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राज्य निर्वाचन आयुक्त के संबंध में उच्चतम न्यायालय का निर्देश

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजतंत्र और शासन, पंचायती राज। मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2; विषय-विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति, निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व, स्थानीय स्वशासन)

संदर्भ

  • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया गया है कि राज्यों को चुनाव आयुक्त के रूप में स्वतंत्र व्यक्तियों की नियुक्ति करनी चाहिये। न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले में कहा कि केंद्र व राज्य सरकार के अधीन पद धारण करने वाले व्यक्तियों व नौकरशाहों को राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये।
  • यह निर्णय बंबई उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध अपील की सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें गोवा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नगर निकायों के संबंध में जारी चुनाव अधिसूचना को अलग कर दिया गया था।

संबंधित विवाद

  • ध्यातव्य है कि भारतीय निर्वाचन आयुक्त के पद पर सेवानिवृत नौकरशाहों की नियुक्ति की जाती है, जबकि राज्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में सेवारत नौकरशाहों को ही नियुक्त कर दिया जाता है। इस कारण राज्य निर्वाचन आयोग पारदर्शिता संबंधी विवादों को लेकर अक्सर विवादों से घिरे रहते हैं।
  • 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से शहरी व ग्रामीण स्थानीय निकायों को शासन का तीसरा स्तर बनाया गया था, परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि तीन दशक के बाद भी स्थानीय निकायों को स्वायत्तता प्राप्त नहीं हुई। सेवारत नौकरशाहों की निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्ति स्थानीय निकायों के निर्वाचन पर प्रश्नचिन्ह लगाती है तथा उनकी स्वायत्तता में कमी को स्पष्ट करती है।
  • स्थानीय निकायों की निर्वाचन प्रक्रिया, चुनावों में हिंसा तथा निर्वाचन क्षेत्रों के मनमाने परिसीमन तथा सीटों के आरक्षण के कारण यह आयोग प्रायः विवादों में रहता है।
  • स्थानीय निकाय चुनावों का स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रक्रिया द्वारा संपन्न होना स्वतंत्र और स्वायत्त राज्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन निगरानी प्राधिकरणों जैसे महत्त्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करता है।
  • अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा अपने व्यक्तिगत हित के लिये वरिष्ठ नौकरशाहों को राज्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किये जाने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगता रहा है।
  • विपक्ष का मानना है कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन क्षेत्रों को परिसीमित करने, महिलाओं व अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित सीटों के चक्रानुक्रम में बदलाव करने तथा चुनावों की तिथि निर्धारित करने जैसे नियमित अभ्यास सत्ताधारी दल के हित को ध्यान में रखकर किये जाते हैं। यद्यपि सभी राज्यों के संदर्भ में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।
  • इसी का परिणाम है कि भारत के चुनाव आयोग के समान राज्य निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों तथा जनता के मध्य विश्वास बनाए रखने में सफल नहीं हुए हैं।

उच्चतम न्यायालय का तर्क

  • सार्वजनिक पद पर कार्यरत व्यक्तियों को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किये जाने से राज्य चुनाव आयोगों की स्वतंत्र व निष्पक्ष कार्यप्रणाली की संवैधानिक योजना विफल होने की संभावना होती है।
  • ध्यातव्य है कि निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकाय की स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। साथ ही, सरकारी कर्मचारियों को राज्य चुनाव आयुक्तों का अतिरिक्त प्रभार देना भी ‘संविधान के विरुद्ध’ है।
  • गोवा नगरपालिका चुनाव से संबंधित एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को पाँच नगरपालिका परिषदों में महिलाओं तथा एस.सी./एस.टी. उम्मीदवारों के लिये नगरपालिका निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन व आरक्षण को पुननिर्धारित करने का निर्देश दिया है। वस्तुतः इसे आगामी चुनाव में स्वतंत्र राज्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने के लिये निर्देशित किया गया था।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय

  • अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्य निर्वाचन आयुक्तों को (जो संबंधित राज्य सरकारों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में हैं) अपने पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि राज्य सरकारें व्यवहारिक रूप से प्रायः सेवानिवृत्त नौकरशाहों को निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त करती हैं। ऐसे में न्यायालय का यह निर्णय भविष्य में राज्य निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता को संरक्षित करने में मदद करेगा।

द्वितीय प्रसाशनिक सुधार आयोग के सुझाव

  • द्वितीय प्रसाशनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में स्थानीय निकायों के निर्वाचन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये यह सुझाव दिया कि राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा कॉलेजियम व्यवस्था के माध्यम से की जाय। जिसमें संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य विधान सभा अध्यक्ष तथा सदन में नेता प्रतिपक्ष को शामिल किया जाय।
  • इसके अतिरिक्त, एक ऐसे संस्थागत तंत्र को विकसित किया जाय जिसमें भारतीय निर्वाचन आयोग तथा राज्य निर्वाचन आयोग आपसी समन्वय के अनुसार कार्य करने में सक्षम हों।

राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commission) से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • राज्य निर्वाचन आयोग को अनुच्छेद 243 K के तहत पंचायतों और 243 ZA के अनुसार नगरपालिकाओं के चुनावों के लिये निर्वाचक नामावली (Electoral Roll) तैयार करने और चुनाव के संचालन अधीक्षण (Suparintendence), निदेशन (Direction) तथा नियंत्रण (Control) की शक्ति प्रदान की गई है।
  • राज्य निर्वाचन आयोग में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है, जिसकी नियुक्ति संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है। आयुक्त की सेवा-शर्तें व पदाविधि संबंधी नियम राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई गई विधि के तहत राज्यपाल द्वारा निर्धारित किये जाते हैं। नियुक्ति के पश्चात् उसकी सेवा-शर्तों में कोई भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  • राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से केवल उसी रीति और आधारों पर हटाया जा सकता है, जिन आधारों पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
  • राज्यपाल, राज्य निर्वाचन आयोग के अनुरोध पर निर्वाचन संबंधी कृत्यों के निर्वहन के लिये आवश्यक कर्मचारी उपलब्ध कराएगा।
  • संविधान के प्रावधानों के तहत राज्य विधानमंडल, पंचायतों व नगरपालिकाओं के निर्वाचन से संबंधित सभी विषयों के लिये उपबंध कर सकता है।
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