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रहस्यमयी ब्लैक होल्स और गुरुत्वीय तरंगें

(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य विज्ञान)
(मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; अंतरिक्ष)

संदर्भ

हाल ही में, भारत में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वीय तरंगों का रहस्य सुलझाने के लिये एक नए रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया। इसके माध्यम से पूर्ववर्ती रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम की तुलना में अधिक सटीक गणना की जा सकेगी।

गुरुत्वीय रेडियोमेट्री (Gravitational Radiometry)

  • गुरुत्वीय रेडियोमेट्रीएक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत गुरुत्वीय तरंगों की खोज व उनका मापन किया जाता है। इसी प्रक्रिया को अधिक तीव्र व सटीक बनाने के लिये नवीन रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम का विकास किया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड में असंख्य मात्रा में गुरुत्वीय तरंगें उपस्थित हैं।
  • जब अत्याधुनिक दूरदर्शी के माध्यम से गुरुत्वीय तरंगों को डिटेक्ट किया जाता है तो इस प्रक्रिया में दूरदर्शी एक सीमित परास में ही गुरुत्वीय तरंगों पर फोकस कर पाती है। किंतु वास्तव में अन्य असंख्य गुरुत्वीय तरंगें भी उसी समय पृष्ठभूमि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। पृष्ठभूमि में उपस्थित रहने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंगें’ (Stochastic Gravitational Wave–SGW) तथा इस पृष्ठभूमि को ‘स्टोकेस्टिक गुरुत्वीय तरंग पृष्ठभूमि’ (Stochastic Gravitational Wave Background) कहा जाता है।
  • भारतीय शोधकर्ताओं के मुख्य सहयोग से विकसित की गई इस नई रेडियोमेट्रिक एल्गोरिथम के माध्यम से न सिर्फ गुरुत्वीय तरंगों के रहस्य को समझने में मदद मिलेगी बल्कि गुरुत्वीय तरंगों के स्रोत का पता लगाने में भी सहायता मिलेगी।

गुरुत्वीय तरंगें (Gravitational Waves)

  • गुरुत्वीय तरंगें’ ब्रह्मांड में चलने वाली अदृश्य लहरें होती हैं, जो ब्रह्मांड में सदैव उपस्थित रहती हैं। जब ये तरंगें किसी खगोलीय पिंड से गुजरती हैं तो उस पिंड में हल्का-सा खिंचाव या संकुचन होता है, लेकिन यह परिघटना नग्न आँखों से नहीं देखी जा सकती है। इस परिघटना का प्रेक्षण करने के लिये वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर कुछ ‘गुरुत्वीय तरंग वेधशालाओं’ का निर्माण किया है, जो पृथ्वी पर विभिन्न देशों में उपस्थित हैं।
  • यद्यपि वैज्ञानिक इस विषय पर एकदम स्पष्ट नहीं हैं कि गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति कैसे होती है, तथापि निम्नलिखित कुछ घटनाओं को गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति का स्रोत माना जाता है–
    • सुपरनोवा में विस्फोट होना
    • किन्हीं खगोलीय पिंडों का आपस में टकराना
    • दो बड़े तारों का एक-दूसरे के सापेक्ष चक्कर लगाना
    • दो ब्लैक होल्स का एक-दूसरे के सापेक्ष घूमना तथा आपस में विलीन हो जाना, इत्यादि।

क्या है ब्लैक होल? (What is Black Hole?)

  • ‘ब्लैक होल’ ब्रह्मांड में उपस्थित एक ऐसा खगोलीय पिंड होता है, जिसका द्रव्यमान, घनत्व और गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है। वस्तुतः वर्ष 1916 में आइंस्टीन ने ‘सापेक्षिकता का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया था, इस दौरान उन्होंने ‘ब्लैक होल्स’ तथा ‘गुरुत्वीय तरंगों’ के अस्तित्व की परिकल्पना भी की थी। लेकिन ‘ब्लैक होल’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वर्ष 1967 में एक अमेरिकी भौतिकविद् जॉन आर्किबैल्ड व्हीलर ने किया था।
  • इनकी उत्पत्ति के विषय में अभी तक वैज्ञानिक समुदाय किसी साझा निष्कर्ष पर तो नहीं पहुँच सका है, किंतु विभिन्न अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से इनके बारे में कुछ उपयोगी जानकारी जुटाने में ज़रूर सफल रहा है। इनके अनुसार, ब्लैक होल्स का घनत्व व आकर्षण बल इतना अधिक होता है कि प्रकाश किरण भी इनके प्रभाव क्षेत्र में आने के पश्चात् परावर्तित नहीं हो पाती है, इसलिये ब्लैक होल्स को देख पाना संभव नहीं होता है।

