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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के हित

(प्रारंभिक परीक्षा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध: भारत से संबंधित अथवा भारत के हितों को    प्रभावित करने वाले करार, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश) 

संदर्भ

हाल ही में, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में अस्थाई सदस्य के रूप में निर्वाचित हुआ है। यद्यपि भारत यू.एन.एस.सी. (UNSC) में स्थाई सदस्य बनने का अधिकारी है, किंतु इसमें अभी पर्याप्त समय लगने के आसार हैं। ऐसे में, भारत को यू.एन.एस.सी. में सभी पुराने मामलों और स्थाई सदस्यता प्राप्त करने जैसे असाध्य मुद्दों को उठाने की बजाय क्षेत्रीय तथा वैश्विक आधार पर अपने राष्ट्रीय हितों को पहचानते हुए आगे बढ़ना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद: बदलती प्राथमिकताएँ

  • वर्तमान में यू.एन.एस.सी. वह मंच बन गया है जहाँ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शक्तियाँ अपने हितों के अनुसार शर्तों को निर्धारित करती हैं और कम शक्तिशाली देशों कोउ नका 'सही' स्थानदिखाने का प्रयास करती हैं। यहाँ तक ​​कि ये शक्तियाँ अपने हितों के लिये आपस में टकराती हैं क्योंकि अनेक बार ये यू.एन.एस.सी. से बाहर ही सौदे तय कर लेती हैं।
  • यू.एन.एस.सी. अब वह मंच नहीं रहा जहाँ मानव जाति के उन्नत आदर्शों को पूरा करने का प्रयास किया जाता है और न ही अब यहाँ न्यायसंगत एवं नैतिक विचारों को ध्यान में रखा जाता है।
  • यू.एन.एस.सी. की प्रासंगिकता अब केवल अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने तक ही सीमित हो गई है, अब इससे किसी गंभीर मुद्दे को सुलझाने या नए प्रयासों की उम्मीद करना बेईमानी है।
  • यू.एन.एस.सी. एक ऐसे समय में प्रवेश कर रहा है जब नई विश्व व्यवस्था का उद्भव हो रहा है, एक ऐसी व्यवस्था जिसमे प्रणालीगत अनिश्चितताएँ हैं , वैश्विक साझा हितों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा, वैश्विक नेतृत्व अनुपस्थित है, विश्व का प्रतिद्वंद्वी समूहों में विभाजन हो रहा है, संकीर्ण राष्ट्रीय हित दृढ़ता से बढ़ रहे हैं और नैतिक मूल्य आधारित विश्व व्यवस्था का विचार अब पीछे रह गया है।

 भारत की स्थिति

  • भारत आठवीं बार यू.एन.एस.सी. में अस्थाई सदस्य के रूप में भाग ले रहा है और वह परिषद में होने वाले भेदभाव को अच्छे से समझता है। किंतु फिर भी, भारत अक्सर अपनी अतीत की बयानबाजी का शिकार होता रहा है और अपने हितों को भूल जाता है।
  • भारत की भूमिका में भी पर्याप्त बदलाव आया है। अब वह भी वैश्विक सद्भाव व् शांति जैसे आदर्शों की बात बार-बार नहीं करता है और न ही अब वह वैश्विक भू-राजनीति में एक मूक-दर्शक है।
  • वर्तमान में भारत पहले की अपेक्षा अधिक आत्मविश्वासी एवं मज़बूत नजर आता है। सीमित संसाधनों, संकुचित अर्थव्यवस्था तथा घरेलू सर्वसम्मति के अभाव के बावजूद यह अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।
  • भारत की स्थिति में पर्याप्त बदलाव आया है, अब यह वैश्विक राजनीति में हाशिये पर रहने की बजाय केंद्रीय भूमिका निभाने को तत्पर है। इसका कठिन यथार्थवाद न केवल विदेश नीति की विशेषता है, बल्कि यह इसके घरेलू राजनीतिक गतिशीलता में भी प्रतिबिंबित होता है।
  • हालाँकि, भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि इसकी संसाधनों एवं भू-राजनीति से संबंधित कुछ सीमाएँ हैं। अतः इन सीमाओं को ध्यान में रखते हुए यू.एन.एस.सी. में अपने हितों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिये।
  • चीन की भूमिका
  • चीन अपनी सैन्य प्रतिद्वंद्विता को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है, जिसे न्यूयॉर्क में हुई यू.एन.एस.सी. की बैठक में देखा गया है। भारत द्वारा वर्ष 2022 के लिये तीन समितियों का, विशेषकर आतंकवाद-रोधी समिति (CTC) का अध्यक्ष बनाने संबंधी मुद्दे पर चीन ने भारत का विरोध किया।
  • अमेरिका में जो बाइडन ने सत्ता संभाल ली है और उन्होंने विशेष रूप से पेरिस जलवायु समझौते तथा ईरान परमाणु समझौते को पुनः अपनाने की बात कही है। इससे विश्व व्यवस्था में कुछ सुधार होगा और कठोर प्रतिद्वंद्विता में भी कमी आएगी।
  • अगर बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रम्प की यू.एन.एस.सी. तथा अन्य क्षेत्रों में चीन को वापस धकलने की नीति पर आगे बढ़ता है तो चीन का सामना करने के लिये भारत को अमेरिका के रूप में एक सहयोगी मिल सकता है।
  • यू.एन.एस.सी. में भारत को पश्चिमी देशों के साथ अपने गठबंधन को मज़बूत करना होगा, हालाँकि इससे भारत की रूस के साथ दूरी बढ़ने की संभावना है, जिससे रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ेगी। लेकिन यदि भारत रूस के संबंधों पर अधिक चिंतित होता है तो इससे भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक होंगे।
  • यू.एन.एस.सी. में भारत के यह दो वर्ष चीन की आक्रामकता को रोकने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगे। इसके लिये भारत को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना होगा और आगे के क्षेत्रों में पर्याप्त सुरक्षा बल जुटाना होगा।
  • डोकलाम, लद्दाख और अब अरुणाचल प्रदेश के संदर्भ में भारत का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। चीन की घुसपैठ की कोशिशें लगातार जारी रही हैं और यह भविष्य में भी जारी रहेंगी, तो ऐसे में चीन का सामना करने के लिये भारत को हर संभव कोशिश करनी होगी।

