New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

भारत में कुपोषण संकट

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय)

संदर्भ

सुपोषण में वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को सशक्त बनाने की क्षमता होती है। वर्तमान में भारत जनसंख्या लाभांश की स्थिति में में है किंतु इसकी अधिकांश आबादी (विशेषकर महिलाओं तथा बच्चों) को कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है। कुपोषण के व्यापकता की समस्या जनसंख्या लाभांश को सीमित करती है।

सुधार की स्थिति 

  • निर्धनता में कमी, खाद्य उत्पादन आत्मनिर्भरता में वृद्धि और कई सरकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के परिणामस्वरुप विगत एक दशक में बच्चों तथा महिलाओं में कुपोषण से निपटने में कुछ प्रगति हुई है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) में विभिन्न पोषण संकेतकों में मामूली सुधार देखा गया है, जो प्रगति की धीमी गति को दर्शाता है। साथ ही, कई राज्यों में बच्चे पांच वर्ष पूर्व की तुलना में अब अधिक कुपोषित हैं।

कुपोषण के विभिन्न मापदंडों की स्थिति

स्टंटिंग (Stunting)

  • स्टंटिंग दर में एन.एफ.एच.एस.-4 (38.4%) की तुलना में एन.एफ.एच.एस.-5 में कुछ कमी (35.5%) आई है। 
  • हालाँकि, 13 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में एन.एफ.एच.एस.-4 के बाद से स्टंट बच्चों में वृद्धि देखी गई है।  इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे बड़े राज्य शामिल हैं।
  • आयु के अनुसार लंबाई में कमी को ‘स्टंटिंग’ कहते हैं। यह दीर्घकालिक अल्पपोषण (Chronic Under Nutrition) की स्थिति को दर्शाता है।

वेस्टिंग (Wasting)

  • एन.एफ.एच.एस. सर्वेक्षणों के रुझान से स्पष्ट होता है कि कुपोषण के सर्वाधिक दृश्यमान और जानलेवा स्वरूप, अर्थात ‘वेस्टिंग’ दर में या तो वृद्धि हुई है या वह वर्षों से स्थिर रही है।
  • लम्बाई (Height) के अनुपात में कम वजन (Low Weight) को वेस्टिंग कहते हैं। यह तीव्र अल्पपोषण (Acute Under Nutrition) की स्थिति को दर्शाता है। अल्प पोषण (Undernourishment) जनसंख्या के अनुपात में भोजन की अपर्याप्त उपलब्धता को प्रदर्शित करता है।

रक्ताल्पता (Anaemia)

  • लाल रक्त कोशिकाओं (RBCs) की संख्या सामान्य स्तर से कम होने या हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने की स्थिति को ‘रक्ताल्पता’ कहते हैं। इससे रक्त की ऑक्सीजन परिवहन की क्षमता कम हो जाती है और शारीरिक व मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • वैश्विक रूप से भारत में रक्ताल्पता का प्रसार सर्वाधिक है। एन.एफ.एच.एस.-5 सर्वेक्षण के अनुसार 57% से अधिक महिलाएँ (15-49 वर्ष) और 67% से अधिक बच्चे (6-59 माह) रक्ताल्पता से पीड़ित हैं। 

कुपोषण का प्रभाव

  • बच्चों की पोषण स्थिति का प्रत्यक्ष संबंध उनकी माता से होता है। गर्भवती महिलाओं में खराब पोषण बच्चे की पोषण स्थिति को प्रभावित करता है। इससे भविष्य की पीढ़ियों के प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है। 
  • कुपोषित बच्चों का शैक्षिक प्रदर्शन कमजोर होने का जोखिम होता है, परिणामस्वरूप उनके पास रोजगार की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं। 
  • कुपोषण से किसी देश का कार्यबल मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित होता है और उनकी कार्यक्षमता में कमी आती है। यह दुष्चक्र देश के विकास में बाधक है। 
  • यह समस्या मानव स्वास्थ्य और विकास के संदर्भ में व्यक्तियों की कार्य क्षमता को कम करके अर्थव्यवस्था एवं समग्र राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करता है।
  • रक्ताल्पता के कारण विकासशील देशों के सकल घरेलू उत्पाद में 4.05% तक की कमी आ सकती है और भारत को प्रतिवर्ष सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 1.18% की क्षति होती है।

कुपोषण को दूर करने के उपाय

  • महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण में निवेश बढ़ाने की अधिक आवश्यकता।
  • सरकार द्वारा परिणामों में सुधार के लिये कई कार्यक्रमों के समेकन के साथ-साथ वित्तीय प्रतिबद्धता में वृद्धि की जरुरत। 
  • इस वर्ष के बजटीय आवंटन में सक्षम आंगनबाड़ी और ‘प्रधानमंत्री समग्र पोषण व्यापक योजना (पोषण)- 2.0’ कार्यक्रम में मामूली वृद्धि देखी गई है। 
  • धनराशि के समुचित प्रयोग में कमी। 
  • पोषण अभियान के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी की गई धनराशि का 32% उपयोग नहीं किया गया है।
  • पोषण कार्यक्रमों पर परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता। 
  • लोकप्रतिनिधियों को क्षेत्रों में जरूरतों और हस्तक्षेपों की निगरानी शुरू करने एवं स्थानीय स्तर पर चुनौतियों का समाधान करने के लिये जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • पोषण की दृष्टि से कमजोर समूहों (इसमें बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएँ, विशेष आवश्यकता वाले एवं छोटे बच्चे) के साथ सीधे जुड़ाव और प्रमुख पोषण सेवाओं, हस्तक्षेपों एवं लाभों को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता। 
  • यह अधिक जागरूकता सुनिश्चित करने के साथ-साथ जमीनी स्तर पर कार्यक्रमों के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगा।
  • बुनियादी शिक्षा और व्यक्तिगत स्तर पर सामान्य जानकारी परिवर्तनकारी सिद्ध हो सकती है।
  • विभिन्न अध्ययन माताओं की शिक्षा और बच्चों के लिये पोषण संबंधी हस्तक्षेपों के अनुपालन के बीच एक मजबूत संबंध को दर्शाते हैं। 

आगे की राह

कार्यक्रमों की निगरानी एवं मूल्यांकन और प्रणालीगत एवं जमीनी चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक प्रक्रिया होनी चाहिये। नई या मौजूदा समितियों द्वारा योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी और राज्यों में पोषण की स्थिति की समीक्षा की जानी चाहिये। कुपोषण और बढ़ती रक्ताल्पता के बोझ के प्रति भारत की प्रतिक्रिया व्यावहारिक एवं अभिनव होनी चाहिये।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR