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शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता: भविष्य के लिए तैयार भारत की नींव

(प्रारंभिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय, सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर)

संदर्भ

राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) विकास सम्मेलन (एआई महाकुंभ) में भारत के उपराष्ट्रपति ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को स्कूल एवं उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाए जाने का आह्वान किया। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है जोकि केवल तकनीकी उन्नयन की बात नहीं है बल्कि भारत की विशाल एवं विविध शिक्षा प्रणाली को भविष्य की अर्थव्यवस्था के अनुरूप ढालने का प्रयास है।

शिक्षा में एआई का अर्थ

  • शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का तात्पर्य केवल स्वचालन से नहीं है बल्कि मानवीय निगरानी एवं निर्णय को बनाए रखते हुए मशीन लर्निंग, डाटा एनालिटिक्स व बुद्धिमान प्रणालियों के उपयोग से है। 
  • इसका उद्देश्य शिक्षण, अधिगम, मूल्यांकन, अनुसंधान एवं शैक्षिक प्रशासन को अधिक प्रभावी, समावेशी व उत्तरदायी बनाना है। 

वैश्विक एवं राष्ट्रीय प्रवृत्ति 

  • आज विश्वभर में शिक्षा के क्षेत्र में एआई का तेज़ी से विस्तार हो रहा है। अनुमान है कि उच्च शिक्षा के 80% से अधिक संस्थान सीखने और अनुसंधान में किसी-न-किसी रूप में एआई उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। 
  • भारत में भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 और एआई फॉर साइंस जैसी पहलें डिजिटल और एआई-सक्षम शिक्षण को बढ़ावा दे रही हैं। यूनेस्को एवं आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने तो एआई को सतत विकास लक्ष्य-4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) प्राप्त करने का एक प्रमुख माध्यम माना है।

भारत के लिए एआई की आवश्यकता 

  • वैयक्तिकृत शिक्षण की आवश्यकता : भारत की शिक्षा प्रणाली 25 करोड़ से अधिक शिक्षार्थियों को सेवा देती है। सामाजिक, भाषाई एवं संज्ञानात्मक विविधता के इस परिदृश्य में ‘एक ही मॉडल सभी के लिए’ प्रभावी नहीं हो सकता है। एआई इसी चुनौती का समाधान प्रस्तुत करता है।
    • उदाहरण के तौर पर, दीक्षा प्लेटफॉर्म एआई-आधारित अनुशंसा प्रणालियों के माध्यम से छात्रों को उनकी सीखने की गति और जरूरतों के अनुसार सामग्री उपलब्ध कराता है।
  • शिक्षकों की कमी: विशेषकर महत्वाकांक्षी और ग्रामीण जिलों में शिक्षक-अभाव शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। उत्तर प्रदेश की SwiftChat AI जैसी पहलें पैरा-टीचरों को पाठ योजना और संदेह समाधान में सहायता देकर इस कमी को आंशिक रूप से दूर कर रही हैं। 
  • कौशल एवं पाठ्यक्रम के बीच अंतर : वर्तमान अर्थव्यवस्था को विश्लेषणात्मक, डिजिटल एवं समस्या-समाधान कौशल चाहिए, जबकि शिक्षा प्रणाली अभी भी काफी हद तक रटने पर आधारित है। अटल टिंकरिंग लैब्स में एआई मॉड्यूल छात्रों में कम्प्यूटेशनल थिंकिंग विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। 
  • समानता व पहुँच : भाषाई व क्षेत्रीय बाधाएँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में असमानता पैदा करती हैं। AI4Bharat जैसी पहलें उन्नत STEM सामग्री को भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराकर इस अंतर को कम कर रही हैं।    

एआई से शिक्षा में होने वाले परिवर्तन

  • व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव : Embibe जैसे प्लेटफॉर्म परीक्षा उत्तरों का विश्लेषण कर JEE/NEET छात्रों के लिए लक्षित अभ्यास सामग्री तैयार करते हैं।
  • शिक्षकों का सशक्तिकरण : ग्रेडिंग और प्रशासनिक कार्यों के स्वचालन से शिक्षक छात्रों के साथ गहन संवाद व मार्गदर्शन पर अधिक समय दे पाते हैं। सी.बी.एस.ई. के एआई-सक्षम पोर्टल इसका उदाहरण हैं।
  • अनुसंधान में तेजी : एआई आधारित साहित्य समीक्षा और डेटा विश्लेषण अनुसंधान की समय-सीमा को कम कर रहे हैं। भाषिनी जैसे प्लेटफॉर्म बहुभाषी शैक्षणिक सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • स्मार्ट गवर्नेंस : गुजरात का विद्या समीक्षा केंद्र भविष्यसूचक विश्लेषण के माध्यम से स्कूल छोड़ने की आशंका वाले छात्रों की पहचान करता है।
  • रोजगार क्षमता का निर्माण : AICTE का NEAT प्लेटफॉर्म छात्रों को उभरते क्षेत्रों, जैसे- इलेक्ट्रिक वाहन और सेमीकंडक्टर में इंटर्नशिप से जोड़ता है।

नैतिकता एवं सावधानियाँ

  • यूनेस्को ने शिक्षा में एआई के लिए कुछ मूल सिद्धांत रेखांकित किए हैं जिसमें मानव-केंद्रित दृष्टिकोण, समानता व समावेशन, नैतिक उपयोग, डेटा गोपनीयता एवं सांस्कृतिक संवेदनशीलता शामिल है। ये सिद्धांत इसलिए आवश्यक हैं क्योंकि एआई से जुड़ी चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं।
  • डिजिटल विभाजन, एआई पर अत्यधिक निर्भरता, एल्गोरिथमिक पूर्वाग्रह, शिक्षकों की अपर्याप्त तैयारी और छात्रों के डेटा की निजता से जुड़े खतरे गंभीर चिंताएँ हैं। उदाहरणस्वरूप, कई निजी एडटेक कंपनियों द्वारा छात्र डेटा के व्यावसायिक उपयोग को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

आगे की राह 

  • समाधान के तौर पर एआई साक्षरता को प्रारंभिक शिक्षा से जोड़ना, शिक्षकों के लिए व्यापक क्षमता निर्माण, मिश्रित (ब्लेंडेड) शिक्षण मॉडल अपनाना, मजबूत नियामक ढाँचा विकसित करना और स्वदेशी, संदर्भ-संवेदनशील एआई प्रणालियों को बढ़ावा देना आवश्यक है। वस्तुतः भाषिनी के तहत सभी 22 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षित एलएलएम विकसित करने का प्रयास इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता भारत की शिक्षा प्रणाली को रटने-केंद्रित से शिक्षार्थी-केंद्रित बनाने की क्षमता रखती है। यदि इसे नैतिकता, समावेशन और मानवीय निगरानी के साथ अपनाया जाए, तो एआई न केवल गुणवत्ता में सुधार करेगा बल्कि समान अवसर व नवाचार का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। एक भविष्य के लिए तैयार, ज्ञान-आधारित विकसित भारत के निर्माण में शिक्षा में एआई की भूमिका निर्णायक होगी। 
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