ब्लैक होल्स के प्रकार (Types of Black Holes)

1. द्रव्यमान के आधार पर ब्लैक होल्स 4 प्रकार के होते हैं–

I) प्राथमिक ब्लैक होल्स (Primordial Black Hole) : इनका द्रव्यमान ‘पृथ्वी’ के द्रव्यमान के ‘बराबर या उससे कम’ होता है।

II) स्टेलर द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Stellar Mass Black Holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘4 से 15 गुणा’ अधिक होता है।

III) मध्यवर्ती द्रव्यमान ब्लैक होल्स (Intermediate mass black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ हज़ार गुणा’ अधिक होता है।

IV) विशालकाय ब्लैक होल्स (Supermassive black holes) : इनका द्रव्यमान ‘सूर्य’ के द्रव्यमान से ‘कुछ मिलियन-बिलियन गुणा’ अधिक होता है।

    2. अपने अक्ष पर घूर्णन तथा विद्युत आवेश के आधार पर ब्लैक होल्स 3 प्रकार के होते हैं–

    I) श्वार्ज़्सचाइल्ड ब्लैक होल्स (Schwarzschild Black Holes) : ये ब्लैक होल्स ना तो अपने अक्ष पर घूर्णन करते हैं और ना ही इनके पास कोई विद्युत आवेश होता है। इन्हें ‘स्थिर ब्लैक होल्स’ (Static Black I) Holes) भी कहते हैं।

    II) कर ब्लैक होल्स (Kerr Black Holes) : ये ब्लैक होल्स अपने अक्ष पर घूर्णन तो करते हैं, लेकिन इनके पास कोई विद्युत आवेश नहीं होता है।

    III) आवेशित ब्लैक होल्स (Charged Black Holes) : ये ब्लैक होल्स पुनः 2 प्रकार के होते हैं–

    i) रेसनर-नॉर्डस्ट्रॉम ब्लैक होल्स (Reissner-Nordstrom black hole) : ये ब्लैक होल्स आवेशित होते हैं, लेकिन अपने अक्ष पर घूर्णन नहीं करते हैं।

    ii) कर-न्यूमैन ब्लैक होल्स (Kerr-Newman Black Holes) : ये ब्लैक होल्स आवेशित भी होते हैं और अपने अक्ष पर घूर्णन भी करते हैं।

    ब्लैक होल के तत्त्व (Elements of the Black Hole)

    I) सिंगुलरिटी (Singularity) : यह किसी ब्लैक होल का केंद्र बिंदु होता है, जहाँ उस ब्लैक होल का संपूर्ण द्रव्यमान केंद्रित होता है। जब कोई खगोलीय पिंड अत्यधिक संपीड़ित होकर एक बिंदु जैसी आकृति ग्रहण कर लेता है, तो इस संरचना का निर्माण होता है। इसका घनत्व, द्रव्यमान तथा गुरुत्वाकर्षण बल अत्यधिक होता है।Nordstrom

    II) इवेंट होराइज़न (Event Horizon) : सिंगुलरिटी के चारों ओर उपस्थित उसके गुरुत्वाकर्षण का वह प्रभाव क्षेत्र, जिसके संपर्क में आने के पश्चात् प्रकाश भी वापस नहीं लौट सकता, ‘इवेंट होराइज़न’ कहलाता है। अर्थात् ‘इवेंट होराइज़न’ सिंगुलरिटी की गुरुत्वीय सीमा को दर्शाता है। स्पष्ट है कि इवेंट होराइज़न की बाह्यतम सीमा कोई भौतिक सतह नहीं, बल्कि आभासी सतह होती है।

    III) श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या (Schwarzschild Radius) : सिंगुलरिटी से इवेंट होराइज़न के बाह्यतम बिंदु तक की सीधी दूरी ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है। अर्थात् ब्लैक होल के केंद्र बिंदु से बाहर की ओर वह दूरी, जहाँ से प्रकाश भी वापस नहीं लौट पाता हो, ‘श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्या’ कहलाती है।

