(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना) |
संदर्भ
जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा ने अनुच्छेद 311 के विशेष प्रावधानों का उपयोग करते हुए दो सरकारी कर्मचारियों (एक शिक्षक और एक असिस्टेंट स्टॉकमैन) को सेवा से बर्खास्त कर दिया। इन पर सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर ‘राष्ट्रविरोधी गतिविधियों’ में संलिप्त होने के आरोप थे।
जम्मू-कश्मीर में हालिया मुद्दा
- L-G ने अनुच्छेद 311(2)(c) का प्रयोग किया, जिसके तहत राज्य की सुरक्षा के हित में बिना विभागीय जांच के भी बर्खास्तगी संभव है।
- वर्ष 2020 से अब तक इस प्रावधान का उपयोग कर 77 कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा चुका है।
- इनमें से कई कर्मचारी अलगाववादी नेताओं या आतंकवादियों के परिजन बताए गए हैं।
- क्षेत्रीय दलों और नागरिक समाज ने इसे ‘न्यायिक प्रक्रिया से हटकर’ कदम बताते हुए आलोचना की है।
अनुच्छेद 311 के बारे में
- अनुच्छेद 311 भारत के संविधान का वह प्रावधान है जो केंद्र और राज्य सरकारों के सिविल सेवकों को बर्खास्तगी, पदावनति एवं निलंबन से सुरक्षा देता है।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सेवक मनमाने निर्णयों का शिकार न हों।
मुख्य प्रावधान
- 311(1): किसी भी सिविल सेवक को राष्ट्रपति (केंद्र में) या राज्यपाल (राज्य में) की अनुमति के बिना बर्खास्त या पदावनत नहीं किया जा सकता है।
- 311(2):
- सामान्यतः बर्खास्तगी से पहले कर्मचारी को आरोपों की जानकारी और जवाब देने का अवसर देना अनिवार्य है।
- लेकिन तीन अपवाद स्थितियाँ हैं:
- यदि कर्मचारी के खिलाफ आपराधिक मामले में दोष सिद्ध हो चुका हो।
- यदि विभागीय जांच करना व्यावहारिक न हो।
- यदि राज्य की सुरक्षा के हित में जांच करना उचित न समझा जाए।
- 311(3): इस संबंध में राष्ट्रपति/राज्यपाल या उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम माना जाएगा।
ऐसे शक्तियों का महत्व
- प्रशासनिक मशीनरी में राष्ट्रविरोधी तत्वों को रोकने का प्रभावी साधन
- सुरक्षा-प्रधान क्षेत्रों (जैसे- जम्मू एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर) में सरकार को त्वरित कार्रवाई की शक्ति देता है।
- आतंकवाद एवं अलगाववाद को कमजोर करने का एक कानूनी साधन है।
- संवैधानिक ढाँचे के भीतर रहते हुए राज्य की सुरक्षा एवं अखंडता की रक्षा का माध्यम है।
चुनौतियाँ
- न्यायिक प्रक्रिया का अभाव: बिना सुनवाई और जांच के बर्खास्तगी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- राजनीतिक दुरुपयोग की संभावना: असहमति रखने वाले कर्मचारियों को भी निशाना बनाने का खतरा रहता है।
- पारदर्शिता की कमी: ये फैसले सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट पर आधारित हैं जिनकी स्वतंत्र जाँच नहीं होती है।
- कर्मचारियों का मनोबल गिरना: सरकारी सेवक असुरक्षित महसूस कर सकते हैं।
आगे की राह
- न्याय और सुरक्षा में संतुलन: संवैधानिक सुरक्षा प्रावधानों और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन कायम करना
- स्वतंत्र अपील तंत्र: बर्खास्त कर्मचारियों के लिए स्वतंत्र न्यायिक या अर्ध-न्यायिक मंच की व्यवस्था करना
- सुरक्षा एजेंसियों की जवाबदेही: उनकी रिपोर्ट को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए तंत्र विकसित करना
- संवेदनशील क्षेत्रों में विश्वास निर्माण: कठोर प्रशासनिक कदमों के साथ-साथ राजनीतिक संवाद और विकास पहल
निष्कर्ष
अनुच्छेद 311 सरकारी सेवकों के लिए एक सुरक्षा कवच भी है और राज्य को सुरक्षा खतरों से बचाने का हथियार भी है। जम्मू एवं कश्मीर में इसका प्रयोग राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है किंतु इसके साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया, पारदर्शिता एवं संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक हैं ताकि प्रशासनिक निर्णयों पर विश्वास बना रहे।