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बायो-फोर्टिफाइड आलू: भारत में पोषण के लिए एक नया कदम

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: जैव-प्रौद्योगिकी; कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ)

संदर्भ

पोषक तत्वों से समृद्ध बायो-फोर्टिफाइड आलू भारत में जल्द ही बाजार में उपलब्ध होंगे। ये आलू न केवल खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देंगे, बल्कि पोषण की कमी को दूर करने में भी मदद करेंगे।

बायो-फोर्टिफाइड आलू के बारे में

  • क्या है: बायो-फोर्टिफाइड आलू में जैव-प्रौद्योगिकी के माध्यम से आयरन और विटामिन A जैसे पोषक तत्वों की मात्रा में वृद्धि की जाती है।
  • उद्देश्य: ये आलू पोषण की कमी, विशेष रूप से आयरन और विटामिन A की कमी को संबोधित करने के लिए विकसित किए गए हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP): पेरू स्थित CIP ने बायो-फोर्टिफाइड आलू और शकरकंद विकसित किए हैं। CIP का नेतृत्व डॉ. साइमन हेक कर रहे हैं।
  • ICAR साझेदारी: CIP ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के केंद्रीय आलू संस्थान, शिमला के साथ जर्मप्लाज्म साझा किया है, जिसे भारतीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलित किया जा रहा है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार: आगरा में CIP के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना के लिए भूमि प्रदान की गई है।

लाभ

  • आयरन की कमी को कम करने के लिए विकसित, जो भारत में विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों में प्रचलित है।
  • स्कूल मिड-डे मील जैसे कार्यक्रमों में शामिल होने से बच्चों में पोषण स्तर सुधरेगा।
  • बेहतर गुणवत्ता वाले बीज और कम रासायनिक उपयोग से किसानों की आय बढ़ेगी।

भारतीय बाजार के लिए योजना

  • बायो-फोर्टिफाइड आलू की शुरुआत : आयरन युक्त आलू जल्द ही भारतीय बाजार में उपलब्ध होंगे, जिनका मूल्यांकन ICAR द्वारा किया जा रहा है।
  • शकरकंद का विस्तार : विटामिन A युक्त शकरकंद को और अधिक राज्यों में किसानों तक पहुंचाने की योजना है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में एकीकरण : मिड-डे मील जैसे सरकारी कार्यक्रमों में बायो-फोर्टिफाइड आलू एवं शकरकंद को शामिल करना।
  • वाणिज्यिक उपयोग : शकरकंद को प्रसंस्करण (बेकिंग व कन्फेक्शनरी) के लिए बढ़ावा देना, जो बिना रेफ्रिजरेशन के दो वर्ष तक संग्रहीत किए जा सकते हैं।

आगरा के CIP की भूमिका

  • क्षेत्रीय केंद्र: आगरा में CIP का दक्षिण एशिया केंद्र भारत के आलू बेल्ट (इंडो-गैंगेटिक मैदान) में स्थापित किया गया है जो विश्व का सबसे बड़ा आलू उत्पादक क्षेत्र है।
  • बीज की उपलब्धता: केंद्र किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले आलू एवं शकरकंद के बीज समय पर उपलब्ध कराएगा।
  • बाजार पहुंच: CIP निजी कंपनियों और सार्वजनिक अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर किसानों को बाजार से जोड़ेगा।
  • क्षमता निर्माण: बीज गुणन के लिए कंपनियों की क्षमता बढ़ाने और नई किस्मों के प्रजनन पर ध्यान देगा।

प्रभाव

  • पोषण सुधार: आयरन और विटामिन A की कमी को कम करने में मदद, विशेष रूप से कमजोर वर्गों जैसे बच्चों और महिलाओं के लिए।
  • कृषि विकास: उच्च गुणवत्ता वाले बीज और रासायनिक उपयोग में कमी से किसानों की उत्पादकता व आय में वृद्धि।
  • वैश्विक आपूर्ति: भारत को शकरकंद का वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनाने की संभावना, विशेष रूप से अफ्रीका जैसे बाजारों के लिए।
  • आर्थिक अवसर: अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का बढ़ता निवेश भारत के आलू क्षेत्र को और मजबूत करेगा।

चुनौतियाँ

  • बीज की उपलब्धता: उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की कमी और समय पर आपूर्ति एक बड़ी बाधा है।
  • बाजार अस्थिरता: आलू की कीमतों में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति की अधिकता या कमी की समस्या।
  • जागरूकता की कमी: किसानों और उपभोक्ताओं में बायो-फोर्टिफाइड आलू के लाभों के बारे में सीमित जागरूकता।
  • अनुकूलन: भारतीय जलवायु एवं मृदा के लिए बायो-फोर्टिफाइड किस्मों को अनुकूलित करने में समय व संसाधनों की आवश्यकता।

आगे की राह

  • बीज उत्पादन में वृद्धि: CIP और निजी कंपनियों को बीज गुणन की क्षमता बढ़ानी चाहिए।
  • बाजार स्थिरीकरण: सरकार को बाजार बोर्ड्स के माध्यम से आपूर्ति और कीमतों को स्थिर करने की नीतियाँ लागू करनी चाहिए।
  • जागरूकता अभियान: बायो-फोर्टिफाइड आलू और शकरकंद के लाभों को बढ़ावा देने के लिए किसानों तथा उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
  • क्षेत्रीय सहयोग: भारत, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ समन्वय समिति के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करना।
  • अनुसंधान और विकास: ICAR एवं CIP के बीच सहयोग को बढ़ाकर नई किस्मों का विकास और अनुकूलन करना।
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