    IV) एक्रीशन डिस्क (Accretion Disc) : इवेंट होराइज़न के चारों ओर भी सिंगुलरिटी का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उपस्थित होता है, लेकिन वह श्वार्ज़्सचाइल्ड त्रिज्यीय क्षेत्र की तुलना में कम शक्तिशाली होता है। अतः इवेंट होराइज़न के चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पदार्थ, यथा– गैसें, खगोलीय पिंडों के टुकड़े, धूल इत्यादि चक्कर लगा रहे होते हैं। इससे इवेंट होराइज़न के बाह्य परिधीय क्षेत्र में एक डिस्क रूपी संरचना का निर्माण हो जाता है, यही संरचना ‘एक्रीशन डिस्क’ कहलाती है।black-hole1

    V) सापेक्षिक जेट (Relativistic Jet) : यह विशालकाय ब्लैक होल द्वारा उत्पन्न किया जाने वाला जेट होता है, जो ब्लैक होल के केंद्र से बाहर की ओर गतिमान होता है। इसकी गति की दिशा ब्लैक होल के घूर्णन अक्ष के सामानांतर होती है। इसका निर्माण ब्लैक होल्स के गुरुत्वीय क्षेत्र में उपस्थित रेडिएशन, धूल के कणों, गैसों आदि से होता है। इस जेट में उपस्थित पदार्थों की गति प्रकाश के वेग के सामान होती है। इन सापेक्षिक जेट्स को ब्रह्मांड में सबसे तेज़ी से गति करने वाली ‘कॉस्मिक किरणों’ की उत्पत्ति का स्रोत भी माना जाता है।

    ब्लैक होल्स तथा गुरुत्वीय तरंगों के अध्ययन संबंधी वेधशालाएँ

    • वैज्ञानिकों का मत है कि ब्रह्मांड में उपस्थित ‘गुरुत्वीय तरंगें’ ब्लैक होल्स तथा ब्रह्मांड के विभिन्न रहस्यों को समझने में अत्यंत सहायक होती हैं। ब्लैक होल्स तथा गुरुत्वीय तरंगों से संबंधित विभिन्न परिघटनाओं का अध्ययन करने के लिये कुछ अत्याधुनिक वेधशालाएँ (Observatories) विश्व के अलग-अलग हिस्सों में स्थापित की गई हैं।
    • इन वेधशालाओं में अत्यंत शक्तिशाली दूरदर्शी/डिटेक्टर का उपयोग किया जाता है। गुरुत्वीय तरंगों व ब्लैक होल्स के रहस्यों को समझने के उद्देश्य से विश्व के विभिन्न हिस्सों में स्थापित की गई वेधशालाएँ इस प्रकार हैं–

    वेधशालाएँ

    संबंधित देश

    लीगो-यू.एस. (LIGO-US)

    संयुक्त राज्य अमेरिका

    वर्गो (VIRGO)

    इटली

    काग्रा (KAGRA)

    जापान

    लीगो-इंडिया (LIGO-India)

    भारत (निर्माणाधीन)

    लेज़र व्यतिकरणमापी गुरुत्वीय तरंग वेधशाला-इंडिया (Laser Interferometer Gravitational wave Observatory–India : LIGOIndia)

    • ‘लीगो-इंडिया प्रोजेक्ट’ ब्लैक होल्स व गुरुत्वीय तरंगों का अध्ययन करने संबंधी वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है। इस वैश्विक नेटवर्क के अंतर्गत कुल 3 लीगो वेधशालाएँ स्थापित की जानी हैं। इनमें से दो वेधशालाएँ तो अमेरिका के हैनफोर्ड तथा लिविंग्स्टन में स्थापित हो चुकी हैं, जबकि तीसरी वेधशाला भारत के महाराष्ट्र (हिंगोली ज़िला) में निर्मित की जा रही है।
    • भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक मंजूरी फरवरी, 2016 में प्रदान की थी। इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी संयुक्त रूप से ‘परमाणु ऊर्जा विभाग’ तथा ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ को दी गई है। भारत में इस वेधशाला का निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका के सहयोग से किया जा रहा है। इसके अलावा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया व जर्मनी भी इस प्रोजेक्ट में सहयोगी है।
    • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित 2 लीगो वेधशालाओं द्वारा इतिहास में पहली बार 14 सितंबर, 2014 को ब्लैक होल्स के विलय की घटना को डिटेक्ट किया गया था।
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