(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: सरकारी नीतियों तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन) |
संदर्भ
भारत सरकार की ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना का उद्देश्य इस सामरिक क्षेत्र को आधारभूत संरचना और व्यापारिक दृष्टि से सशक्त बनाना है। हालाँकि, इस परियोजना के संबंध में लिटिल निकोबार और ग्रेट निकोबार जनजातीय परिषद ने आरोप लगाया है कि द्वीप प्रशासन ने केंद्र सरकार को गलत रिपोर्ट भेजकर आदिवासियों के वनाधिकारों के निपटान की गलत जानकारी दी है। इससे जनजातीय अधिकारों और पर्यावरण संरक्षण पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
ग्रेट निकोबार परियोजना के बारे में
- यह ₹72,000 करोड़ की मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है।
- इसमें एक ट्रांसशिपमेंट पोर्ट, हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और टाउनशिप का निर्माण शामिल है।
- इसके लिए लगभग 13,075 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण किया गया है।
परियोजना की विशेषताएँ
- सामरिक दृष्टि से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करना
- वैश्विक व्यापार और लॉजिस्टिक्स हब के रूप में द्वीप को विकसित करना
- स्थानीय रोजगार और विकास की संभावनाएँ
हालिया विवाद: जनजातीय परिषद की आपत्ति
- परिषद ने कहा है कि वनाधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) के तहत उनके अधिकारों का निपटारा कभी नहीं हुआ।
- प्रशासन ने वर्ष 2022 में एक प्रमाणपत्र जारी कर यह दर्शाया था कि अधिकार तय एवं निपटाए जा चुके हैं।
- परिषद ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी इस परियोजना को लेकर सहमति नहीं दी है और कई प्रभावित गाँवों को परामर्श प्रक्रिया से बाहर रखा गया।
गलत रिपोर्ट एवं खतरे
- झूठा प्रमाण पत्र: प्रशासन ने दावा किया कि 121.87 वर्ग किमी. संरक्षित वन क्षेत्र और 8.8 वर्ग किमी. डीम्ड वन क्षेत्र के लिए FRA के तहत सभी प्रक्रियाएँ पूरी हो चुकी हैं। परिषद का कहना है कि यह गलत है और प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।
- आदिवासी अधिकारों का हनन: परियोजना के लिए 13,075 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण प्रस्तावित है, जिसमें निकोबारी और शोम्पेन समुदायों की पुश्तैनी भूमि शामिल हैं। इन क्षेत्रों में चिनगेंह, इन हेंग लोई, पुलो बाहा, कोकेओन और पुलो पक्का जैसे गाँव प्रभावित होंगे।
- पर्यावरणीय प्रभाव: गैलाथिया खाड़ी में ट्रांसशिपमेंट पोर्ट प्रस्तावित है जो लेदरबैक कछुए की विश्व की सबसे बड़ी घोंसला स्थली है। इस परियोजना से जैव विविधता को गंभीर खतरा है।
लिटिल निकोबार और ग्रेट निकोबार जनजातीय परिषद के बारे में
- यह निकोबारीज़ (Nicobarese) समुदाय का प्रमुख प्रतिनिधि निकाय है।
- इस परिषद का उद्देश्य परंपरा, संस्कृति एवं वनाधिकारों की रक्षा करना है।
- यह नियमित रूप से प्रशासन एवं सरकार से संवाद करता है।
क्या है PAT56
- आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम, 1956 (Protection of Aboriginal Tribes Act, 1956: PAT56) के अंतर्गत द्वीपों के संरक्षित आदिवासी क्षेत्रों का प्रावधान है।
- इसके तहत प्रशासन को भूमि उपयोग पर विशेष अधिकार प्राप्त हैं।
- किंतु FRA, 2006 के तहत किसी भी वनभूमि के हस्तांतरण से पहले ग्राम सभा की सहमति और अधिकारों का निपटारा अनिवार्य है।
आदिवासियों के अधिकार
- वनाधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) : वन भूमि एवं प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक व व्यक्तिगत अधिकार।
- अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी अधिकार : ग्राम सभा की सहमति के बिना भूमि हस्तांतरण पर रोक
- अंतर्राष्ट्रीय प्रावधान : अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन अभिसमय 169 और संयुक्त राष्ट्र देशज व्यक्ति अधिकार घोषणा (UNDRIP) आदिवासी समुदायों के भूमि एवं संसाधन अधिकारों की रक्षा करते हैं।
संबंधित चिंताएँ
- पर्यावरणीय खतरे : बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और जैव विविधता पर प्रभाव
- जनजातीय आजीविका : शिकार, खेती व मछली पकड़ने पर प्रभाव
- सहमति की प्रक्रिया पर संदेह : क्या वास्तव में ग्राम सभा की अनुमति ली गई?
- शोम्पेन जनजाति की स्थिति : यह विशेष रूप से असुरक्षित जनजातीय समूह (PVTG) है, जिनका भविष्य गंभीर खतरे में है।
- सुरक्षा बनाम अधिकार : सामरिक परियोजनाओं और स्थानीय अधिकारों के बीच संतुलन कठिन है।
आगे की राह
- पारदर्शिता : सभी प्रक्रियाओं की निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच
- जनजातीय सहमति : FRA, 2006 के प्रावधानों के अनुसार ग्राम सभाओं की वास्तविक सहमति लेना
- संतुलित विकास : विकास और पर्यावरणीय व सांस्कृतिक संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करना
- कानूनी हस्तक्षेप : न्यायिक संस्थाओं और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता
- विकल्पों की खोज : ऐसे स्थान का चुनाव करना जहाँ पर्यावरण और जनजातीय जीवन पर न्यूनतम प्रभाव हो