आतंकवाद का मुद्दा

  • यू.एन.एस.सी. में भारत के लिये आतंकवाद का मुद्दा केंद्रीय मुद्दा होने की संभावना है। आतंकवाद का मुद्दा देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में दशकों से एक प्रमुख विषय रहा है।
  • भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के मुद्दे पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर चुके हैं। इस मुद्दे पर उन्होंने कहा था कि, “आतंकवादी, आतंकवादी ही होते हैं वो अच्छे या बुरे नहीं होते। इसे अच्छे या बुरे में बाँटने वालों के इसमें स्वार्थ निहित होते हैं, जो कि एक अपराध है
  • आने वाले समय में भारत तालिबान प्रतिबंध समिति (TSC) की अध्यक्षता करने वाला है जो कि अफगानिस्तान में तेजी से बढ़ते विकास और तालिबान के साथ जुड़ने की इसकी महत्वाकांक्षा को बल देगा।
  • भारत को आतंकवाद के प्रति अपनी नीति को और अधिक बुद्धिमता, कूटनीति और विशेष राजनीतिक बारीकियों के साथ तैयार करना चाहिये, ताकि भारत तालिबान के साथ अपनी संबद्धता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके।
  • अतः इसके लिये भारत को अंतर्राष्ट्रीय तथा घरेलू स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिये एकसमान व सुस्पष्ट नीति बनानी होगी।

आगे की राह

  • भारत को अपने समान विचारधारा वाले देशों के साथ सामंजस्य स्थापित करना होगा और इन देशों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन से लेकर गैर- प्रसार जैसे प्रत्येक विषय पर अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित करना होगा।
  • हालाँकि, ऐसा हो सकता है कि यू.एन.एस.सी. में इन पर विषयों पर अधिक ध्यान न दिया जाए पर फिर भी भारत को अपनी कुटनीतिक शक्तियों का उपयोग करते हुए अलग-अलग मंचो तथा डोमेन के माध्यम से इन विषयों को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
  • साथ ही, भारत को यू.एन.एस.सी. में रणनीतिक व सामरिक रूप से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय ‘इंडो-पैसिफिक’ पर भी अपनी रणनीति को स्पष्ट करना होगा। ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र वर्तमान में वैश्विक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है और अनेक देश इस पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अतः इससे संबंधित किसी भी नीति में भारत को केंद्रीय भूमिका निभानी होगी।

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि यू.एन.एस.सी. में अभी किसी नए स्थाई सदस्य का प्रवेश संभव नहीं है, क्योंकि इसमें अभी पर्याप्त समय लगेगा। भारत के अभी तक के सभी वैश्विक प्रयास यू.एन.एस.सी. में स्थाई सदस्य बनने की दिशा में ही हुए हैं, किंतु अब भारत को इस दिशा में प्रयास नहीं करने चाहिये। अतः अब भारत को इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिये कि यू.एन.एस.सी. में क्या होना चाहिये, बल्कि इस पर ध्यान देना होगा कि भारत क्या कर सकता है और इसे अपनी वर्तमान स्थिति तथा क्षमता के आधार पर अपने हितों को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।

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