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संपत्ति के प्रकटीकरण पर कानून

संदर्भ

     सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव के दौरान उम्मीदवारों के संपत्ति के प्रकटीकरण के संबंध में टिपण्णी की है कि हर छोटी जानकारी का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उम्मीदवारों को भी निजता का अधिकार है। 

प्रकटीकरण से संबंधित विधिक प्रावधान 

  • 2 मई, 2002 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय में उल्लेख किया कि संभावित उम्मीदवारों को अपने आपराधिक इतिहास, शैक्षिक योग्यता और अपनी संपत्ति एवं देनदारियों का खुलासा करना होगा।
    • संपत्ति एवं देनदारियों में उनके पति या पत्नी और आश्रितों की संपत्ति और देनदारियां भी शामिल हैं। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार लोकतंत्र में मतदाताओं का सूचना का अधिकार नागरिकों के वोट के माध्यम से अपनी राय व्यक्त करने के अधिकार का हिस्सा है।
  • जून 2002 में भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India : ECI) ने फैसले को प्रभावी बनाने के लिए नियम जारी किए। 
    • हालाँकि, तत्कालीन केंद्र सरकार ने अगस्त 2002 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act : RPA), 1951 में संशोधन करने वाले एक अध्यादेश द्वारा इन खुलासों के दायरे को कम करने की मांग की। बाद में इसे एक अधिनियम द्वारा बदल दिया गया। 
  • तत्कालीन संशोधनों के माध्यम से निम्न प्रावधान किए गए :
    • धारा 33-ए : लंबित आपराधिक मामलों के खुलासे के संबंध में
    • धारा 33-बी : इसके माध्यम से ई.सी.आई. की अधिसूचना को प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया कि अधिनियम में निर्धारित शर्तों के अलावा कोई खुलासा आवश्यक नहीं है। 
    • धारा 125-ए :खुलासा करने में विफलता या गलत खुलासे के लिए जुर्माना पेश किया गया। 
  • अध्यादेश और उसके बाद संशोधित अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। 13 मार्च 2003 को न्यायालय ने धारा 33-बी को रद्द करते हुए संपत्ति एवं देनदारियों और शैक्षिक योग्यता के संबंध में प्रकटीकरण आवश्यकताओं को बहाल कर दिया। 
  • इसी के अनुरूप ई.सी.आई. ने संशोधित निर्देश और प्रकटीकरण का प्रारूप जारी किया।

किसी भी चूक के परिणाम

  • आर.पी.ए., 1951 की धारा 125-ए किसी भी उम्मीदवार द्वारा आवश्यक जानकारी का खुलासा करने में विफलता, गलत जानकारी देने या ऐसी जानकारी छिपाने के लिए छह महीने की जेल की सजा एवं जुर्माना या दोनों का प्रावधान करती है।
  • अभियोजन के इस प्रावधान के अलावा कोई भी चूक या गलत जानकारी किसी उम्मीदवार के चुनाव को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का आधार हो सकती है। 
  • किसी चुनाव को अमान्य करने के लिए न्यायालय के पास उपलब्ध आधारों में से दो यहां प्रासंगिक हैं। 
    • धारा 100 के तहत यदि किसी नामांकन की अनुचित स्वीकृति और संविधान अथवा इस अधिनियम के प्रावधानों या इस अधिनियम के तहत बनाए गए किसी भी नियम व  आदेश का कोई अनुपालन नहीं होता है तो चुनाव को शून्य घोषित किया जा सकता है।
    • एक असफल उम्मीदवार के लिए यह संभव है कि वह गलत जानकारी छिपाने या प्रस्तुत करने के आधार पर अंतिम विजेता के नामांकन की स्वीकृति के साथ ही वैधानिक प्रकटीकरण आवश्यकताओं में से किसी के संभावित उल्लंघन को भी उठाए।

संबंधित वाद 

  • वर्ष 2019 में अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवार कारिखो क्रि ने जीत हासिल की थी। 
    • उनके चुनाव को कांग्रेस उम्मीदवार नुने तायांग ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि क्रि ने अपनी पत्नी और बच्चों की कुछ चल संपत्तियों का खुलासा नहीं किया था। 
  • असम, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ईटानगर खंडपीठ ने आरोपों को स्वीकार कर क्रि के चुनाव को शून्य घोषित कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस आधार पर उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया कि गैर-प्रकटीकरण इतनी गंभीर प्रकृति का नहीं था कि उसके नामांकन को अस्वीकार किया जा सके। 
    • न ही यह कानून का गैर-अनुपालन माना जाता है क्योंकि इसका चुनाव के नतीजे पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता है। 

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय 

  • इस तर्क को खारिज करते हुए कि मतदाता का सभी विवरण जानने का अधिकार पूर्ण है, सर्वोच्च न्यायालय ने टिपण्णी की कि किसी उम्मीदवार को अपना पूरा जीवन मतदाताओं के सामने उजागर करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
  • चल संपत्ति की प्रत्येक वस्तु की घोषणा करना आवश्यक नहीं है, जब तक कि वह अत्यधिक मूल्यवान न हो और केवल उसकी जीवनशैली को प्रतिबिंबित करने के कारण  मतदाता के लिए रुचिकर हो। 
  • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया किसी भी चूक के महत्त्वपूर्ण होने या होने के संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता है बल्कि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगा।
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