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तालिबान को मान्यता देने से संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा :  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।)

संदर्भ

  • अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़ा किये जाने के उपरांत अफगान सरकार भंग हो गई है।
  • अफगानिस्तान के लगभग 40 मिलियन लोग दशकों की हिंसा और उथल-पुथल से तबाह हुए है। विश्व के सबसे गरीब देशों में शामिल अफगानिस्तान के इन लोगों का भविष्य तालिबान का हाथों में है।
  • विदेशी शक्तियों को अब यह तय करना होगा कि ‘आतंकवाद निगरानी सूची’ में रहने वाले इस संगठन से कैसे निपटा जाए। 

अफगानिस्तान के भविष्य में देशों की दिलचस्पी

  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विशेषज्ञों के अनुसार, विभिन्न देशों के अफगानिस्तान में दिलचस्पी के तीन मुख्य कारण हैं, ये हैं- आतंकवाद का मुकाबला, प्राकृतिक संसाधनों का भंडार और मानवीय सहायता।
  • वैश्विक जगत के हित में है कि वह एक अफगानिस्तान की स्थिरता सुनिश्चित करे, ताकि यह आतंकवादियों की शरणस्थली न बने, जैसा कि वर्ष 1996 से 2001 के मध्य तालिबान सत्ता के दौरान हुआ था।
  • 9/11 के हमलों से पहले और बाद में तालिबान ने आतंकवादी संगठन अल-कायदा और उसके प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पनाह दी थी। इसी कारण अमेरिका के नेतृत्व में ‘नाटो’ ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था।
  • इस बार तालिबान कथित तौर पर अधिक ‘उदारवादी’ चेहरा प्रस्तुत कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अल-कायदा से अभी भी उनके संबंध बरकरार है।
  • एक अन्य आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान (ISIS-K), इस्लामिक स्टेट समूह की एक अफगान शाखा, ने अमेरिकी कब्ज़े के दौरान खुद को स्थापित किया। यह संगठन तालिबान और अमेरिकी सेना पर हमले करता रहा है।
  • क्या तालिबान इस समूह को नियंत्रित कर सकता है, यह व्यापक चिंता का विषय है।
  • अफगानिस्तान इस समय मानवीय संकट से जूझ रहा है, जिससे एक नए शरणार्थी संकट की आशंका बढ़ रही है। काबुल पर तालिबान के कब्ज़े ने हज़ारों लोगों को पलायन के लिये मज़बूर किया है।
  • अफगानिस्तान में अनुमानित $3 ट्रिलियन के सोने, ताँबे, लिथियम सहित अन्य खनिज भंडार में कई देशों के व्यावसायिक हित शामिल हैं।

पड़ोसी देश

  • अफगानिस्तान के पड़ोसी देश करीब से देख रहे होंगे कि तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार कैसा प्रदर्शन करती है।
  • चीन, अफगानिस्तान का सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली पड़ोसी देश है, जो इसके साथ के साथ एक छोटी सीमा साझा करता है। अफगानिस्तान का यह सीमावर्ती क्षेत्र वर्ष 1990 के दशक में शिनजियांग के ‘उइगर विद्रोहियों’ के एक आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता था।
  • गौरतलब है कि रूस की तरह चीन ने भी काबुल में अपना दूतावास खुला रखा है।
  • पाकिस्तान के साथ तालिबान के घनिष्ठ संबंध है, और वह अफगानिस्तान को भारत के विरुद्ध एक ‘सामरिक हथियार’ के रूप में देखता है।
  • पाकिस्तान को इस बात की चिंता है कि तालिबान की पाकिस्तानी शाखा, तहरीक-ए-तालिबान (TTP), जो पाकिस्तान में आए दिन हमले करता है, से कैसे निपटा जाए।

तालिबान से वैश्विक अपेक्षाएँ

  • विश्व के ज़्यादातर देश यह देख रहे हैं कि तालिबान किस तरह की सरकार बनाता है और  कैसे व्यवहार करता है?
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने तालिबान से महिलाओं, नृजातीय समूहों तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व वाली एक ‘समावेशी’ सरकार बनाने के लिये कहा है।
  • तालिबान के पिछले शासन के दौरान केवल कुछ मुट्ठी भर देशों ने ही इसको मान्यता प्रदान की थी। हालाँकि, इस बार उनका नियंत्रण अधिक व्यापक है और वह विदेशी प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में भी संलग्न है।
  • यूरोपीय संघ का कहना है कि वह तालिबान का आकलन उसके कार्यों के आधार पर करेगा, अर्थात् वे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं, लोकतंत्र के बुनियादी नियमों तथा कानून के शासन का किस प्रकार सम्मान करते हैं?
  • अमेरिका का कहना है कि तालिबान का आकलन इस आधार पर करेगा कि क्या वह वैध दस्तावेज़ों के साथ अफगानियों व विदेशियों को यात्रा की स्वतंत्रता प्रदान करता है या नहीं? 
  • अमेरिका की मुख्य चिंता ये है कि तालिबान पहले की तरह आतंकवादियों को उसके विरुद्ध ‘लॉन्चिंग पैड’ प्रदान न करे।
  • इसके अतिरिक्त ‘राजनयिक मान्यता’ के द्वारा ही अफगानिस्तान की नई सरकार को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे अन्य संस्थानों से विकास सहायता व ऋण मिल सकेगा।

