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स्वास्थ्य आपदा के दौर में बौद्धिक संपदा अधिकार

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ और सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 3 : बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषय)

संदर्भ

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कोविड-19 टीकों के लिये ‘बौद्धिक संपदा संरक्षण में छूट’ देने का समर्थन किया है। उसने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में असाधारण उपायों की आवश्यकता होती है और वह ‘विश्व व्यापार संगठन’ (डब्ल्यू.टी.ओ.) से छूट परत करने के लिये ‘पाठ-आधारित वार्ता’ को आगे बढ़ाएगा।

पाठ-आधारित वार्ता (Text-Based Negotiations)

  • ‘पाठ-आधारित वार्ता’ में शामिल वार्ताकार अपने लिये उपयुक्त शब्दों या शर्तों के साथ पाठों का आदान-प्रदान करते हैं और फिर किसी मुद्दे पर आम सहमति बनाते हैं। यह एक लंबी प्रक्रिया है।
  • इसके लिये डब्ल्यू.टी.ओ. के सभी 164 सदस्यों की सहमति आवश्यक होगी तथा प्रत्येक सदस्य को इस पर वीटो करने का अधिकार होगा। ‘सहमति-आधारित प्रकृति’ और ‘मुद्दों की जटिलता’ के कारण यह एक समयसाध्य प्रक्रिया है। यूरोपीय संघ ने पहले इस छूट का विरोध किया था, परंतु अब इस प्रस्ताव पर चर्चा करने की इच्छा प्रकट की है।
    कोविड-19 टीकों के लिये बौद्धिक संपदा संरक्षण में छूट का अर्थ
  • बौद्धिक संपदा (IP) में छूट मिलने से मध्यम आय वाले देशों में भी फाइज़र, मॉडर्ना, एस्ट्राजेनेका, नोवावैक्स, जॉनसन एंड जॉनसन तथा भारत बायोटेक द्वारा विकसित किये गए कोविड टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सकेगा।
  • इन टीकों का अधिकांश उत्पादन वर्तमान में उच्च आय वाले देशों में केंद्रित है और मध्यम आय वाले देशों द्वारा इसका उत्पादन लाइसेंसिंग या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों के माध्यम से हो रहा है। हालाँकि दवा कंपनियों ने इस कदम का विरोध करते हुए तर्क दिया कि उत्पादन क्षमता में वृद्धि एक लंबी प्रक्रिया है, जो पेटेंट में छूट देने भर से ही नहीं प्राप्त की जा सकती है।
  • भारत व दक्षिण अफ्रीका द्वारा पिछले वर्ष डब्ल्यू.टी.ओ. में दिये गए आई.पी. ​​छूट संबंधी प्रस्ताव के कारण अमेरिका ने इसका समर्थन किया है। इस प्रस्ताव में कोविड संबंधी सभी ज़रूरतों पर छूट की माँग की गई थी, जिसमें परीक्षण, निदान व नई चिकित्सा प्रणाली शामिल थी।

पेटेंट और आई.पी. अधिकार

  • ‘पेटेंट’ एक प्रभावी बौद्धिक संपदा अधिकार होता है। यह आविष्कारक को उसके द्वारा किये गए आविष्कार का एक सीमित और निर्दिष्ट समय के लिये का उपयोग करने का एकाधिकार प्रदान करता है। वस्तुतः यह किसी आविष्कार की नकल रोकने के लिये दिया गया एक कानूनी अधिकार है। पेटेंट में ‘प्रक्रिया का पेटेंट’ या ‘उत्पाद का पेटेंट’ शामिल होता है।
  • ‘उत्पाद पेटेंट’ इस बात को सुनिश्चित करता है कि एक निर्दिष्ट अवधि के दौरान पेटेंट धारक के अतिरिक्त कोई अन्य उस विशिष्ट उत्पाद का निर्माण नहीं करेगा, भले ही वह एक अलग प्रक्रिया का उपयोग क्यों न कर रहा हो। जबकि ‘प्रक्रिया पेटेंट’ में पेटेंट धारक के अलावा, कोई भी उस निश्चित प्रक्रिया में संशोधन करके पेटेंट प्राप्त उत्पाद का निर्माण कर सकता है।
    आई.पी. छूट का विरोध क्यों?
  • आई.पी. सुरक्षा को समाप्त करना महामारी को रोकने के लिये किये जा रहे नवाचारों को हतोत्साहित करेगा। साथ ही, इससे भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है, जो टीका सुरक्षा (वैक्सीन सेफ्टी) में सार्वजनिक विश्वास को कम कर सकता है तथा सूचना साझाकरण में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके अतिरिक्त, केवल आई.पी. सुरक्षा को समाप्त करने से उत्पादन में तेज़ी लाने का भी तर्क भी युक्तिसंगत नहीं लगता है।
  • यह भी कहा जा रहा है कि गरीब और माध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन के तीव्र उत्पादन की क्षमता नहीं है और इनकी गुणवत्ता पर भी प्रश्नचिह्न है। वर्ष 1972 से 2005 के बीच भारत ने ‘उत्पादों’ का पेटेंट कराने के बजाय ‘प्रक्रिया’ के पेटेंट पर ज़ोर दिया। इससे भारत में एक व्यापक जेनेरिक दवा उद्योग का विकास हुआ। हालाँकि ट्रिप्स समझौते से उत्पन्न दायित्वों के कारण भारत को वर्ष 2005 में पेटेंट अधिनियम में संशोधन करना पड़ा और फार्मा, रसायन तथा जैव-प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में ‘उत्पाद पेटेंट’ व्यवस्था को अपनाना पड़ा।

निष्कर्ष

विशेषज्ञों के अनुसार, आई.पी. छूट के प्रस्ताव में कोविड-19 के उपचार और रोकथाम में सहायक सभी आवश्यकताओं को शामिल किया जाना चाहिये। इस के उपचार में सहायक सभी ज़रूरी वस्तुओं के सीमित उत्पादन होने और इसकी अधिकांश आपूर्ति उच्च आय वाले देशों में केंद्रित होने के कारण अन्य देशों की इन तक पहुँच कम है। पेटेंट से छूट मिलने पर कनाडा, दक्षिण कोरिया और बांग्लादेश सहित अन्य देशों ने कोविड टीकों के उत्पादन में रुचि दिखाई है।

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