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संघीय प्रणाली में ‘परामर्श’ का महत्त्व

(प्रारंभिक परीक्षा :   भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली, लोकनीति, अधिकारों संबंधी मुद्दे इत्यादि )
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ)

संदर्भ

हाल ही में, विभिन्न राज्य सरकारों नेसमवर्ती सूचीके विषयों पर केंद्र सरकार के द्वारा किये जा रहेएकतरफा अधिनियमनपर चिंता व्यक्त की है। उल्लेखनीय है संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियोंसंघ सूची, राज्य सूची, तथा समवर्ती सूची का उल्लेख किया गया है।

पृष्ठभूमि

  • केरल के मुख्यमंत्री ने कहा किबिना संवादके समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाना संघवाद की मूल भावना के विपरीत है। इसी तरह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने अपने समकक्षों को केंद्र सरकर की इन गतिविधियों से अवगत कराया है।
  • जहाँ केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति सेविद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020’ के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया, वहीं तमिलनाडु विधानसभा ने ‘तीन कृषि कानूनों’ के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया है।
  • विभिन्न राज्यों के अपने अधिकारों के प्रति मुखर होने का मुख्य कारण यह है कि उन्हें लग रहा है कि केंद्र सरकार उनसे विचार-विर्मश किये बिना निर्णय कर रहा है, जिससे संघीय सिद्धांत कमज़ोर हो रहे हैं। 

      विवाद के बिंदु

      1. कृषि कानून

      • लगभग एक वर्ष पूर्व संसद ने राज्यों से परामर्श किये बिना तीन कृषि कानूनों को पारित किया था। राज्य सूची की प्रविष्टि 14 (कृषि खंड) से संबंधित विषय को संसद ने समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 (व्यापार और वाणिज्य खंड) को संदर्भित करते हुए इन कानूनों को पारित किया था।
      • बॉम्बे राज्य बनाम एफ.एन. बलसारा वादमें उच्चतम न्यायलय ने कहा था कि यदि कोई कानून राज्य सूची के विषय पर बनाया जाता है तथा उसे संघ सूची या समवर्ती सूची के विषय के रूप में संदर्भित किया जाता है, तो ऐसे मामले मेंतत्त्व और सार का सिद्धांत’ (Doctrine of Pith and Substance) लागू होता है।
      • इस सिद्धांत के अनुसार, “यदि कोई विधानमंडल ऐसी सूची के किसी विषय पर कानून बनाता है, जो उसके विधायी क्षेत्राधिकार में नहीं आती है तथा उसे अपने विधायी क्षेत्राधिकार में आने वाली सूची के विषय के रूप में संदर्भित करता है, तो ऐसी स्थिति में उस विधानमंडल का कानून लागू होगा, जो वास्तव में उस विषय पर कानून बनाने के लिये अधिकृत है।उदाहरणार्थ, यदि राज्य सूची के किसी विषय पर बनाए गए कानून को संघ सूची या समवर्ती सूची के किसी विषय के रूप में संदर्भित किया जाता है, तो ऐसी स्थिति में राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित कानून प्रभावी होगा।

      2. महापत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2020 तथा भारतीय पत्तन विधयेक, 2021

      • हालिया पारितमहापत्तन प्राधिकरण अधिनियम, 2020’ का विरोध गोवा सरकार ने किया था। राज्य सरकार का कहना है कि इस कानून से राज्य के कई स्थानीय कानून निष्प्रभावी हो जाएँगे।
      • इनमें शामिल हैं; गोवा टाउन एंड कंट्री प्लानिंग अधिनियम, गोवा नगरपालिका अधिनियम, गोवा पंचायती राज अधिनियम, गोवा भूमि विकास और भवन निर्माण विनियम तथा गोवा भूमि राजस्व संहिता।
      • गौरतलब है कि भारत में महापत्तनों से इतर पत्तन या बंदरगाह (छोटे बंदरगाह) समवर्ती सूची की प्रविष्टि 31 का विषय है। छोटे बंदरगाह, भारतीय पत्तन अधिनियम, 1908 द्वारा अभिशासित हैं तथा इन बंदरगाहों को विनियमित और नियंत्रित करने की शक्ति राज्यों में निहित है।
      • नए मसौदा भारतीय पत्तन विधेयक, 2021 गैर-महापत्तनों के नियोजन, विकास और विनियमन से संबंधित शक्तियों कोसमुद्री राज्य विकास परिषद्’ (MSDC) को हस्तांतरित करने प्रस्ताव करता है।
      • यह विधेयक यथास्थिति को बदलकर केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तियाँ प्रदान करता है। ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे तटीय राज्यों ने इस मसौदा विधेयक पर आपत्ति जताई है, जिसमें राज्यों की गैर-महापत्तनों से संबंधित शक्तियों को सीमित करने का प्रस्ताव है।