अमेरिका और उसके सहयोगियों का प्रभाव

  • अमेरिका और उसके सहयोगियों का मुख्य प्रभाव ‘डॉलर’ से संबंधित है। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः विदेशी सहायता और व्यय पर निर्भर है। वर्तमान में यह ठप्प पड़ रही है, नकदी समाप्त होने के कारण सरकारी वेतन बंद हो गया है और कीमतें तेज़ी से बढ़ रही हैं।
  • भूख की व्यापकता और बिमारियों की आशंकाओं के बीच खाद्य पदार्थ, दवा एवं ऊर्जा संबंधी आवश्यकता को देखते हुए पश्चिम को उम्मीद है कि तालिबान अपने रुख में परिवर्तन करेगा।
  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने अपने सहायता कार्यक्रमों को निलंबित कर दिया है। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक भंडार विदेशों में जमा हैं, जिस तक तालिबान की पहुँच नहीं है।
  • आई.एम.एफ. ने इस महीने पुरानी सरकार को दी जाने वाली $400 मिलियन सहायता पर रोक लगा दी है।
  • अमेरिका और उसके सहयोगियों का कहना है कि वे मानवीय सहायता कार्यक्रम जारी रखना चाहते हैं, चाहे अफगानिस्तान में कोई भी राजनीतिक व्यवस्था उभर कर आए।
  • इस प्रकार संभावना व्यक्त की जा रही है कि अफगानिस्तान को अधिकांश सहायता संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों या विश्व बैंक के नए ‘ट्रस्ट फंड’ के माध्यम से दी जा सकती है। कुल मिलाकर ये देश सीधे तालिबान को सहायता देने के पक्ष में नहीं है।
  • तालिबान के विरुद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका और शेष विश्व का सबसे शक्तिशाली हथियार  ‘आतंकवाद प्रतिबंध’ (Terrorism Sanctions) है, जो धन, वस्तुओं और सेवाओं को प्रतिबंधित करता है।
  • मानवाधिकारों के हनन और अवैध वित्त पर निर्भरता के इतिहास को देखते हुए तालिबान पर प्रतिबंध जारी रहने की संभावना है।

संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से संबंधित दावा

  • एक समय इस विचार को अकल्पनीय माना जाता था कि संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के प्रतिनिधि के रूप तालिबान का कोई सदस्य होगा, हालाँकि अब यह सच होता प्रतीत हो रहा है। हालाँकि इस राह में अनेक बाधाएँ भी मौजूद हैं।
  • तालिबान द्वारा आधिकारिक आवेदन अभी तक जमा नहीं किया गया है, जिसकी नौ सदस्यीय देशों के समूह द्वारा समीक्षा की जाती है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इस समूह में संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है।
  • संयुक्त राष्ट्र में अभी भी पिछली सरकार के राजनयिक द्वारा अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है।
  • राजनयिकों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र में सीट के लिये तालिबान का कोई भी अनुरोध ‘प्री-मेच्योर’ होगा। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत ने कहा है कि “वे अभी तक उस स्थान पर नहीं हैं, जहाँ से तालिबान को मान्यता दी जाए।”

शरणार्थियों से संबंधित मुद्दे

  • अफगानिस्तान से बाहर निकलने के इच्छुक लोगों की ज़िम्मेदारी कोई भी देश नहीं लेना चाह रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 97 अन्य देशों ने ‘आश्वासन’ दिया है कि वे अफगानिस्तान से भागने वाले लोगों को आश्रय देना जारी रखेंगे।
  • तालिबान के मुख्य वार्ताकार ने अगस्त के अंत में घोषणा की थी कि तालिबान विदेशी पासपोर्ट और वैध वीज़ा धारक अफगानों को जाने से नहीं रोकेगा। लेकिन इस दावे पर अमल किया जाना शेष है।
  • अफगानिस्तान के ज़्यादातर रास्ते बंद हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इस वर्ष के अंत तक 500,000 से अधिक अफगान देश छोड़कर जा सकते हैं, विशेषकर पाकिस्तान और ईरान में।
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