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न्यूनतम कॉर्पोरेट कर 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप; वृद्धि एवं विकास संबंधित मुद्दे)

संदर्भ 

भारत सहित 136 देशों ने ‘न्यूनतम कॉर्पोरेट कर’ लागू करने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इस समझौते के बिंदुओं को वित्त मंत्रियों के G-20 शिखर सम्मलेन में प्रस्तुत किया गया।

 न्यूनतम कॉर्पोरेट कर और संबंधित पहलू

  • इस समझौते के तहत न्यूनतम कार्पोरेट कर की दर 15 प्रतिशत निर्धारित की गई है, जिस पर विश्व के लगभग सभी देशों ने हस्ताक्षर किये हैं। हालाँकि, केन्या, नाइजीरिया, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
  • गौरतलब है कि करों का भुगतान करने से बचने के लिये बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उन स्थानों से लाभ प्राप्त कर रहीं थी, जहाँ कर की दरें अपेक्षाकृत कम थीं।
  • उक्त कदम का सबसे अधिक प्रभाव उन बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर पड़ने वाला है, जिन्होंने अपनी गतिविधियों के संचालन के लिये ऐसे क्षेत्रों का चुनाव किया है, जहाँ कर की दरें कम हैं।
  • उल्लेखनीय है कि ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (OECD) ने लगभग एक दशक तक न्यूनतम कार्पोरेट कर दर से संबंधित मुद्दे को वैश्विक पटल पर आगे बढ़ाया। ज्ञातव्य है कि ओ.ई.सी.डी. में ज़्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं।
  • ओ.ई.सी.डी. द्वारा निम्नलिखित दो स्तंभ प्रस्तावित हैं-
    • पहले स्तंभ का उद्देश्य डिजिटल कंपनियों सहित बड़े बहुराष्ट्रीय उपक्रमों (MNEs) के संबंध में विभिन्न देशों के मध्य लाभों और कर अधिकारों के उचित वितरण को सुनिश्चित करना है। इससे कर अधिकार पुनः उन देशों में आवंटित होंगे, जहाँ से एम.एन.ई. अपने व्यापार को संचालित कर रहे हैं।
    • दूसरे स्तंभ का उद्देश्य वैश्विक कर दर के माध्यम से कॉर्पोरेट आयकर पर प्रतिस्पर्द्धा को सीमित रखना है ताकि समस्त राष्ट्र अपने कर आधारों की सुरक्षा कर सकें।
    • यदि सभी राष्ट्र इस समझौते को लागू करते हैं तो 15 प्रतिशत की न्यूनतम कार्पोरेट कर की दर वर्ष 2023 से लागू होगी। गौरतलब है कि यह कर उन फर्मों के लिये है, जिनकी वैश्विक बिक्री 20 बिलियन यूरो (या 23 बिलियन डॉलर) से अधिक और उनके लाभ का परिमाण 10 प्रतिशत से अधिक है।
    • इस समझौते का उद्देश्य एम.एन.ई. के समक्ष उपस्थित लाभ स्थानांतरण के विकल्प को समाप्त करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एम.एन.ई. कुछ करों का भुगतान उन राष्ट्रों को करें, जहाँ वे व्यापार कर रहे हैं।
    • इस प्रस्ताव को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का भी समर्थन प्राप्त है। इस समझौते से जहाँ अमेरिका को लाभ होगा, वहीं चीन की ओर से विरोध के स्वर उठने की आशंका भी कम है।

विद्यमान चुनौतियाँ 

  • इस समझौते को लागू करने के लिये सभी प्रमुख एवं बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को ‘एक पेज’ पर लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
  • न्यूनतम कार्पोरेट कर की दर के निर्धारण के संबंध में उठाया गया उक्त कदम किसी राष्ट्र की कर नीति तय करने के संप्रभु अधिकार को भी प्रभावित करता है।
  • इसके अलावा, एक वैश्विक न्यूनतम दर अनिवार्यतः ऐसे साधनों को दूर ले जाएगी, जिसका उपयोग विभिन्न राष्ट्र उन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये करते हैं, जो उनके अनुकूल हैं।
  • इन नीतियों को अगले वर्ष तक लागू करना होगा ताकि वर्ष 2023 तक यह समझौता मूर्त रूप ले सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय एन.जी.ओ. ऑक्सफैम का मानना है कि न्यूनतम कार्पोरेट कर की दर के संबंध में हुए इस समझौते के द्वारा भी करों के दबाव से मुक्ति नहीं मिलेगी। इस संदर्भ में यह समझौता प्रभाव-शून्य साबित होगा।

    भारत का पक्ष 

    • वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि भारत वैश्विक कर के दो-स्तंभ प्रस्तावों की बारीकियों को तय करने के ‘निकट’ है और इस संबंध में निर्णय लेने के अंतिम चरण में है।
    • हालाँकि समझौते को मंज़ूरी देने हेतु भारत को निम्नलिखित मुद्दों को संबोधित करना होगा- 
      • ओ.ई.सी.डी. के अनुसार, सभी पक्षों को डिजिटल सेवा करों और अन्य समान प्रासंगिक उपायों को समाप्त करने के साथ-साथ भविष्य में भी ऐसे उपायों को लागू नहीं करने के लिये प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी होगी।
      • ऐसे उपक्रम, जो किसी अन्य स्थान पर अवस्थित हैं और अपने व्यवसाय का संचालन डिजिटल माध्यमों से करते हैं, उनसे उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये वर्ष 2016 में भारत ने ‘समकारी करारोपण’ (Equalisation Levy) की व्यवस्था अपनाई थी।
      • स्मरणीय है कि ‘करारोपण’ (Levy) सरकार या किसी अन्य संगठन के पक्ष में किया जाने वाला अनिवार्य भुगतान है, इसलिये यदि भारत इस समझौते को अपनाता है, तो संभवतः इसे भी उक्त कर को समाप्त करना पड़ सकता है।
      • भारत, चीन, एस्टोनिया और पोलैंड जैसे देशों का यह पक्ष है कि न्यूनतम कर उनके निवेश करने की क्षमता को हानि पहुँचा सकता है, क्योंकि वे निवेशकों को अनुसंधान एवं विकास क्रेडिट तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) जैसे आकर्षक साधन के माध्यम से कर में छूट प्रदान करते हैं।

      निष्कर्ष 

      कर संरचना राष्ट्र के संप्रभुता के दायरे में आती है तथा यह राष्ट्र की वर्तमान परिस्थितियों और ज़रूरतों पर निर्भर करती है। इन सभी विषयों को ध्यान में रखते हुए भारत को वैश्विक न्यूनतम कर के मुद्दे पर गहन चिंतन करते हुए उपयुक्त कदम उठाने होंगे।

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