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लॉकडाउन और भारतीय अर्थव्यवस्था: आकलन, प्रभाव व उपाय

(मुख्य परीक्षा प्रश्न पत्र-3)

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 के प्रकोप, उसको रोकने हेतु किये जा रहे हो उपायों तथा लॉकडाउन के कारण वैश्विक व भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। आगे की तैयारी के लिये इस प्रभाव का आकलन आवश्यक है।

पृष्ठभूमि-

अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने हेतु विभिन्न तरीके अपनाएँ जा रहे हैं। आई.एम.एफ. के अनुसार, यदि वर्तमान दौर जारी रहा तो विश्व नौ दशकों के सबसे बुरे दौर की ओर चला जाएगा। अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिये आगत-निर्गत (Input-Output: IO) मॉडल पर आधारित तकनीक का प्रयोग किया गया है।

आर्थिक प्रभाव के आकलन की कार्य विधि-

  • आई. ओ. मॉडल की कार्यप्रणाली को सर्वप्रथम वेस्ली लेओंतिफ (Wassily Leontif) द्वारा वास्तविक स्वरूप प्रदान किया गया था। जिसके द्वारा आकलन प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है।
  • इस मॉडल में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों व उससे अंतर्सम्बंधित क्षेत्रों के उत्पादन व उपभोग सम्बंधी विस्तृत विवरण व जानकारी प्रस्तुत की जाती है। इसमें प्रत्येक क्षेत्र की कुल मजदूरी, लाभ, बचत व खर्च को तथा प्रत्येक वर्ग के अंतिम उपभोग को भी शामिल किया जाता है। इसके अलावा मध्यवर्ती उपभोग को शामिल किये जाने के कारण यह विश्लेषण विशेष रुप से महत्वपूर्ण है।
  • विभिन्न आर्थिक क्षेत्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी बदलाव के प्रभाव का आकलन करने में सक्षम होना इस मॉडल की विशेषता है। इसी कारण आपदाओं, युद्ध-काल व महामारियों आदि के दौरान आर्थिक गणना करने व आर्थिक प्रभाव का अनुमान लगाने हेतु व्यापक तौर पर इस मॉडल का प्रयोग किया जाता है। अतः कोविड-19 के दौरान आर्थिक परिणाम और प्रभाव का आकलन करने में यह मॉडल उपयोगी है।
  • विशेष रूप से भारत के संदर्भ में अंतिम बार वर्ष 2007-2008 में आई. ओ. आंकड़े प्रस्तुत किये गए थे। वर्तमान अनुमानों का आकलन करने हेतु विश्व आई.ओ. डाटाबेस,2014 द्वारा प्रकाशित आंकड़ों का उपयोग किया गया है। विश्व आई.ओ. डटाबेस,2014 को राष्ट्रीय आय के आंकड़ों का प्रयोग करते हुए प्रत्येक देश के लिये अपडेट किया जाता है।
  • लॉकडाउन के प्रभाव के आकलन हेतु विभिन्न क्षेत्रों में कार्य दिवसों की संख्या में कमी या नुकसान के चार अलग-अलग परिदृश्य हैं। दैनिक रूप से उत्पादन में हानि का आकलन करने हेतु यह मान लिया जाता है की अनुमानित वार्षिक उत्पादन को पूरे वर्ष में समान रूप से वितरित किया गया है। इससे दैनिक उत्पादन की गणना और फिर दैनिक उत्पादन में हानि की गणना करना सम्भव हो जाता है।
  • तत्पश्चात लॉकडाउन के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव का आकलन करने के लिये आई.ओ. गुणकों का प्रयोग किया जाता है। यह माना जाता है की आई.ओ. गुणक नियतांक या स्थिर है। इसी आधार पर वित्तीय वर्ष 2019-20 की जी.डी.पी. में गिरावट की गणना की गई है।

आकलन में विभिन्न क्षेत्रकों पर प्रभाव-

  • इस मॉडल के आकलन के अनुसार, लॉकडाउन के कारण जी.डी.पी. में 7 % से लेकर 33 % तक गिरावट की सम्भावना है। सबसे कम नुकसान की स्थिति में भी जी.डी.पी. में 7% के गिरावट (17 लाख करोड़ रुपए के नुकसान) का अनुमान है। ऐसी स्थिति में उत्पादक दिनों में हानि की औसत संख्या 13 है।
  • सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव की स्थिति में जी.डी.पी. में 33% गिरावट (73 लाख करोड़ रुपए के नुकसान) का अनुमान है और ऐसी स्थिति में औसत उत्पादक दिनों की संख्या में नुकसान 67 है।
  • मध्यम स्थिति में, जब उत्पादक दिनों की संख्या में नुकसान क्रमशः 27 और 47 दिनों का है, तब जी.डी.पी. में क्रमशः 13 % और 23 % के नुकसान का अनुमान व्यक्त किया गया है। यह अनुमान ओ.ई.सी.डी. के अनुमानों से काफी साम्यता रखते हैं, जहां भारत के लिये जीडीपी में 20% के नुकसान की बात कही गई है।
  • यदि लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाती है या विभिन्न क्षेत्रों के लिये लॉकडाउन की अवधि अलग-अलग होती है तो क्षेत्रकों के अंतर-संबद्धता के कारण भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • सभी क्षेत्रों के लिये यदि लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाकर 47 दिन कर दिया जाता है, तो खनन क्षेत्र के मूल्यवर्धन में सर्वाधिक 42 % की गिरावट दर्ज की जा सकती है। इस कारण किसी भी प्रकार के शटडाउन न होने की स्थिति में भी विद्युत क्षेत्र के मूल्यवर्धन में 29 % की गिरावट दर्ज की जा सकती है। सभी क्षेत्रों में कार्यशील पूंजी की उपलब्धता व मजदूरी तथा वेतन क्षतिपूर्ति के संदर्भ में भी नुकसान की संभावना है।

