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भारत में इंटरनेट शटडाउन

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राजतंत्र और शासन एवं मौलिक अधिकार से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - कार्यपालिका और न्यायपालिका की शासन प्रणाली, भारतीय संविधान पर आधारित प्रश्न)

संदर्भ 

  • जम्मू-कश्मीर की सरकार ने कश्मीर घाटी में कट्टरपंथी अलगाववादी नेता की मृत्यु पर सभी इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • इसके अतिरिक्त, हरियाणा सरकार द्वारा भी किसानों के विरोध प्रदर्शन के चलते पाँच अलग-अलग ज़िलों में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध का आदेश दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • संदर्भित राज्यों में सरकारों ने इंटरनेट पहुँच को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया है। अनुराधा भसीन मामलेके निर्णय (हरियाणा के आदेश सोशल मीडिया पर हैं लेकिन सरकारी वेबसाइट पर नही डाले गए हैं) के बावजूद ऐसा प्रकाशन अपवाद बना हुआ है।
  • ॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर द्वारा बनाए गए इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर के अनुसार जुलाई और अगस्त माह में जम्मू-कश्मीर सरकार ने पाँच अलग-अलग विशेष उत्सवों पर इंटरनेट सेवाओं को निलंबित किया। परंतु इन मामलों के निलंबन आदेश अभी भी सरकार की वेबसाइटों पर अपलोड नहीं किये गए हैं।
  • विगत मई माह में भी ऐसा ही प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन इस मामले में आदेश, काफी समय पश्चात् जून माह में प्रकाशित किया गया था।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय 

  • 10 जनवरी, 2020 कोअनुराधा भसीन बनाम भारत संघमामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि इंटरनेट के माध्यम से सूचना तक पहुँच भारतीय संविधान के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है।
  • साथ ही, न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि सरकार द्वारा इंटरनेट के उपयोग पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध अस्थायी, सीमित दायरे में, वैध, आवश्यक और आनुपातिक होने चाहिये।
  • शीर्ष न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि इंटरनेट पहुँच को प्रतिबंधित करने वाले सरकारी आदेश, न्यायालय की समीक्षा के अधीन हैं।

विश्वास की कमी 

  • इंटरनेट निलंबन आदेशों के प्रकाशन के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता क्योंकि इसके अभाव में प्रतिबंध से पीड़ित व्यक्ति इसकी वैधता पर सवाल उठाने के लिये न्यायालय नहीं जा सकते हैं।
  • यदि लोग न्यायालय जाकर इस बात की शिकायत करते हैं तो न्यायालय सरकार को आदेश प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकती है, लेकिन यह निर्देश सरकार को प्रकाशन में देरी की अप्रत्यक्ष अनुमति प्रदान करता है। 
  • आदेशों का प्रकाशन नहीं किया जाना, जनता में सरकार के प्रति विश्वास में कमी लाता है। केंद्र सरकार ने भी अनुराधा भसीन के निर्देशों को वैधानिक मान्यता देने के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किये हैं।
  • र्ष 2020 में सरकार द्वारा इंटरनेट निलंबन आदेशों को अधिकतम 15 दिनों तक सीमित करने के लियेदूरसंचार निलंबन नियम 2017’ में संशोधन किया।
  • हालाँकि, संशोधन में निलंबन आदेश को प्रकाशित करने के लिये सरकार पर कोई दायित्व  नहीं था और ही इसमें इन आदेशों की आवधिक समीक्षा करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश शामिल थे।

जागरूकता की कमी 

  • कानून के साथ सरकारी गैर-अनुपालन को समझना मुश्किल है। सरकार के दायित्वों को समझने के लिये नियमों से इतर उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को समझने की आवश्यकता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियमकीधारा 66के अध्ययन से पता चलता है कि यदि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को वैधानिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती है तो अधिकारी जागरूकता के अभाव में कानून का दुरूपयोग करते रहेगें।
  • मेघालय राज्य द्वारा एक आर.टी.आई. आवेदन में दिये गए जवाब में जागरूकता का अभाव दिखाई देता है, जिसमें कहा गया कि उन्हें अनुराधा भसीन मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं है जबकि इसके फैसले को आठ माह बीत चुके हैं।

प्रतिबंध का व्यापक प्रभाव

  • उल्लेखनीय है कि इंटरनेट निलंबन, शीर्ष न्यायालय के निर्देशों के गैर-अनुपालन से इतर एक स्वतंत्र समस्या बनी हुई है।
  • वर्ष 2020 में, भारत में इंटरनेट निलंबन के 129 मामले सामने आये, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को 2.8 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और इससे 10.3 मिलियन लोग प्रभावित हुए। 
  • इंटरनेट सूचना, मनोरंजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा तथा आजीविका का एक स्रोत होने के साथ-साथ भारतीय समाज को एक-दूसरे से और शेष विश्व के साथ जुड़ने का भी मंच प्रदान करता है।
  • इस तरह के निलंबन के कारण आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, सामजिक और पत्रकारिता को होने वाला नुकसान किसी भी प्रकार के लाभ से अधिक है। 
  • इंटरनेट पर प्रतिबंध आपातकाल या किसी विशेष परिस्थिति में ही लगाया जाना चाहिये कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार को बाधित करने के लिये।
  • इसके अलावा, यह अफवाहों को सत्यापित करने के उपकरण के साथ-साथ व्यक्तियों और सरकार को सही सूचना के प्रसार के रूप में सक्षम बनाता है।

प्रतिबंधो को उचित ठहराया जाना

  • प्रशासन का मानना है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने से लोगों द्वारा फैलाई जाने वाली भड़काऊ सामग्री पर अंकुश लगाने के साथ कानून व्यवस्था को बिगड़ने से रोका जा सकता है।
  • इसके अतिरिक्त, इंटरनेट प्रतिबंधों को इस आधार पर उचित ठहराया जाता है कि यह मोबाइल डाटा सेवाओं तक ही सीमित है।
  • भारतीय दूरसंचार सेवा प्रदर्शन संकेतकों परभारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ (TRAI) की वर्ष 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ‘मोबाइल डिवाइस उपयोगकर्ता’ (डोंगल और फोन) कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का 97.02 प्रतिशत है। अर्थात ब्रॉडबैंड इंटरनेट तक पहुँच केवल 3 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के पास है, क्योंकि ब्रॉडबैंड इंटरनेट अभी भी महंगा है।
  • ससे यह निष्कर्ष निकलता है कि इंटरनेट प्रतिबंध भी निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोगों पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

निष्कर्ष 

  • जम्मू-कश्मीर सरकार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के मामले में सर्वाधिक असंवेदनशील है लेकिन ऐसा केवल जम्मू-कश्मीर के साथ ही नहीं बल्कि अन्य राज्य भी अनुराधा भसीन मामले के दिशा-निर्देशों का अनुपालन करने में नाकाम रहे हैं।
  • हालाँकि, सरकार को यह भी स्वीकार करना चाहिये कि मौखिक रूप से फैलाई जाने वाली अफवाहों की सत्यता को निर्धारित करने के लिये व्यक्तियों की इंटरनेट तक पहुँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
  • इन मुद्दों पर विचार करते हुए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि अनुराधा भसीन मामले में उच्चतम न्यायालय ने सरकार को केवल सीमित परिस्थिरियों में इंटरनेट का उपयोग प्रतिबंधित करने की अनुमति दी थी।
  • वहीं संसद ने भी इन प्रतिबंधों को केवलसार्वजनिक आपात स्थितिमें यासार्वजनिक सुरक्षाके लिये खतरा होने पर ही अनुमति प्रदान की है।
  • ारत को विश्व केइंटरनेट शटडाउन कैपिटलके टैग से मुक्त होने और डिजिटल इंडिया की क्षमता को पूरा करने के लिये सरकारों को, उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का सख्ती से पालन करने की आवश्यकता है।
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