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कोलंबो टर्मिनल परियोजना से भारत बाहर

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : भारत एवं इसके पड़ोसी संबंध, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

हाल ही में, ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद कोलंबो पोर्ट पर रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ‘ईस्ट कंटेनर टर्मिनल’ (ई.सी.टी.) विकसित करने के लिये भारत और जापान के साथ वर्ष 2019 में हुए समझौते को श्रीलंका सरकार ने रद्द कर दिया है। प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कहा है कि ईस्ट टर्मिनल का संचालन ‘श्रीलंका बंदरगाह प्राधिकरण’ स्वयं करेगी।

समझौता

  • ट्रांसशिपमेंट और भारत- वर्ष 2019 में भारत और श्रीलंका ने आर्थिक परियोजनाओं पर सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे। कंटेनर टर्मिनल का विकास और संचालन इन समझौता ज्ञापनों में से एक था। अधिक भारतीय निवेश के कारण यह माना जा रहा है कि कोलंबो पोर्ट पर अधिकतर ट्रांसशिपमेंट और परिवहन भारत से संबंधित है।
  • रणनीतिक महत्त्व- एम.ओ.यू. में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का उल्लेख नहीं था, लेकिन भारत और श्रीलंका इसके विकास व संचालन के लिये पहले से ही चर्चा कर रहे थे। कोलंबो पोर्ट में ई.सी.टी. को रणनीतिक रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ई.सी.टी. में भारत और जापान की 49% हिस्सेदारी है। यह कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल (CICT) परियोजना के बगल में स्थित है, जो चीन और श्रीलंका का एक संयुक्त उद्यम है।

समझौते को रद्द करने का कारण

  • आंतरिक विरोध व राजनीति- अत्यधिक आंतरिक दवाब और राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे की लोकप्रियता में कमी इसका प्रमुख कारण है। निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध प्रदर्शन को समाज के अन्य कई वर्गों के बढ़ते समर्थन के कारण आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा। जब इस तरह का विरोध सिंहल-बौद्ध राजनेताओं के लिये लाभदायक होता तो वे इसे एक अवसर के रूप में प्रयोग करते हैं और जनता द्वारा भारत के समक्ष आत्मसमर्पण करने के आरोपों व भावनाओं से बचने की कोशिश करते हैं।
  • चीन का हित- राजनयिक स्तर पर ऐसी रिपोर्ट और आरोप है कि पोर्ट यूनियनों को उकसाने में चीन की भूमिका थी। चीनी परियोजनाओं के विपरीत, भारत की बड़ी परियोजनाओं को श्रीलंका में हमेशा विरोध का सामना करना पड़ा है।
  • जापान के प्रभाव में कमी- इस कारण से भारत ने जापान को एम.ओ.यू. में सूचीबद्ध कम से कम दो परियोजनाओं में शामिल किया क्योंकि संघर्ष के दौरान जापान ने श्रीलंका का सबसे अधिक दान दिया था और वह अब भी श्रीलंका को पर्याप्त वित्तीय सहायता मुहैया कराता है। हालाँकि, चीन के कारण श्रीलंका और जापान के बीच पुराने संबंधों में बदलाव आया है। पिछले साल श्रीलंका सरकार ने कोलंबो में उपनगरीय रेल के लिये एक जापानी परियोजना को एकतरफा रद्द कर दिया था।

भारत की प्रतिक्रिया और प्रतिपूरक प्रस्ताव

  • एकपक्षीय निर्णय- भारत ने प्रतिक्रिया दी है कि श्रीलंका को मौजूदा त्रिपक्षीय समझौते में एकपक्षीय तरीके से निर्णय नहीं लेना चाहिये और सभी पक्षों को मौजूदा समझ व प्रतिबद्धता का पालन करना जारी रखना चाहिये।
  • वेस्ट टर्मिनल प्रोजेक्ट- इसके बाद भारत और जापान के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में कोलंबो पोर्ट पर ‘वेस्ट टर्मिनल’ को विकसित करने के प्रस्ताव को श्री-लंका की कैबिनेट ने मंजूरी प्रदान की। इस कदम को भारत के लिये क्षतिपूर्ति के रूप में देखा जा रहा है। व्यावसायिक रूप से पश्चिमी टर्मिनल भारत के लिये बेहतर है क्योंकि यह ई.सी.टी. में 49% के विरुद्ध पश्चिम टर्मिनल के डेवलपर्स को 85% हिस्सेदारी प्रदान करता है। हालाँकि, इस पर अंतिम निर्णय भारत सरकार द्वारा लिया जाना है।
  • समानता- भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यदि सुरक्षा पहलू और श्रीलंका में पोर्ट टर्मिनल की आवश्यकता पर विचार किया जाए तो वेस्ट टर्मिनल लगभग ईस्ट टर्मिनल जैसा ही है। साथ ही वेस्ट टर्मिनल की गहराई और आकार ईस्ट टर्मिनल की तुलना में में कम नहीं है। श्रीलंका के अनुसार पूर्व और पश्चिम टर्मिनलों के बीच कोई अंतर नहीं है, सिवाय इसके कि पश्चिम टर्मिनल को प्रारंभ से विकसित किया जाना है।

भारत-श्रीलंका संबंध पर प्रभाव

  • व्यापक प्रभाव- भारत के लिये रणनीतिक ई.सी.टी. परियोजना महत्वपूर्ण थी। ऐसी उम्मीद है कि वेस्ट टर्मिनल की पेशकश के साथ यह मुद्दा जल्द ही खत्म हो जाएगा। हालाँकि, कुछ श्रीलंकाई विश्लेषकों ने ई.सी.टी. के नवीनतम निर्णय के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभावों का अनुमान लगाया है।
  • कूटनीतिक रूप से अनुकूल नहीं- बौद्ध भिक्षुओं सहित आक्रामक, कट्टरपंथी और राष्ट्रवादी समूहों के साथ-साथ मध्यम वर्ग की सामान्य भावनाएँ भी भारत से समझौते के खिलाफ थीं। हालाँकि, यदि इन समूहों का प्रभाव वहाँ की राजनीति के साथ-साथ कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित करता है तो यह श्रीलंकाई प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिये राजनीतिक रूप से अनुकूल नहीं है।
  • आर्थिक दृष्टिकोण- इस बीच, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत भू-राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर श्रीलंका को अलग-थलग कर सकता है और महामारी के बीच आर्थिक अलगाव श्रीलंका के लिये मुश्किलें पैदा कर सकता है।
  • व्यावसायिक महत्त्व- ई.सी.टी. समझौते को रद्द करने के साथ ही श्रीलंकाई सरकार ने वेस्ट टर्मिनल को निजी निवेश के माध्यम से विकसित करने के लिये लगभग सभी ट्रेड यूनियनों से लिखित सहमति ले ली है। यह अडानी के लिये भी व्यावसायिक रूप से बेहतर सौदा है।
  • हालाँकि, भारत को पहले पश्चिमी कंटेनर टर्मिनल की पेशकश की गई थी, जिससे भारत ने इनकार कर दिया था। ई.सी.टी. पहले से ही परिचालन अवस्था में है, जबकि डब्ल्यू.सी.टी. को प्रारंभ से विकसित करना है।
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