर्च किया गया समय, धन और ऊर्जा तथा विशेषज्ञ समूह की बैठकें भी उचित प्रतीत नहीं होती हैं।

भारत एवं अन्य समूह

  • विभिन्न वैश्विक समूहों के पास समूह के संदर्भ में निश्चित उद्देश्यों की अस्पष्टता है। स्वतंत्रता के बाद जब भारत ने राष्ट्रमंडल में बने रहने का निर्णय लिया तो ब्रिटिश क्राउन के प्रति आत्मीयता की प्रकृति बदल गई तथा इसका एजेंडा पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों की चिंताओं से परे हो गया।
  • इसी प्रकार, कुछ अन्य नए संगठनों के गठन के समय उनका भी औचित्य स्पष्ट नहीं था। गोल्डमैन सैक्स संस्था द्वारा उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में ‘ब्रिक’ संगठन का विचार दिया गया। इस संगठन में भारत, चीन, रूस एवं ब्राज़ील सम्मिलित थे। संगठन में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद इसका नाम ‘ब्रिक्स’ कर दिया गया। ब्रिक के गठन के समय यह आशंका व्यक्त की गई थी कि संगठन में चीन और रूस की मौजूदगी से इसे अमेरिका विरोधी गुट के रूप में समझा जाएगा।   
  • चीन ने संगठन की अगुआई करते हुए सदस्यों के लिये बैंक की स्थापना का प्रावधान किया, जिससे सदस्य देशों को आसानी से ऋण उपलब्ध हो सके। इसके अतिरिक्त ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका के भी समान हित थे। दोनों ही देश सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता के लिये प्रयत्नशील हैं तथा संयुक्त राष्ट्र में सुधार एवं दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर समान विचार रखते हैं।  
  • ऐसे संगठन जिसमें भारत के साथ ही पकिस्तान की भी उपस्थिति रहती है, भारत के लिये कम उपयोगी सिद्ध हुए हैं। अतः भारत ने ऐसे संगठनों को महत्त्व दिया है जिसमें पाकिस्तान की उपस्थिति न हो। इस संबंध बिम्सटेक भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण संगठन है।
  • बिम्सटेक सात दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का एक अंतराष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन में भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड सम्मिलित हैं। यह समूह कई वर्षों तक निष्क्रिय रहा है। इसे कुछ वर्षों पूर्व ही सार्क के विकल्प के रूप में पुनर्जीवित किया गया है।
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन भी एक महत्त्वपूर्ण अंतर-सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना मार्च 1997 में की गई। भारत ने अपनी अध्यक्षता के दौरान इस संगठन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। इसके अंतर्गत हिंद महासागर क्षेत्र में सतत् एवं संतुलित विकास को बढ़ावा देने के लिये 6 प्राथमिक क्षेत्रों की पहचान की गई है। परंतु यह संगठन अभी भी बिना किसी उपलब्धि के ही आगे बढ़ रहा है।
  • भारत अभी एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) तथा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG)  में सदस्यता के लिये प्रयासरत है। हालाँकि भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, वासेनार और ऑस्ट्रेलिया समूह की सदस्यता प्राप्त हो गई है।

क्वाड और ऑकस

  • हिंद महासागर क्षेत्र में क्वाड के रूप में एक महत्त्वपूर्ण संगठन होने के बावजूद अमेरिका द्वारा ऑकस की अगुआई करना क्वाड की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। हालाँकि दोनों संगठनों के उद्देश्य भिन्न हैं, जहाँ क्वाड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं कानून व्यवस्था के उद्देश्य से प्रेरित है वहीं ऑकस पूर्णतः सैन्य उद्देश्यों से प्रेरित है।
  • ऑकस के गठन से क्वाड की प्रासंगिकता पर सवाल उठने का एक प्रमुख कारण क्वाड के दो सदस्यों का ऑकस का सदस्य होना भी है। संभवतः ऑकस के माध्यम से अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी भूमिका के लिये तैयार कर रहा है।

निष्कर्ष     

वर्तमान में वैश्विक भू-राजनीति में तीव्र परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में कुछ संगठनों का अप्रासंगिक होना तथा कुछ का अतिमहत्त्वपूर्ण हो जाना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में यह महत्त्वपूर्ण है कि किसी भी संगठन में अपनी भूमिका एवं संगठन की प्रासंगिकता पर गंभीरतापूर्वक विचार करके ही उसमें भागीदारी की जाए तथा सभी सदस्य देश उस संगठन के प्रति अपने दायित्वों का गंभीरतापूर्वक निर्वहन करें।

कोई भी संगठन सदस्यों के मध्य एक सामान्य कारण एवं प्रतिबद्धता के बिना प्रभावी नहीं हो सकता है। अतः भारत को चाहिये कि वह उन सभी समूहों पर पुनर्विचार करे, जिसका वह सदस्य है तथा उन संगठनों की जाँच के बाद उन्हें आवश्यकता आनुसार उन्हें युक्तिसंगत बनाए।

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