(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य; ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ व संभावनाएँ) |
संदर्भ
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी से बढ़ रहा है जिससे न्याय वितरण में दक्षता और गति बढ़ाने की संभावना है। जुलाई 2025 में केरल उच्च न्यायालय ने जिला न्यायपालिका के लिए AI उपयोग पर देश का पहला नीतिगत दस्तावेज जारी किया, जिसमें सुरक्षित व जिम्मेदार उपयोग के लिए सख्त दिशानिर्देश दिए गए।
केरल उच्च न्यायालय के AI संबंधी दिशानिर्देश
- केरल उच्च न्यायालय ने ‘जिला न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता उपकरणों के उपयोग संबंधी नीति’ (Policy Regarding Use of Artificial Intelligence Tools in District Judiciary) जारी की।
- यह भारत में पहला ऐसा दस्तावेज है जो न्यायिक प्रक्रियाओं में AI के उपयोग को संबोधित करता है।
- इसका उद्देश्य AI के सुरक्षित, पारदर्शी एवं जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करना है।
- यह दस्तावेज देश में 5 करोड़ लंबित मामलों के बोझ को कम करने के लिए AI की संभावनाओं को रेखांकित करता है।
मुख्य बिंदु
- इस दिशानिर्देश में यह तय किया गया है कि एआई का प्रयोग केवल सहायक उपकरण के रूप में हो, अंतिम निर्णय पूरी तरह मानवीय विवेक पर आधारित रहे।
- न्यायाधीश, वकील एवं कर्मचारियों के लिए AI की सीमाओं एवं जोखिमों संबंधी प्रशिक्षण अनिवार्य किया गया है।
- AI टूल्स से दस्तावेज़ अनुवाद, वाद-पत्रों की खामियों की पहचान, ट्रांसक्रिप्शन जैसे कार्यों में मदद मिलेगी।
- हालाँकि, त्रुटि की संभावना (जैसे- गलत अनुवाद, डाटा विभ्रम/Hallucination’) को देखते हुए मानवीय जाँच अनिवार्य होगी।
- न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के लिए लिटिगेंट्स को सूचित करना आवश्यक है कि किसी मामले में AI का प्रयोग हुआ है या नहीं।
- अधिग्रहण फ्रेमवर्क बनाने की ज़रूरत है ताकि न्यायालय यह तय कर सकें कि कौन-सा एआई टूल विश्वसनीय एवं सुरक्षित है।
ई-कोर्ट्स परियोजना के बारे में
- ई-कोर्ट्स परियोजना (eCourts Project) भारत में न्यायिक प्रक्रियाओं को डिजिटल बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
- इसके तीसरे चरण के विजन दस्तावेज में जटिल डिजिटल समाधानों के मूल्यांकन, चयन एवं कार्यान्वयन के लिए तकनीकी कार्यालयों की स्थापना का प्रस्ताव है।
न्यायालयों में AI के अनुप्रयोग
- दस्तावेज अनुवाद: याचिकाओं, निर्णयों एवं अन्य कानूनी दस्तावेजों का तेजी से अनुवाद
- प्रतिलेखन: मौखिक तर्कों व गवाह बयानों का स्वचालित प्रतिलेखन
- कानूनी शोध: प्रासंगिक मिसालों और कानूनों की त्वरित खोज
- त्रुटि पहचान: याचिकाओं एवं फाइलिंग में त्रुटियों की स्वचालित जांच
- केस प्रबंधन: लंबित मामलों को प्राथमिकता देने और शेड्यूलिंग में सहायता
न्यायपालिका और त्वरित न्याय में सहायता
- दक्षता में वृद्धि: AI उपकरण दस्तावेजों की प्रक्रिया और शोध को तेज करते हैं, जिससे न्यायाधीशों का समय बचता है।
- लंबित मामलों में कमी: स्वचालित प्रक्रियाएं लंबित मामलों के बोझ को कम कर सकती हैं।
- सटीकता: त्रुटि पहचान और मानकीकृत प्रक्रियाएं निर्णयों की गुणवत्ता में सुधार कर सकती हैं।
- पहुंच में सुधार: क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद और डिजिटल उपकरणों से गैर-अंग्रेजी भाषी वादियों को लाभ होगा।
- लागत में कमी: मैनुअल प्रक्रियाओं पर निर्भरता कम होने से संसाधनों की बचत होगी।
सर्वोच्च न्यायालय के विचार
- सर्वोच्च न्यायालय की ई-कमेटी ने AI को ई-कोर्ट्स परियोजना के हिस्से के रूप में अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया है किंतु नैतिक व कानूनी जोखिमों को संबोधित करने के लिए मजबूत ढांचे की मांग की।
- न्यायालय ने मानवीय निरीक्षण और पारदर्शिता पर जोर दिया ताकि AI के उपयोग से न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित न हो।
संबंधित चिंताएँ
- तकनीकी त्रुटियाँ: AI उपकरणों में ‘हैलुसिनेशन’ और गलत अनुवाद की समस्या न्यायिक निर्णयों को प्रभावित कर सकती है।
- पक्षपात: AI-सक्षम शोध में उपयोगकर्ता पैटर्न के आधार पर पक्षपात से प्रासंगिक उदाहरण छूट सकते हैं।
- बुनियादी ढांचे की कमी: अधिकांश न्यायालय कागजी प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं और विश्वसनीय इंटरनेट एवं हार्डवेयर की कमी AI अपनाने में बाधक है।
- नैतिक जोखिम: संवेदनशील डाटा की गोपनीयता और दुरुपयोग की आशंका है।
- मानवीय निरीक्षण की आवश्यकता: AI की सीमाओं के कारण मानवीय जांच अनिवार्य है किंतु इसके लिए संसाधनों की कमी है।
आगे की राह
- AI साक्षरता: न्यायाधीशों, न्यायालय के कर्मचारियों एवं वकीलों के लिए AI की सीमाओं व उपयोग पर प्रशिक्षण देने की आवश्यकता
- पारदर्शिता: यदि AI का उपयोग निर्णय प्रक्रिया में हो, तो वादियों को सूचित किया जाए और उन्हें AI उपयोग से बाहर होने का विकल्प दिया जाए।
- मानकीकृत खरीद: AI उपकरणों की विश्वसनीयता एवं उपयुक्तता के मूल्यांकन के लिए मानकीकृत दिशानिर्देश जारी किया जाए।
- बुनियादी ढांचा विकास: विश्वसनीय इंटरनेट, हार्डवेयर एवं डिजिटल सिस्टम में निवेश करने की आवश्यकता है।
- नैतिक ढांचा: डाटा गोपनीयता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मजबूत नीतियां बनाई जाए।
- मानवीय निरीक्षण: AI-उत्पन्न परिणामों की मैनुअल जाँच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, वकीलों एवं अनुवादकों की व्यवस्था की जाए।
निष्कर्ष
AI का उपयोग न्याय प्रणाली में दक्षता बढ़ाने का एक शक्तिशाली साधन हो सकता है किंतु इसके नैतिक और तकनीकी जोखिमों को संबोधित करना आवश्यक है। स्पष्ट दिशानिर्देश एवं मानवीय निरीक्षण के साथ AI त्वरित और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।