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भारतीय नौकरशाही: डेस्क से डिजिटल की ओर

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 2; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई – गवर्नेंस – अनुप्रयोग , मॉडल, सफलताएँ , सीमाएँ और सम्भावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय से सबंधित विषय )

संदर्भ

कोविड-19 महामारी ने सभी सार्वजनिक संस्थाओं के लचीलेपन की परीक्षा ली है। विभिन्न प्रयासों के बावजूद महामारी के दौरान नौकरशाही की अप्रभावी प्रतिक्रिया चिंता का प्रमुख विषय बनकर उभरी है। ऐसे में, नौकरशाही में डिजिटल परिवर्तन का यह उपयुक्त समय है।

प्रमुख बिंदु 

  • नौकरशाही में डिजिटल परिवर्तन केवल ई-कार्यालय तथा ई-शासन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि डिजिटल स्पेस हेतु संगठनात्मक बदलाव भी शामिल हैं।
  • इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा नौकरशाही द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर है।

    सिविल सेवक तथा सोशल मीडिया का उपयोग

    पक्ष में तर्क

    • पूर्व सिविल सेवक सहित कई लोग अपनी आधिकारिक क्षमता में सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया का उपयोग करने के पक्ष में हैं।
    • सोशल मीडिया के माध्यम से सिविल सेवक जनता के साथ सुगमता से जुड़ सकते हैं। ध्यातव्य है कि सार्वजनिक सेवा वितरण (Public Service Delivery) से जुड़े अनेक मुद्दों को सोशल मीडिया के माध्यम से सुलझाया गया है।
    • सोशल मीडिया ने लंबे समय से अपारदर्शी व आम जनता की पहुँच से दूर माने जाने वाली नौकरशाही व्यवस्था के प्रति लोगों के नज़रिये में सकारात्मक बदलाव किया है।
    • सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के प्रयोग से सरकारी नीतियों व कार्यक्रमों के बारे में जनता में जागरूकता बढ़ी है।
    • सोशल मीडिया मंच नौकरशाहों को राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए सार्वजनिक मुद्दों को हल करने तथा जनता से संवाद करने का अवसर प्रदान करते हैं।

    विपक्ष में तर्क

    • नौकरशाही द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग से ‘अनामिता के सिद्धांत’ का उल्लंघन होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में न चाहते हुए भी नौकरशाह का जनता के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित होता है। उल्लेखनीय है कि ‘अनामिता का सिद्धांत भारतीय नौकरशाही की मुख्य विशेषता है।
    • जहाँ पदानुक्रम, औपचारिक संबंध तथा मानक प्रक्रियाएँ नौकरशाही की मुख्य विशेषताएं हैं, वहीं सोशल मीडिया की पहचान खुलेपन, पारदर्शिता तथा लचीलेपन से होती है।
    • यद्यपि ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ से अनामिता तथा अपारदर्शिता में कमी आई है लेकिन अभी भी ये भारतीय नौकरशाही के प्रमुख लक्षण हैं। 
    • वर्तमान में सार्वजनिक नीति-निर्माण में तथ्यों की अपेक्षा मूल्य अधिक प्रभावी हैं। ऐसे में, जब फेक न्यूज़ तथा संस्थागत प्रचार के माध्यम से तथ्यों तथा मूल्यों दोनों को बदला जा रहा है, तो सार्वजनिक मूल्यों की प्रतीक नौकरशाही से निजी-तौर पर शासन करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिये।
    • ब्रिटेन में ब्रेक्ज़िट के दौरान ब्रिटिश सिविल सेवकों ने राजनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए सोशल मीडिया द्वारा सार्वजनिक बहस को आकार दिया। वहीं, भारत में सिविल सेवकों ने डिजिटल नौकरशाही के इस पहलू पर विचार नहीं किया।

    चुनौतियाँ 

    • भारतीय नौकरशाही में सोशल मीडिया की भूमिका ने अलग दिशा ले ली है। सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया का प्रयोग व्यक्तिगत-प्रचार के लिये किया जा रहा है।
    • कुछ सिविल सेवक अपने चुनिंदा पोस्ट तथा प्रशंसको द्वारा उसके प्रचार के माध्यम से अपने कार्य-प्रदर्शन की व्याख्या करते है। सुलभता व जवाबदेही के नाम पर यह भले ही उचित लगता हो, किंतु इससे ‘अनामिता के सिद्धांत’ का उल्लंघन होता है।
    • सोशल मीडिया के माध्यम से भले ही सिविल सेवकों की सुलभता तथा जवाबदेहिता में वृद्धि हुई है, परंतु यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि ऐसे में सिविल सेवक उन्हीं सूचनाओं तथा लोगों पर प्रतिक्रिया देते हैं, जिन्हें वे चाहते हैं। 
    • सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया के प्रयोग में उनकी जवाबदेहिता तथा सुलभता में एकरूपता का अभाव है।
    • ध्यान रहे, सोशल मीडिया की जवाबदेही अनौपचारिक व्यवस्था है, यह संस्थागत तथा नागरिक-केंद्रित जवाबदेही का विकल्प नहीं है।
    • वास्तव में कार्यालय समय के दौरान सोशल मीडिया के उपयोग को उचित ठहराना अनैतिक है, जब कार्यालय के बाहर जनता प्रतीक्षा कर रही हो।

    आगे की राह

    • सिविल सेवकों द्वारा सोशल मीडिया का प्रयोग सार्वजनिक सुविधाओं के वितरण को सुगम बनाने के लिये किया जाना चाहिये, न कि व्यक्तिगत प्रचार और छवि-निर्माण हेतु।
    • सिविल सेवकों द्वारा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि उनके द्वारा सोशल मीडिया के प्रयोग के दौरान ‘अनामिता के सिद्धांत’ का उल्लंघन न हो।
    • सार्वजनिक बहस के मुद्दों को उचित आकार देने के लिये सिविल सेवक सोशल मीडिया का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन उसमें अपने निजी मत को प्रभावी करने से बचना चाहिये।
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