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छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला: चुनौतियाँ और भविष्य की राह

संदर्भ

3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) के 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए। इस हमले ने सरकार के नक्सल-विरोधी अभियान से संबंधित नीतियों पर पुनः प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

ध्यातव्य है कि वर्ष 2010 में चिंतलनार (सुकमा ज़िला) में घात लगा कर किये गए हमले में 76 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे, इसके बाद से दंतेवाड़ा-सुकमा-बीजापुर क्षेत्र में अब तक 176 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं।

वर्ष 2005 के पश्चात् सरकार द्वारा संचालित अभियान ने ‘वामपंथी उग्रवाद’ (LWE) की समस्या से ग्रसित कई राज्यों को मुक्त किया, लेकिन छत्तीसगढ़ में ये समस्या आज भी बरकरार है।

पृष्ठभूमि

  • 'नक्सलवाद' के नाम से विदित पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से उपजे वामपंथी उग्रवाद का प्रसार 11 राज्यों तक है, जिसे कथित तौर पर ‘लाल गलियारा या रेड कॉरिडोर’ कहते हैं।
  • प्रतिबंधित वामपंथी संगठनों द्वारा हिंसक घटनाओं के माध्यम से सुरक्षाकर्मियों, नागरिकों तथा सार्वजनिक व निजी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जाता है।
  • इनका मुख्य उद्देश्य लोकतांत्रिक सरकार को ‘सशस्त्र क्रांति’ के माध्यम से पदच्युत कर स्वयं की सत्ता स्थापित करना है।

प्रमुख कारण

  • भूमि सुधारों की विफलता तथा भूमि का असमान वितरण होना।
  • सरकारी विकास परियोजनाओं के प्रति जनजातीय क्षेत्रों में संसाधनों के दोहन के कारण स्थानीय निवासियों में रोष का होना।
  • ‘जल-जंगल-ज़मीन’ इन विद्रोहों का मुख्य कारण रहा है। जिसके अंतर्गत संसाधन-समृद्ध भूमि पर अवैध अतिक्रमण तथा भूमि अधिकारों से वंचना प्रमुख है।
  • सरकारी तंत्र के साथ संपर्क के अभाव में समाज के बड़े वर्ग में अलगाव और बहिष्करण की भावना का विद्यमान होना।
  • नक्सलियों द्वारा राजनीतिक व प्रशासनिक तंत्र के बारे में दुष्प्रचार किया जाना।

राज्य पुलिस की प्रमुख भूमिका

  • विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलवाद को रोकने में वही राज्य अग्रणी रहें हैं, जहाँ राज्य पुलिस बल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • महाराष्ट्र में, जहाँ नक्सलवाद की गिरफ्त में कई ज़िले थे, स्थानीय पुलिस और सी-60 बलों द्वारा इसे मात्र गढ़चिरोली ज़िले तक सीमित करने में सफलता प्राप्त हुई है।
  • इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, ओडिसा तथा झारखंड जैसे राज्य, जो बुरी तरह नक्सलवाद की गिरफ्त में थे, स्थानीय पुलिस बलों की सहायता से नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सफलता मिली है। उदाहरणस्वरूप ओडिसा में नक्सलवाद वर्तमान में मलकानगिरी ज़िले तक ही सीमित रह गया है।
  • गौरतलब है कि नक्सलियों का सामना करने के लिये केंद्रीय सुरक्षा बलों के विभिन्न प्रकार से प्रशिक्षित होने के बावजूद उनके पास स्थानीय तंत्र और आसूचना का अभाव होता है।
  • उक्त राज्यों के राज्य पुलिस बलों की नक्सलियों के विरुद्ध दक्ष कार्रवाई के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य पुलिस को इस मामले और अधिक स्वायतता दी जानी चाहिये।
  • छत्तीसगढ़ में स्थिति नियंत्रित या बेहतर न होने का मुख्य कारण यही है कि वहाँ राज्य पुलिस को अधिक स्वायत्तता प्राप्त नहीं है।

आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती

  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2004 में औपचारिक रूप से नक्सली हिंसा को ‘देश की सबसे बड़ी आंतरिक समस्या’ के रूप में स्वीकार किया। साथ ही, समस्या के समाधान हेतु सरकार ने पुलिस बलों के आधुनिकीकरण करने सहित कई अन्य कदम उठाए।
  • 1980 के दशक में नक्सलियों के विरुद्ध आंध्र प्रदेश की पुलिस न तो प्रशिक्षित थी न ही उसके पास पर्याप्त संसाधन थे, किंतु कई हमलों के बाद राज्य सरकार ने क्षमता निर्माण के साथ-साथ ‘डिफेंड, डिस्ट्रॉय, डीफीट तथा डीनॉय’ की रणनीति को अपनाया।
  • इसके अलावा आसूचना एवं विकास गतिविधियों के क्रियान्वयन से इस समस्या का काफी हद तक समाधान हुआ।
  • साथ ही, पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद की समस्या के समाधान में प्रौद्योगिकी और मज़बूत आसूचना तंत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

