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मैंग्रोव वन के लाभ एवं चुनौतियाँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

मैंग्रोव वन तटीय पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करने के साथ ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभ भी प्रदान करते हैं। यह दर्शाता है कि पारिस्थितिक संरक्षण आर्थिक विकास को किस प्रकार बढ़ावा दे सकता है।

भारत में मैंग्रोव वन की स्थिति 

  • नवीनतम भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार देश में कुल मैंग्रोव आच्छादन 4,991.68 वर्ग किमी. है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है। 
  • आई.एस.एफ.आर. 2019 की तुलना में देश के मैंग्रोव आच्छादन में 16.68 वर्ग किमी. की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादन वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश 
    • पश्चिम बंगाल (2119.16 वर्ग किमी.)
    • गुजरात (1164.06 वर्ग किमी.)
    • अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह (608.29 वर्ग किमी.)
    • आंध्र प्रदेश (421.43 वर्ग किमी.)
    • महाराष्ट्र (315.09 वर्ग किमी.)

मैंग्रोव वन के लाभ 

आर्थिक मूल्य

  • प्राकृतिक अवसंरचना : तूफ़ानों, चक्रवातों और बढ़ते समुद्र स्तर के विरुद्ध जैव-ढाल के रूप में कार्य करते हुए आपदा-संबंधी क्षति को न्यूनतम करते हैं।
  • मत्स्य पालन और आजीविका : ये मछलियों, केकड़ों व झींगों के प्रजनन और नर्सरी के रूप में कार्य करते हैं जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।
  • पर्यटन एवं मनोरंजन : पारिस्थितिक पर्यटन को आकर्षित कर तटीय समुदायों में रोज़गार और आय को बढ़ावा देते हैं।
  • कार्बन पृथक्करण : मैंग्रोव अन्य उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में 4 गुना अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं। ऐसे में ये कार्बन बाज़ारों के माध्यम से अधिक राजस्व एकत्र करने में सक्षम हैं।

व्यवसाय-संबंधी लाभ

  • तटीय उद्योग के लिए जोखिम में कमी : तटीय खतरों से बीमा प्रीमियम और व्यावसायिक जोखिमों को कम करने में मदद करते हैं।
  • आपूर्ति श्रृंखला संरक्षण : तटरेखाओं को स्थिर करके वे बंदरगाहों, मत्स्य पालन और पर्यटन के लिए महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा करते हैं।

मैंग्रोव वनों के संरक्षण के प्रयास

  • मिष्टी योजना (2023) : तटीय राज्यों में कैम्पा और मनरेगा फंड का उपयोग कर मैंग्रोव वृक्षारोपण पर बल।
  • नीली अर्थव्यवस्था नीति : यह सतत आर्थिक विकास में मैंग्रोव की भूमिका को मान्यता देती है।
  • राज्य-स्तरीय पहल : महाराष्ट्र, गुजरात एवं ओडिशा ने मैंग्रोव संरक्षण के लिए समर्पित नीतियाँ बनाई हैं।

चुनौतियाँ

  • शहरीकरण, जलीय कृषि और औद्योगिक विस्तार के कारण मैंग्रोव आवरण का संकुचन
  • कई क्षेत्रों में सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता का अभाव

आगे की राह 

  • आर्थिक एवं जलवायु रणनीतियों के हिस्से के रूप में प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा देना
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण और कॉर्पोरेट पर्यावरण, सामाजिक व शासन ढाँचों में मैंग्रोव संरक्षण को एकीकृत करना
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण एवं विस्तार के लिए सार्वजनिक-निजी-सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना
  • उन्नत भू-स्थानिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम वाले उपग्रह और ड्रोन डाटा ने सटीक मैंग्रोव मानचित्रण और ब्लू कार्बन परिमाणीकरण में सुधार किया है। यह नीतियों और पुनर्स्थापन प्रयासों को सूचित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र पर आजीविका की निर्भरता तथा स्वदेशी ज्ञान रखने वाले  समुदायों को प्राथमिकता देने के साथ ही उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से समान रूप से लाभान्वित किया जाना चाहिए।
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