              3. विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020

              • विद्युत समवर्ती सूची की प्रविष्टि 38 का विषय है। इस क्षेत्र को विनियमित करने की शक्ति राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERCs) में निहित है, जो कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त व्यक्तियों द्वारा स्पष्टतया संचालित है।
              • हालाँकि प्रस्तावित संशोधन विधेयक एकराष्ट्रीय चयन समितिकी स्थापना के साथ नियामक व्यवस्था को पूरी तरह से परिवर्तित करने का प्रयास करता है। इस चयन समिति में केंद्र सरकार द्वारा नामित सदस्यों का वर्चस्व होगा, जो एस..आर.सी. में नियुक्तियाँ करेंगे।
              • इसके अतिरिक्त, इसी संशोधन विधेयक के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा विद्युत अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण’ (ECEA) की स्थापना की जाएगी, जो विद्युत की बिक्री, खरीद या ट्रांसमिशन से संबंधित अनुबंध के अधीन दायित्वों पर अधिकार क्षेत्र रखने वालाएकमात्र प्राधिकरणहोगा।
              • वस्तुतः राज्य सरकार से विद्युत क्षेत्र को विनियमित करने की शक्तिछीन लीजाएगी।
              • उक्त कारणों के आधार पर ही पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल जैसे विभिन्न राज्य विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 का विरोध कर रहे हैं।

              चिंता के कारण

              • केंद्र सरकार द्वारा समवर्ती सूची के विषयों पर अत्यधिक कानून बनाना गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे संविधान का संतुलन बिगड़ रहा है।
              • भारत सरकार अधिनियम, 1935 के परिकल्पित मॉडल को संविधान निर्माताओं ने अपनाया था। इसके तहत केंद्र सरकार को संघ सूची, राज्य सरकार को राज्य सूची तथा केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने के लिये अधिकार प्रदान किया गया है।
              • समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र और राज्यों दोनों के समान हित हैं। इन विषयों पर कानून बनाने की शक्ति को संघ के साथ साझा करने से पूरे देश में कानूनों की एकरूपता में बढ़ोतरी होगी।
              • लेकिन वर्तमान परिदृश्य में संविधान सभा के एक सदस्यके.टी.एम. अहमद इब्राहिम साहिब बहादुरका वक्तव्य सच होता जा रहा है कि केंद्र सरकार की मनमानी के कारण समवर्ती सूची के विषय समय के साथ संघ सूची में स्थानांतरित हो जाएँगे।

              भावी राह

              • सरकारिया आयोग ने सिफारिश की थी कि समवर्ती सूची के विषयों परपारस्परिक परामर्श और सहयोगके माध्यम से समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये।
              • यह भी सिफारिश की गई थी कि समवर्ती सूची के विषयों पर केंद्र सरकार को अपनी शक्तियों का प्रयोग केवल कानूनों की एकरूपता सुनिश्चित करने के लिये करना चाहिये।
              • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग’ (NCRWC) या वेंकटचलैया आयोग ने सिफारिश की थी कि अनुच्छेद 263 के तहत स्थापितअंतर-राज्यीय परिषद्के माध्यम से राज्यों के साथव्यक्तिगत और सामूहिक परामर्शकिया जाना चाहिये।
              • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राज्य सरकारें केवल संघ के उपांग (Appendage) नहीं हैं। अतः केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि राज्यों की शक्ति पर अतिक्रमण किया जाए।

              निष्कर्ष

              • संविधान निर्माताओं का इरादा यह सुनिश्चित करना था कि लोक कल्याण की रक्षा की जाए, जिसकी कुंजी हितधारकों के साथ सामंजस्य में निहित है।
              • सहकारी संघवाद का सारपरामर्श और संवादमें निहित है और राज्यों को विश्वास में लिये बिना एकतरफा कानून बनाने से  विरोध अधिक होगा।
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