(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक अवधारणाएँ) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
हर युग की अपनी एक मुख्य मुद्रा होती है, जो यह तय करती है कि शक्ति का वितरण किस प्रकार होगा और राष्ट्र व कंपनियां अपने संबंध कैसे निर्मित करेंगी। कभी यह भूमि एवं संसाधन के रूप में थे और हाल ही में डाटा एवं ध्यान (Attention) रहे। आज के वैश्विक परिदृश्य में ‘स्नेह अर्थव्यवस्था’ एक नया उभरता हुआ विचार है जहाँ समृद्धि एवं प्रभाव का आधार देखभाल (Care) व अपनापन (Belonging) बनते जा रहे हैं।
स्नेह अर्थव्यवस्था (Affection Economy) का सिद्धांत
- स्नेह अर्थव्यवस्था वह आर्थिक व सामाजिक ढांचा है जिसमें सफलता का आधार केवल पूंजी या संसाधन नहीं है, बल्कि समुदाय, विश्वास व अपनापन होता है।
- इसमें सहयोग, सहानुभूति व मानवीय संबंधों को आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति का केंद्र माना जाता है।
- ‘स्नेह अर्थव्यवस्था’ की अवधारणा को सबसे प्रमुखता से वर्ष 2006 में राजनीतिक वैज्ञानिक गोरान हाइडेन ने गढ़ा था।
- इस अवधारणा से पूर्व प्रमुख विचारकों के पूर्ववर्ती सिद्धांत :
- राजनीतिक वैज्ञानिक रॉबर्ट पुटनाम ने 1990 के दशक में ‘सामाजिक पूंजी’ का एक सिद्धांत विकसित किया, जिसमें बताया गया कि कैसे व्यक्ति-से-व्यक्ति संबंध आधुनिक अमेरिका के लिए आधारभूत थे।
- फ्रांसिस फुकुयामा ने अपनी पुस्तक ट्रस्ट (1995) में दर्शाया कि किस प्रकार सामाजिक पूंजी ने राष्ट्रों के भीतर विश्वास पैदा किया तथा किस प्रकार विश्वास ने स्थिरता एवं आर्थिक विकास को जन्म दिया।
विशेषताएँ
- विश्वास एवं अपनापन पर आधारित संबंध
- समुदायों एवं समूहों की भूमिका पर ज़ोर
- सहानुभूति एवं देखभाल को शक्ति का आधार मानना
- सांस्कृतिक व सामाजिक जुड़ाव से आर्थिक अवसर उत्पन्न करना
- डिजिटल नेटवर्क एवं सामाजिक पूंजी पर केंद्रित
भारत में भूमिका
- भारत जैसे विविधता वाले देश में स्नेह अर्थव्यवस्था का महत्व अधिक बढ़ जाता है। यह न केवल सामाजिक एकजुटता को मजबूत करता है बल्कि पर्यटन, निवेश और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी नई संभावनाएं खोलता है।
- प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के दृष्टिकोण में भी यही भाव निहित है।
- भारत ने ‘स्टेकहोल्डर कैपिटलिज़्म’ जैसे मॉडल अपनाकर इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
- रिलायंस जैसी कंपनियों ने निवेशकों व उपभोक्ताओं में अपनापन और साझा उद्देश्य की भावना पैदा की।
- साथ ही, भारत का सांस्कृतिक जुड़ाव और प्रवासी भारतीय समुदाय स्नेह अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य
- यूएई (Dubai): अपनी नीतियों को ‘अपनापन’ और समुदाय निर्माण पर केंद्रित करके वैश्विक प्रतिभाओं एवं निवेशकों को आकर्षित कर रहा है।
- जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर: अपने सॉफ्ट पावर मॉडल को समुदायों व साझा मूल्यों पर आधारित कर रहे हैं।
- अमेरिका: एप्पल जैसी कंपनियों ने ‘ब्रांड-समुदाय’ आधारित स्नेह पूंजी (Affection Capital) बनाया है।
- चीन: आर्थिक शक्ति होने के बावजूद अपनापन और सॉफ्ट पॉवर की कमी महसूस करता है।
देखभाल और अपनापन का महत्व
- विश्वास एवं स्थिरता का निर्माण
- आर्थिक एवं सामाजिक समृद्धि का आधार
- अतिवाद एवं सामाजिक अलगाव का विकल्प
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की नींव
- महामारी जैसे संकट में सामूहिक शक्ति का स्रोत
स्नेह अर्थव्यवस्था : भविष्य पर प्रभाव
- अधिक सहयोगात्मक अंतर्राष्ट्रीय संबंध निर्मित होंगे।
- कंपनियां ग्राहकों के साथ गहरे जुड़ाव के जरिए मूल्य निर्माण करेंगी।
- सामाजिक पूंजी के बढ़ने से लोकतांत्रिक एवं आर्थिक स्थिरता मजबूत होगी।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए नए समुदाय बनेंगे।
चुनौतियाँ
- डिजिटल समाज में सतही एवं अस्थायी संबंधों का खतरा
- राजनीतिकरण एवं अतिवादी समूहों का स्नेह का गलत इस्तेमाल
- निजी लाभ के लिए सहानुभूति का व्यावसायीकरण
- सामाजिक असमानताओं से उत्पन्न अविश्वास
- समुदाय आधारित नीतियों को स्थायी बनाना कठिन
आगे की राह
- डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग सकारात्मक समुदाय निर्माण के लिए करना
- शिक्षा और नीति निर्माण में सामाजिक पूंजी व विश्वास पर बल देना
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में समान विचार/मतों के मध्य साझेदारी को बढ़ावा देना
- भारत के लिए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ को वैश्विक नीति में शामिल करना
- कंपनियों व सरकारों को केवल आर्थिक नहीं बल्कि भावनात्मक निवेश को भी महत्व देना
निष्कर्ष
स्नेह अर्थव्यवस्था आज के वैश्विक परिदृश्य में केवल एक विचार नहीं बल्कि स्थिरता, सहयोग एवं समृद्धि की नई मुद्रा है। भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत व सामुदायिक दृष्टिकोण के माध्यम से इसे वैश्विक स्तर पर नेतृत्व प्रदान कर सकता है।