New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021 : सामाजिक क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण पहल

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3 : स्वास्थ्य, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र, सरकारी नीतियाँ)

संदर्भ

हाल ही में, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘दुर्लभ रोगों के लिये राष्ट्रीय नीति, 2021’ को स्वीकृति प्रदान की है। यह नीति उन रोगियों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो दुर्लभ रोगों का उपचार करवा पाने में असमर्थ हैं।

क्या हैं दुर्लभ रोग?

  • दुर्लभ रोगों को ऐसे रोग के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी जनसंख्या को विरले ही प्रभावित करता है। इसके लिये तीन आधारों; रोग से प्रभवित ‘लोगों की कुल संख्या’, इसकी ‘व्यापकता’ और ‘उपचार विकल्पों की उपलब्धता या अनुपलब्धता’ का उपयोग किया जाता है।
  • डब्ल्यू.एच.ओ. दुर्लभ रोगों को आवृत्ति के आधार पर परिभाषित करता है। इसके अनुसार, ऐसा रोग जिससे पीड़ित रोगियों की संख्या प्रति दस हज़ार में 6.5-10 से कम होती है, उनको दुर्लभ रोग कहते हैं।
  • एक अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में ज्ञात दुर्लभ रोगों की संख्या लगभग 7,000 है और इससे पीड़ित रोगियों की संख्या लगभग 300 मिलियन है, जबकि भारत में इनकी संख्या लगभग 70 मिलियन है।
  • ‘भारतीय दुर्लभ रोग संगठन’ के अनुसार, इनमें वंशानुगत कैंसर, स्व-प्रतिरक्षी विकार, जन्मजात विकृतियाँ, हिर्स्चस्प्रुंग रोग (Hirschsprung’s Disease- इसमें बड़ी आँत प्रभावित होती है, जिससे मल त्याग में समस्या आती है), गौचर/गौशर रोग (Gaucher Disease- एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें प्लीहा व लीवर बढ़ जाता है और हड्डियाँ कमज़ोर हो जाती है), सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (पेशीय अपविकास) और लाइसोसोमल भंडारण विकार जैसे रोग शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस नीति के तहत उन सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों के उपचार के लिये ‘राष्ट्रीय आरोग्य निधि’ की छत्रक योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक के वित्तीय समर्थन का प्रावधान हैजिनके लिये केवल एक बार के उपचार की आवश्यकता होती है। इनको दुर्लभ रोग नीति में समूह-1 के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि इसके तहत वित्तीय सहायता केवल बी.पी.एल. परिवारों के लाभार्थियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके लाभके दायरे में 40% जनसंख्या को लाया जाएगा, जो प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्र हैं।
  • इस नीति में ‘स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों’ और ‘ज़िला प्रारंभिक हस्तक्षेप केंद्रों’ जैसी प्राथमिक एवं द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना तथा अधिक जोखिम वाले मरीजों के लिये परामर्श के माध्यम से त्वरित जाँच एवं रोकथाम पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • इस नीति में दुर्लभ रोगों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है- एक बार उपचार वाले विकार; लंबी अवधि या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले विकार और ऐसे रोग जिनके लिये निश्चित उपचार उपलब्ध है परंतु लाभ के लिये इष्टतम रोगी का चयन करना चुनौतीपूर्ण है।
  • उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर-अल्कोहोलिक फैटी लीवर रोगों (NAFLD) को ‘कैंसर, मधुमेह, ह्रदय रोग और स्ट्रोक से बचाव एवं नियंत्रण के राष्ट्रीय कार्यक्रम’ (NPCDCS) से जोड़ने के दिशा-निर्देश जारी किये हैं। भारत एन.ए.एफ.एल.डी. के लिये कार्रवाई करने वाला विश्व का पहला देश है।

