New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

शिकारी पक्षियों पर संकट

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण पारिस्थितिकी पर आधारित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

  • हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 557 शिकारी पक्षियों की प्रजातियों में से लगभग 30 प्रतिशत प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा है। 
  • इनमें से 18 प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, 25 लुप्तप्राय हैं, 57 असुरक्षित हैं और 66 प्रजातियाँ संकटासन्न (Near-Thereatend) हैं।
  • यह विश्लेष्णइंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर’ (IUCN) औरबर्डलाइफ इंटरनेशनलद्वारा किया गया था।

रैप्टर प्रजातियाँ 

  • रैप्टर शिकार करने वाले पक्षी हैं। ये स्तनधारियों, उभयचरों, सरीसृपों और कीटों के साथ-साथ अन्य पक्षियों को खाते हैं, अर्थात ये माँसाहारी होते हैं।
  • सभी शिकारी पक्षियों के शरीर की बनावट उन्हें शिकार करने में मदद करती हैं, जैसेमुड़ी हुई चोंच, नुकीले पंजों वाले मज़बूत पैर, तीक्ष्ण दृष्टि आदि।

महत्त्व 

  • रैप्टर या शिकारी पक्षी कशेरुकियों (Vertebrates) की एक विस्तृत श्रृंखला का शिकार करते हैं। साथ ही, ये लंबी दूरी तक बीजों को फैलाने में भी मदद करते हैं।
  • ये पक्षी खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर स्थित होते हैं। अतः जलवायु परिवर्तन के कारण कीटनाशकों के निवास स्थान में होने वाली कमी, इन शिकारी पक्षियों को प्रभावित करती है। इसलिये इन्हेंसंकेतक प्रजातिभी कहा जाता है।
  • इंडोनेशिया में सर्वाधिक रैप्टर प्रजातियाँ थीं इसके पश्चात् कोलंबिया, इक्वाडोर और पेरू का स्थान आता है।
  • गिद्ध, चील, उल्लू, हुड, हैरियर आदि रैप्टर या शिकारी पक्षी हैं।

संकट का कारण 

  • अध्ययन के अनुसार, पक्षियों के लिये ख़तरा वस्तुतः उनके निवास स्थान के नुकसान, प्रदूषण, मानव-वन्यजीव संघर्ष और जलवायु परिवर्तन के परिणाम हैं।
  • वनों की व्यापक कटाई के कारण पिछले दशकों में विश्व में सबसे बड़ी किस्म के ईगल्स (फिलिपीन ईगल्स) की आबादी में तेज़ी से कमी आई है।
  • आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में फिलिपीन ईगलगंभीर रूप से संकटग्रस्तहै।
  • भारत जैसे एशियाई देशों मेंडाइक्लोफिनेक’ (Diclofenac) के व्यापक प्रयोग के कारण गिद्धों की आबादी में 95 प्रतिशत से अधिक की कमी आयी है।
  •  डाइक्लोफिनेक, एक गैर-स्टेरायडल विरोधी उत्तेजक दवा है।
  • अध्ययन में पाया गया है कि अफ्रीका में, विशेष रूप से पश्चिमी अफ्रीका में पिछले 3 दशकों में ग्रामीण क्षेत्रों में गिद्धों की आबादी में औसतन 95 प्रतिशत की कमी आयी है।
  • इस कमी का कारण गिद्धों द्वारा डाइक्लोफिनेक दवा के माध्यम से इलाज किये गए पशुओं के शवों को खाने, उनका शिकार करने तथा उन्हें ज़हर देना है।
  • एनोबोन स्कॉप्स-उल्लू’, जिसकी अनुमानित आबादी 250 से कम है, यह पश्चिम अफ्रीका के एनोबोन द्वीप तक ही सीमित है।
  • इसके निवास स्थान में तेज़ी से नुकसान और कमी के कारण हाल ही में आई.यू.सी.एन. की रेड लिस्ट में इसे 'गंभीर रूप से लुप्तप्राय' प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था।  

संरक्षण के प्रयास 

  • अफ्रीका और यूरेशिया में शिकारी प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिये हुए सी.एम.एस. समझौता ज्ञापन (रैप्टर एम..यू.) का उद्देश्य स्थलीय, समुद्री तथा उड़ने वाले अप्रवासी जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान करना है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अंतर्गत एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। यह क़ानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।

भारत द्वारा संरक्षण के प्रयास 

  • भारत ने वर्ष 2016 मेंरैप्टर एम..यू.’ पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • गिद्धों के संरक्षण हेतु केंद्र सरकार ने पंचवर्षीय कार्य-योजना (2020-25) की शुरुआत की।
  • इस कार्य-योजना का उद्देश्य केवल गिद्धों की संख्या में कमी को रोकना है, बल्कि इनकी आबादी को सक्रिय रूप से बढ़ाना भी है।
  • पिंजौर (हरियाणा) मेंवल्चर कंज़र्वेशन ब्रीडिंग सेंटरकी शुरुआत की गई थी। इसके पश्चात् पश्चिम बंगाल तथा असम में भी ऐसे केंद्रों को खोला गया है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR