(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण) |
संदर्भ
वाहनों की ईंधन दक्षता एवं उत्सर्जन में कमी जलवायु परिवर्तन से निपटने और टिकाऊ परिवहन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत में कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता (CAFE) मानक इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं जो वाहन निर्माताओं को ईंधन-कुशल और कम उत्सर्जन वाले वाहनों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
CAFE के बारे में
- क्या है : कॉरपोरेट औसत ईंधन दक्षता (CAFE) मानक एक नियामक ढांचा है जो किसी वाहन निर्माता के पूरे वाहन बेड़े (पैसेंजर कार, लाइट ट्रक आदि) की औसत ईंधन खपत को नियंत्रित करता है।
- यह व्यक्तिगत मॉडल के बजाय निर्माता के सभी वाहनों की औसत ईंधन दक्षता पर ध्यान देता है।
- लागू : भारत में यह मानक ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) और भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है।
- उद्देश्य : CO2 उत्सर्जन को कम करना और ईंधन दक्षता को बढ़ाना है जिससे पर्यावरण संरक्षण एवं ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा मिले।
भारत में CAFE मानकों का अनुपालन
- भारत में CAFE मानक वर्ष 2017 में शुरू किए गए थे।
- चरण 1 (2017) : इसमें औसत ईंधन खपत 5.49 लीटर प्रति 100 किमी. (लगभग 43 किमी. प्रति लीटर) और CO2 उत्सर्जन 130 ग्राम/किमी. तक सीमित था।
- चरण 2 (2022) : इसमें औसत ईंधन खपत 4.77 लीटर प्रति 100 किमी. (लगभग 49 किमी. प्रति लीटर) और CO2 उत्सर्जन 113 ग्राम/किमी. तक कम किया गया।
- चरण 3 (2027) : यह अप्रैल 2027 से भारत में लागू होगा जिसका लक्ष्य औसत CO2 उत्सर्जन को 91.7 ग्राम प्रति किलोमीटर तक सीमित करना है।
- चरण 4 (2032-2037) : इसका लक्ष्य 70 ग्राम CO2 प्रति किलोमीटर है। यह भारत के महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- ये मानक विश्व स्तर पर अन्य प्रमुख ऑटोमोटिव बाजारों (जैसे- अमेरिका, यूरोप एवं चीन) के साथ तालमेल रखते हैं।
- हालाँकि, ऑटोमोबाइल उद्योग ने चरण-3 के कठोर CO2 लक्ष्यों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कार्यान्वयन अवधि को तीन से पांच वर्ष तक बढ़ाने की मांग की थी, जिसे BEE ने स्वीकार कर लिया है।
CAFE चरण 3 की विशेषताएँ
- कठोर उत्सर्जन लक्ष्य : CAFE चरण 3 मानक औसत CO2 उत्सर्जन को 91.7 ग्राम प्रति किलोमीटर तक सीमित करने का लक्ष्य रखते हैं।
- वाहन प्रकार : ये मानक पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सीएनजी, हाइब्रिड, और इलेक्ट्रिक पैसेंजर वाहनों (3,500 किलोग्राम से कम सकल वाहन वजन) पर लागू होते हैं।
- जुर्माना प्रणाली : यदि कोई निर्माता औसत ईंधन दक्षता सीमा से 0.2 लीटर प्रति 100 किमी तक अधिक खपत करता है, तो प्रति वाहन 25,000 रूपए का जुर्माना लगेगा। यदि यह सीमा 0.2 लीटर से अधिक हो, तो जुर्माना 50,000 रूपए प्रति वाहन होगा।
- सुपर क्रेडिट्स : इलेक्ट्रिक व हाइब्रिड वाहनों को सुपर क्रेडिट्स के माध्यम से प्रोत्साहन दिया जाता है, जो निर्माताओं को CAFE लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करते हैं।
- WLTP टेस्टिंग : चरण 3 में वर्ल्ड हार्मोनाइज्ड लाइट व्हीकल टेस्टिंग प्रोसीजर (WLTP) को अपनाया जाएगा, जो अधिक सटीक एवं वास्तविक ड्राइविंग परिस्थितियों को दर्शाता है।
CAFE चरण 3 का महत्त्व
- ईंधन आयात पर निर्भरता में कमी : भारत की बढ़ती ईंधन मांग (2023-24 में 200 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक) को देखते हुए, CAFE मानक ईंधन आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद करेंगे।
- इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा : सख्त मानकों के कारण निर्माता इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों के उत्पादन को प्राथमिकता देंगे, जिससे वर्ष 2030 तक EV बिक्री को 30% तक बढ़ाने का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है।
- आर्थिक लाभ : उपभोक्ताओं के लिए ईंधन लागत में कमी और निर्माताओं के लिए नवाचार के अवसर।
- स्वास्थ्य सुधार : कम उत्सर्जन से वायु प्रदूषण में कमी आएगी, जिससे शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य समस्याएं कम होंगी।
- जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति : CAFE चरण 3 भारत की पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा : सख्त मानक भारतीय निर्माताओं को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाते हैं, विशेष रूप से हल्के वाहनों और नई तकनीकों के विकास में।
चुनौतियाँ
- तकनीकी और वित्तीय बाधाएँ : सख्त मानकों को पूरा करने के लिए उन्नत तकनीकों (जैसे EV और हाइब्रिड) में भारी निवेश की आवश्यकता है, जो छोटे एवं मध्यम निर्माताओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- चार्जिंग बुनियादी ढांचा : भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशनों की कमी एक बड़ी बाधा है।
- उपभोक्ता स्वीकार्यता : ईंधन-कुशल एवं इलेक्ट्रिक वाहनों की उच्च प्रारंभिक लागत व जागरूकता की कमी उपभोक्ता स्वीकार्यता को प्रभावित करती है।
- उद्योग का विरोध : ऑटोमोबाइल उद्योग ने सख्त CO2 लक्ष्यों को लागू करने के लिए अधिक समय की मांग की है, क्योंकि वे इसे अत्यधिक महत्वाकांक्षी मानते हैं।
- वास्तविक उत्सर्जन का अंतर : वास्तविकता में CO2 उत्सर्जन प्रयोगशाला परीक्षणों की तुलना में अधिक हो सकता है, विशेष रूप से सुपर क्रेडिट्स के उपयोग के कारण।
आगे की राह
- नीतिगत मजबूती : CAFE चरण 3 एवं 4 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए कठोर निगरानी और अनुपालन तंत्र विकसित किए जाएं।
- EV बुनियादी ढांचा विस्तार : FAME योजना के तहत चार्जिंग स्टेशनों एवं बैटरी रीसाइक्लिंग सुविधाओं का विकास तेज किया जाए।
- तकनीकी नवाचार : कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डायनामिक्स (CFD) और हल्के वजन वाली सामग्री (लाइट-वेटिंग) जैसी तकनीकों में निवेश को प्रोत्साहित किया जाए।
- जागरूकता अभियान : उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक और ईंधन-कुशल वाहनों के लाभों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाएं।
- सुपर क्रेडिट्स में सुधार : सुपर क्रेडिट्स को 2030 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना बनाई जाए, ताकि वास्तविक CO2 उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित हो।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग : वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिए यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाया जाए।