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वैवाहिक विशेषाधिकार : सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)

संदर्भ

वैवाहिक विशेषाधिकार (Spousal Privilege) एक कानूनी सिद्धांत है, जो पति-पत्नी के बीच निजी संवाद को संरक्षित करता है। 14 जुलाई, 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि वैवाहिक विवादों, विशेष रूप से तलाक के मामलों में, पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। 

वैवाहिक विशेषाधिकार के बारे में

  • क्या है : यह एक कानूनी प्रावधान है जो पति-पत्नी के बीच निजी बातचीत को गोपनीय रखने और इसे अदालत में साक्ष्य के रूप में उपयोग करने से रोकने का अधिकार देता है। 
  • उद्देश्य : यह सिद्धांत वैवाहिक संबंधों की गोपनीयता एवं विश्वास को बनाए रखने के लिए बनाया गया है। 
  • कानूनी पक्ष : भारत में यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 122 के तहत परिभाषित है।

प्रमुख पहलू

  • गोपनीयता का संरक्षण : धारा 122 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, जो विवाहित है या रहा है, उसे अपने जीवनसाथी द्वारा विवाह के दौरान की गई बातचीत को प्रकट करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
  • सहमति की आवश्यकता : ऐसी बातचीत को साक्ष्य के रूप में तभी प्रस्तुत किया जा सकता है जब दूसरा जीवनसाथी या उसका प्रतिनिधि इसकी सहमति दे
  • अपवाद : यह विशेषाधिकार वैवाहिक विवादों (जैसे- तलाक) या उन मामलों में लागू नहीं होता है, जहाँ एक जीवनसाथी दूसरे के खिलाफ अपराध (जैसे- घरेलू हिंसा) के लिए मुकदमा चलाता है।
  • तृतीय पक्ष की गवाही : यदि कोई जीवनसाथी अपनी बातचीत को तीसरे पक्ष के सामने प्रकट करता है तो वह तीसरा पक्ष उस बातचीत की गवाही दे सकता है और यह साक्ष्य स्वीकार्य होता है।

तलाक के मामलों में कानून का अनुप्रयोग

वैवाहिक विशेषाधिकार तलाक के मामलों में सीधे तौर पर लागू नहीं होता है क्योंकि ये मामले जीवनसाथियों के बीच के विवादों से संबंधित होते हैं। तलाक के मुकदमों में एक जीवनसाथी द्वारा दूसरे के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सिद्ध करने के लिए विभिन्न प्रकार के साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं।

मुख्य बिंदु

  • साक्ष्य के प्रकार : तलाक के मामलों में पत्र, फोटोग्राफ, टेक्स्ट मैसेज, वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिंग या तीसरे पक्ष की गवाही जैसे साक्ष्य प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
  • उच्च न्यायालयों की स्थिति : कई उच्च न्यायालयों ने गुप्त रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने से इनकार किया है क्योंकि:
    • जबरन प्राप्ति का जोखिम : गुप्त रिकॉर्डिंग संदिग्ध या जबरन तरीकों से प्राप्त की जा सकती है जिसे अदालत को साक्ष्य की प्रासंगिकता एवं वैधता के आधार पर जांचना पड़ता है।
    • निजता का उल्लंघन : वैवाहिक संबंधों में गोपनीयता की उचित अपेक्षा होती है और गुप्त रिकॉर्डिंग इस गोपनीयता का उल्लंघन करती है।
  • तकनीकी प्रगति : आधुनिक तकनीक (जैसे- स्मार्टफोन, ईमेल और वॉयस रिकॉर्डिंग) ने साक्ष्य संग्रह को आसान बना दिया है जिसके कारण गुप्त रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
  • नैतिक चिंताएँ : गुप्त रिकॉर्डिंग से वैवाहिक संबंधों में निगरानी एवं अविश्वास की भावना पैदा हो सकती है जो संबंधों को अधिक कमजोर करती है।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय ने 14 जुलाई, 2025 के निर्णय में पति-पत्नी की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को वैवाहिक विवादों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने की अनुमति दी। यह निर्णय वर्ष 1973 के एक मामले पर आधारित था, जिसमें पुलिस द्वारा रिकॉर्ड की गई टेलीफोन बातचीत को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया था।

निर्णय के प्रमुख पहलू

  • साक्ष्य की प्रासंगिकता : यदि गुप्त रिकॉर्डिंग प्रासंगिक है व स्वतंत्र रूप से सत्यापित की जा सकती है तथा धारा 122 के अपवादों के अंतर्गत आती है तो इसे स्वीकार किया जा सकता है।
  • निजता बनाम निष्पक्ष सुनवाई : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार (अनुच्छेद 21) महत्वपूर्ण है किंतु इसे निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार (Fair Trial) के साथ संतुलित करना होगा। गुप्त रिकॉर्डिंग निजता का उल्लंघन हो सकती है किंतु यह निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  • धारा 122 की व्याख्या : न्यायालय के अनुसार, धारा 122 किसी व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य करने से रोकती है किंतु यह गुप्त रिकॉर्डिंग जैसे साक्ष्य को स्वीकार करने से नहीं रोकती है, विशेषकर वैवाहिक विवादों में।
  • तृतीय पक्ष से तुलना : कोर्ट ने गुप्त रिकॉर्डिंग को एक ‘Eavesdropper’ (गुप्त रूप से सुनने वाले) के समान माना, जो तीसरे पक्ष की तरह कार्य करता है और वैवाहिक बातचीत की गवाही दे सकता है।
  • 1973 का निर्णय : वर्ष 1973 के मामले में पुलिस द्वारा रिकॉर्ड की गई बातचीत को भ्रष्टाचार के मामले में स्वीकार किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को वैवाहिक मामलों तक विस्तारित किया है।

निर्णय का प्रभाव

सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय वैवाहिक विशेषाधिकार एवं निजता के अधिकार के बीच संतुलन को फिर से परिभाषित करता है। इसके कई संभावित प्रभाव हो सकते हैं:

सकारात्मक प्रभाव

  • निष्पक्ष सुनवाई में सुधार : गुप्त रिकॉर्डिंग से तलाक एवं अन्य वैवाहिक विवादों में विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध होंगे, जिससे निष्पक्ष निर्णय लेना आसान होगा।
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग : यह निर्णय डिजिटल युग में साक्ष्य संग्रह को स्वीकार करता है जो तकनीकी प्रगति के अनुरूप है।
  • वैवाहिक विवादों में पारदर्शिता : गुप्त रिकॉर्डिंग से आरोपों को सिद्ध करने में मदद मिलेगी, खासकर उन मामलों में जहाँ अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।

नकारात्मक प्रभाव

  • निजता का उल्लंघन : यह निर्णय वैवाहिक संबंधों में गोपनीयता की अपेक्षा को कमजोर कर सकता है जिससे पति-पत्नी के बीच अविश्वास व निगरानी की भावना बढ़ सकती है।
  • लैंगिक असमानता : भारत में स्मार्टफोन स्वामित्व में लैंगिक अंतर (मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 के अनुसार महिलाओं की तुलना में पुरुषों के पास 39% अधिक स्वामित्व) के कारण महिलाओं के लिए निष्पक्ष सुनवाई में चुनौतियां आ सकती हैं। तकनीक तक आसान पहुंच वाले पक्ष को लाभ मिल सकता है।
  • साक्ष्य की प्रामाणिकता : गुप्त रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता और इसे जबरन या हेरफेर के तरीके से प्राप्त करने की संभावना पर सवाल उठ सकते हैं जिसके लिए अदालतों को साक्ष्य की सावधानीपूर्वक जांच करनी होगी।
  • वैवाहिक संबंधों पर प्रभाव : कोर्ट ने कहा कि यदि पति-पत्नी एक-दूसरे की निगरानी कर रहे हैं, तो यह संबंधों में दरार का लक्षण है। हालांकि, यह निर्णय ऐसे व्यवहार को और प्रोत्साहित कर सकता है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

  • निजता के अधिकार पर प्रभाव : वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने निजता को मौलिक अधिकार माना था। यह निर्णय निजता एवं निष्पक्ष सुनवाई के बीच संतुलन को दर्शाता है किंतु निजता के उल्लंघन को वैध बनाने के लिए कानून की आवश्यकता है।
  • विक्टोरियन कानून की प्रासंगिकता : 1872 में बनाई गई धारा 122 वैवाहिक गोपनीयता को संरक्षित करने के लिए थी, न कि निजता को। आधुनिक संदर्भ में इसकी व्याख्या को अधिक स्पष्ट करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • महिलाओं के अधिकार : तकनीकी असमानता के कारण यह निर्णय महिलाओं के लिए नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि पुरुषों की तुलना में उनके पास स्मार्टफोन एवं रिकॉर्डिंग उपकरणों तक कम पहुंच है।

निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय का गुप्त रिकॉर्डिंग को वैवाहिक विवादों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने का निर्णय निष्पक्ष सुनवाई को बढ़ावा देता है किंतु यह वैवाहिक गोपनीयता एवं निजता के अधिकार को प्रभावित करता है। भविष्य में इस निर्णय को लागू करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और तकनीकी साक्ष्यों की प्रामाणिकता की जांच के लिए मजबूत तंत्र की आवश्यकता होगी।

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