नीति-स्थापना का कारण

  • दुर्लभ रोगों का क्षेत्र एवं स्वरुप अत्यंत जटिल और विविध है। साथ ही, इसके रोकथाम, उपचार व प्रबंधन में कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। इन चुनौतियों में प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों में जागरूकता की कमी के अतिरिक्त अपर्याप्त जाँच और उपचार सुविधाओं में कमी जैसे कारक शामिल हैं।
  • भारतीय संदर्भ में इन रोगों से संबंधित शरीर क्रिया-विज्ञान और प्राकृतिक इतिहास के बारे में कम जानकारी उपलब्ध होने के कारण अधिकतर दुर्लभ रोगों के लिये अनुसंधान एवं विकास में मूलभूत समस्याएँ विद्यमान हैं। साथ ही, मरीजों की कम संख्या और इस कारण अपर्याप्त चिकित्सकीय अनुभव के चलते दुर्लभ रोगों पर अनुसंधान कार्य भी कठिन है।
  • इनसे जुड़े रोगों और मृत्यु दर में कमी लाने के लिये दवाओं की उपलब्धता व पहुँच तथा उपचार की लागत भी अहम मुद्दा है। साथ ही, यह नीति न्यायालय सहित विभिन्न हितधारकों के हस्तक्षेप का एक परिणाम है।

उद्देश्य

  • इस नीति का उद्देश्य संयोजक के रूप में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के ‘स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग’ द्वारा गठित ‘राष्ट्रीय संघ’ (National Consortium) की सहायता से स्वदेशी अनुसंधान पर अधिक जोर देने के साथ-साथ इन रोगों की उपचार लागत को कम करना है।इसके लिये ‘अनुसंधान और विकास’ के साथ-साथ ‘दवाओं के स्थानीय उत्पादन’ पर अधिक बल दिया जाएगा।
  • इस नीति में दुर्लभ रोगों की एक ‘अस्पताल आधारित राष्ट्रीय रजिस्ट्री’ तैयार करने की भी परिकल्पना की गई है, ताकि इन रोगों को परिभाषित करने तथा देश में इनसे संबंधित अनुसंधान एवं विकास के लिये पर्याप्त डाटा उपलब्ध हो सके।
  • साथ ही, इस नीति का उद्देश्य उत्कृष्टता केंद्र के रूप में वर्णित8 स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से दुर्लभ रोगों से बचाव एवं उपचार के लिये तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को मज़बूत करना भी है। निदान सुविधाओं (Diagnostics Facilities) के सुधार के लिये इन उत्कृष्टता केंद्रों को करोड़ रुपए तक की वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी।
  • इसके अलावा, नीति में एक ‘क्राउड फंडिंग तंत्र’ की भी परिकल्पनी की गई है। इसके माध्यम से जुटाई गई धनराशि को उत्कृष्टता केंद्रों द्वारा दुर्लभ रोगों के उपचार के लिये उपयोग किया जाएगा, तत्पश्चात शेष वित्तीय संसाधनों का उपयोग अनुसंधान के लिये भी किया जा सकता है।

लाभ

  • इससे दुर्लभ रोगों के उपचार के व्यवसायीकरण में तेज़ी आएगी, जो संबंधित रोगों के लिये नई दवाओं और प्रक्रियाओं के विकास में सहायक होगा। साथ ही, इस क्षेत्र के वित्तीयन में भी तेज़ी आएगी।
  • यह नीति रोकथाम और नियंत्रण के लिये लोगों को विवाह-पूर्व आनुवंशिक परामर्श लेने, उच्च जोखिम वाले जोड़ों की पहचान करने और दुर्लभ रोगों के प्रारंभिक पहचान के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिये प्रोत्साहित करेगी।
  • यह नीति ‘समावेशन के सिद्धांत’ के अनुरूप है और नागरिकों की देखभाल के लिये कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना की पुष्टि करती है।

आगे की राह

  • ‘ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया’ द्वारा पूर्व-अनुमोदित उपचारों के लिये तत्काल और आजीवन उपचार की जरूरतों के लिये कोई धन आवंटित नहीं किया गया है। इस पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है।
  • इसमें दीर्घकालिक वित्तीय सहायता को लेकर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं अपनाई गई है। साथ ही, यह नीति दान और क्राउड फंडिंग पर आधारित है, जो अधिक विश्वसनीय नहीं है।
  • दुर्लभ रोगों के उपचार में अधिकतम लोगों तक सहायता पहुँचाने के लिये केंद्र सरकार को अन्य राज्यों के साथ लागत-साझाकरण समझौते का विस्तार करने की आवश्यकता है।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR