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मुरिया जनजाति एवं वूकाडा

वामपंथी चरमपंथियों और राज्य प्रायोजित सलवा जुडूम के बीच संघर्ष के दौरान मुरिया (मुड़िया) आदिवासी छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य क्षेत्र से बड़ी संख्या में पलायन कर आंध्र प्रदेश के आरक्षित जंगलों में बस गए। हालाँकि, प्राथमिक शिक्षा, सुरक्षित पेयजल एवं सामाजिक कल्याण लाभों तक सीमित पहुंच के कारण वे पुन: विस्थापन के लिए मजबूर हैं। 

मुरिया जनजाति के बारे में 

  • निवास स्थान : छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश (विशेषकर नक्सल प्रभावित लाल गलियारे में)
  • उपजातियां : राजा मुरिया, घोंटूल व झोरीया मुरिया 
  • बोली व भाषा : गोड़ी एवं हल्बी 
  • गुट्टी कोया : छत्तीसगढ़ से विस्थापित मुरिया बस्तियों के लिए आंध्रप्रदेश की मूल जनजातियों द्वारा संबोधन में प्रयुक्त शब्द 
    • गुट्टी कोया को छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त है किंतु विस्थापित राज्यों में इन्हें ST का दर्जा नहीं प्राप्त है। 
  • लोकनृत्य : सरहुल 
    • चैत्र मास की पूर्णिमा रात को विशेष रूप से आयोजित यह नृत्य एक प्रकार से प्रकृति पूजा का आदिम स्वरूप है।
  • घोटुल : मुरिया युवाओं में उनकी कामुकता को समझने के उद्देश्य से एक वातावरण तैयार करने के लिए कम्यून या शयनगृह
    • यह विवाह एवं संपूर्ण जीवन के प्रति मुरिया जनजाति के प्रगतिशील दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
  • आंध्र प्रदेश के उस क्षेत्र में जहां मुरिया ने अपनी बस्तियां बनाईं है, वहां मूलरूप से कोया एवं कोंडा रेड्डी जनजातियां निवास करती है। ये द्रविड़ भाषा परिवार की ‘कोया’ बोली का प्रयोग करते हैं। 

सलवा जुडूम

  • छ्त्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों से निपटने के लिए राज्य-प्रायोजित ‘सलवा जुडूम’ अभियान की शुरुआत की थी। 
    • जनजातीय भाषा गोंडी में सलवा जुडूम का अर्थ ‘शांति मिशन’ है। 
  • इसका उद्देश्य राज्य में नक्सली हिंसा को रोककर शांति स्थापित करना था। इस अभियान की शुरुआत जून 2005 में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने की थी।
  • नंदिनी सुंदर एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (जुलाई 2011) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक घोषित किया और छत्तीसगढ़ सरकार को इसे तुरंत भंग करने का आदेश दिया।

वूकाडा (Vookada) के बारे में 

  • मुरिया जनजाति की परंपरा के अनुसार, पिता अपने नवजात शिशु के लिए बांस का पालना बुनता है, जो पिता व बच्चे दोनों के लिए जीवन भर की स्मृति होती है।
    • बच्चे के जन्म के बाद पिता वस्तुत: जंगल से बांस लाकर अपने हाथों से पालना बुनता है।
  • गोंड भाषा में इस पालने को ‘वूकाडा’ कहा जाता है। स्तनपान की पूरी अवधि के दौरान बच्चे को इसी पालने में रखने की परंपरा है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनका अपने पालने के साथ एक संबंध विकसित हो जाता है।
  • लैंगिक विभेद के बिना प्रत्येक बच्चे को उसके पिता उपहार में वूकाडा देते हैं। घर में वूकाडा की संख्या उस परिवार में जन्मे बच्चों की कुल संख्या को दर्शाती है।

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