अनुमानों में फीडबैक प्रभाव का समावेशन-

  • इस अनुमान में, जो मूल रूप से आई.ओ. विश्लेषण को शामिल करता है, में फीडबैक प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है।
  • हालांकि इस विश्लेषण में सभी क्षेत्रों में अलग-अलग उत्पादक दिनों की संख्या में नुकसान का प्रयोग करने की कोशिश की गई है जिससे की अनुमान लगभग सही हो। इस लॉकडाउन जैसे समय में कई क्षेत्रों में आपूर्ति व मांग में गिरावट व बाधा के कारण एक अनोखी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसका प्रभाव लॉकडाउन खत्म होने के उपरांत भी जारी रहने की उम्मीद है। अतः बाद में पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव की गणना करने के लिये यह अपर्याप्त हो सकता है।
  • कृषि जैसे क्षेत्रों में इसका दूरगामी प्रभाव देखा जा सकता है। आँकड़ो के अनुसार, इस रबी मौसम की मड़ाई का अधिकांश कार्य सम्पन्न हो चुका है, परंतु महामारी के बढ़ने या कोविड-19 के कारण प्रतिबंधात्मक उपायों की स्थिति में आगामी खरीफ मौसम पर व्यापक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।
  • इसके अलावा निर्यात में कमी से पड़ने वाले प्रभाव का आकलन भी नहीं किया गया है। उपलब्ध डाटाबेस के प्रयोग और वैश्विक स्तर पर मांग में कमी से निर्यात पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को स्पष्ट रूप से शामिल नहीं किया गया है।
  • आयात आधारित मध्यवर्ती कच्चे माल की अनुपलब्धता भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डालेगी, क्योंकि मध्यवर्ती कच्चे माल का काफी हिस्सा आयात पर आधारित है।
  • इसके अतिरिक्त यह विश्लेषण अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को पर्याप्त रूप से अलग आकलन करने में भी सक्षम नहीं है। जिस डाटाबेस का उपयोग किया जा रहा है, उसमें इस क्षेत्र को औपचारिक क्षेत्र के साथ आंशिक रूप से एकत्रित किया गया जाता है।

उपाय-

  • इस सरल आकलन की विशेषता यह है कि इसमें कोविड-19 के कारण सभी क्षेत्रों पर वर्तमान व्यापक प्रभाव और तत्पश्चात आगामी कुछ दिनों में पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया गया है।
  • ऋण राहत, राजस्व व कर संग्रहण का स्थगन, त्वरित नकदी सहायता तथा मजदूरों व गरीबों को भिन्न-भिन्न स्तर पर सहायता प्रदान किया गया है। कई क्षेत्रो में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पुनः शुरू करना और उसको बढ़ाना नि:संदेह आवश्यक है फिर भी यह अपर्याप्त उपाय है।
  • आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि विकसित देशों में विशाल प्रोत्साहन पैकेज की शुरुआत की जा चुकी है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों हेतु क्षतिपूर्ति, राहत व नकदी पैकेज की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्रों के वेतन भोगियों व दिहाड़ी मजदूरों तक नकदी सहायता के साथ अनौपचारिक क्षेत्र की आजीविका गतिविधियों हेतु भी सहायता आवश्यक है।
  • छोटे व मझोले उद्योगों के व्यवसायों को नकदी सहायता के साथ-साथ बड़े स्तर के उद्योगों को भी विभिन्न प्रकार की छूट आवश्यक है। राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने तथा सरकारी वेतन में कटौती जैसे विचार अर्थव्यवस्था के लिये बहुत ज्यादा सहायक सिद्ध होने की उम्मीद नहीं है।

आगे की राह-

वर्तमान समस्या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये भले ही परिवर्तनकारी क्षण न हो, परंतु इसका प्रभाव और अर्थव्यवस्था की रिकवरी के तरीके भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा प्रदान करेंगी। अतः नीति-निर्माताओं व सरकार की भूमिका इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण तथा उपयोगी होगी। इससे देश की अर्थव्यवस्था का भविष्य तय होगा।

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