छत्तीसगढ़ की चुनौतीपूर्ण स्थिति

  • वर्ष 2000 के आसपास छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की समस्या सामने आई। यहाँ स्थिति और भी गंभीर व चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि यहाँ के कई क्षेत्रों में उस समय तक सर्वेक्षण या संस्थागत ‘मैपिंग’ नहीं की गई थी।
  • वर्ष 2018 से 2020 के मध्य, 45 प्रतिशत घटनाएँ केवल छत्तीसगढ़ में घटित हुईं। आंध्र प्रदेश की तुलना में इस राज्य की भौगोलिक एवं जनांकिकीय स्थिति काफी अलग है।
  • छत्तीसगढ़ के आंतरिक भाग में बुनियादी सुविधाओं जैसे- विद्यालय, चिकित्सालय, सड़कें आदि का अभाव है। परिणामस्वरूप, ग्रामीणों में भी राज्य के प्रति असंतोष की भावना रहती है, इसी का फायदा उठाकर नक्सली दुष्प्रचार के माध्यम से अपने ‘कैडरों’ की भर्ती करते हैं।
  • नक्सलवाद के विरुद्ध शुरू किया गया ‘सलवा जुडूम’ भी ‘काउंटर-प्रोडक्टिव’ हुआ। साथ ही, कमज़ोर आसूचना तंत्र के कारण ‘ऑपरेशनल समस्याएँ’ होती रहीं हैं।
  • राज्य सरकार ने नक्सलवाद को रोकने के लिये ‘ज़िला रिज़र्व गार्ड’ का गठन किया है। इसमें आदिवासी क्षेत्रों, जैसे बस्तर आदि से युवाओं तथा आत्मसमर्पण किये नक्सलियों को शामिल किया जाता है।

नक्सलवाद के विरुद्ध सरकार की प्रतिक्रिया

नक्सलवाद को रोकने के सरकार ने समग्र दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमे सुरक्षा-संबंधी हस्तक्षेप तथा विकासात्मक उपाय शामिल हैं, जैसे-

  • बंधोपाध्याय समिति (2006) ने आदिवासियों के अनुकूल भूमि अधिग्रहण तथा पुनर्वास प्रणाली अपनाने की सलाह दी।
  • नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक और सामाजिक अवसंरचना से संबंधित विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन।
  • नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, एकलव्य विद्यालय स्थापित करने के साथ-साथ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का क्रियान्वयन।
  • सी.पी.आई. (माओवादी), जो हिंसा की अधिकांश घटनाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं, उनसे संबंधित सभी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है।
  • आसूचना तंत्र को सुदृढ़ करना, जैसे- 24*7 केंद्रीय स्तर ‘पर मल्टी एजेंसी सेंटर’ और राज्य स्तर पर ‘राज्य मल्टी एजेंसी स्टोर’ के माध्यम से आसूचना साझा किया जाता है।
  • ‘ऑपरेशन समाधान’ कार्ययोजना का संचालन। समाधान (SAMADHAN) का अर्थ है,
    • एस- कुशल नेतृत्व
    • ए- आक्रामक रणनीति
    • एम- अभिप्रेरणा एवं प्रशिक्षण
    • ए- अभियोज्य गुप्तचर व्यवस्था
    • डी- कार्ययोजनाआधारित प्रदर्शन
    • एच- कारगर प्रौद्योगिकी
    • ए- प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना
    • एन- नक्सलियों के वित्तीय पहुँच को विफल करना
  • बेहतर अंतर-राज्य समन्वय के लिये प्रयास किये गये हैं। साथ ही, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों में 250 सुरक्षित पुलिस स्टेशनों के निर्माण के लिये विशेष अवसंरचना योजना का संचालन किया जा रहा है।

आगे की राह

  • केंद्र और राज्यों के मध्य समन्वय के लिये मौजूदा तंत्रों का समयबद्ध संचालन करना।
  • नक्सलवाद से निपटने के लिये राज्य पुलिस बलों को अधिक स्वायत्तता देने के साथ-साथ केंद्रीय बलों के समकक्ष प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
  • संसाधनों को पुनर्वितरित करने के लिये सरकार को विकासात्मक योजनाओं को प्रभावी तौर पर क्रियान्वित करना चाहिये।
  • नक्सल-प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय सरकारों को अधिक शक्तियाँ तथा स्वायत्तता प्रदान करना। साथ ही, समय पर निर्वाचन सुनिश्चित करना चाहिये।
  • निष्कर्षतः नक्सलवाद को रोकने के लिये न सिर्फ इन घटनाओं को रोकने की आवश्यकता है बल्कि इसके साथ-साथ ऐसी हिंसक विचारधारा को काउंटर करने की आवश्यकता है। इसके लिये सरकार को विश्वास बहाली तथा आसूचना प्रणाली को और मज़बूत करने की आवश्यकता है।
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