New
Holi Offer: Get 40-75% Discount on all Online/Live, Pendrive, Test Series & DLP Courses | Call: 9555124124

पॉक्सो अधिनियम में विस्तार की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 1: महिलाओं की समस्याएँ और उनके रक्षोपाय से संबंधित प्रश्न/सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था से संबंधित मुद्दे)

संदर्भ

  • हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने 'स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट' की उस व्याख्या पर रोक लगा दी है जो बंबई उच्च न्यायालय ने की थी।
  • बंबई उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा था कि किसी भी महिला के वास्तविक शरीर को पकड़े (स्किन-टू-स्किन कॉन्टैक्ट) बिना उसके कपड़ों को ज़बर्दस्ती छूना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा।  
    • पिछले नौ वर्षों में, भारत ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के माध्यम से बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने की कोशिश की है, लेकिन पॉक्सो अधिनियम विवादों से घिरा रहा है।

    ऐतिहासिक बाल यौन शोषण

    • ऐतिहासिक बाल यौन शोषण उन घटनाओं को संदर्भित है, जिनकी रिपोर्ट देर से दर्ज की जाती है। 
    • ऐतिहासिक दुर्व्यवहार केवल संस्थानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पारिवारिक सदस्यों द्वारा किया जाने वाला दुर्व्यवहार भी शामिल है। वस्तुतः पारिवारिक मामलों में बच्चे के लिये अपराध या अपराधी के विरुद्ध जल्द से जल्द रिपोर्ट करना मुश्किल होता है। 
    • दरअसल, बच्चे के साथ जो कुछ हुआ उसकी गंभीरता को पहचान और समझकर अपराध की रिपोर्ट करने के लिए आश्वस्त होने में प्रायः समय लगता है। 
    • प्रथमदृष्टया यह आपराधिक विधि के स्थापित सिद्धांत के विपरीत प्रतीत हो सकता है कि अपराध के प्रत्येक कार्य को जल्द से जल्द रिपोर्ट किया जाना चाहिये और शिकायत दर्ज करने में कोई भी देरी अभियोजन पक्ष के मामले की प्रभावशीलता को कमज़ोर करती है।

    अन्य समस्याएँ 

    • आपराधिक प्रक्रिया संहिता (crpc) के प्रावधान न्यायिक मजिस्ट्रेट को एक विशिष्ट समयावधि से परे मामलों का संज्ञान लेने से रोकते हैं। 
    • बाल यौन शोषण से जुड़े मामले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 के तहत परिभाषित बलात्कार की श्रेणी में नहीं आते हैं, और वर्ष 2012 में पॉक्सो के अधिनियमन से पहले, संभवतः कम और कुछ हद तक तुच्छ, एक महिला की लाज भंग करने के अपराध (आई.पी.सी. की धारा 354) के तहत वर्गीकृत किया जाएगा।  
    • इस प्रकार, आई.पी.सी. की धारा 354 के तहत, घटना की तिथि से तीन साल से अधिक समय के बाद किसी भी अपराध की रिपोर्टिंग को सी.आर.पी.सी. द्वारा प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। 
    • ऐसा परिदृश्य बाल यौन अपराधों की ऐतिहासिक रिपोर्टिंग को प्रस्तुत करता है, जो वर्ष 2012 से पहले कानूनी रूप से असंभव था। यह वर्ष 2012 से पहले हुए ऐतिहासिक बाल यौन अपराधों के पंजीकरण के विरुद्ध एक दुर्गम कानूनी बाधा प्रस्तुत करता है।
    • जबकि विलंबित अभियोजन को रोकने के लिए सी.आर.पी.सी. में सीमा प्रावधानों को शामिल किया गया था, बाल यौन शोषण के आसपास की परिस्थितियों को अन्य आपराधिक अपराधों के समान नहीं देखा जा सकता है और ही देखा जाना चाहिये।
    • अपराध की तारीख से काफी समय बीत जाने के बाद यौन शोषण की रिपोर्ट करने में देरी का कारण अपराधी की धमकी, सार्वजनिक अपमान का डर और भरोसेमंद विश्वासपात्र की अनुपस्थिति जैसे कारक होते हैं।
    • मनोचिकित्सकों के अनुसार, बच्चे दुर्व्यवहार को इस डर के कारण गुप्त रखते हैं कि कोई भी इनके साथ हुए दुर्व्यवहार पर विश्वास नहीं करेगा, जिससे समायोजन व्यवहार होता है। 
    • इस प्रकार, बढ़ते अनुसंधान और अनुभवजन्य साक्ष्य व्यवहार की ओर इशारा करते हुए विलंबित रिपोर्टिंग को सही ठहराते हुए, पीड़ितों और अभियुक्तों के अधिकारों को संतुलित करने के लिये कानून में संशोधन करने की आवश्यकता है।

    दोष 

    • पॉक्सो का एक अन्य मूलभूत दोष ऐतिहासिक मामलों से निपटने में असमर्थता है।
    • विलंबित रिपोर्टिंग का एक प्रमुख दोष अभियोजन को आगे बढ़ाने के लिये साक्ष्य की कमी है। 
    • ऐसा माना जाता है कि ऐसे मामलों में प्रत्यक्ष भौतिक और चिकित्सा साक्ष्य एकत्र करने की संभावना 5% से भी कम होगी। 
    • भारत, विशेष रूप से बाल यौन शोषण के ऐतिहासिक मामलों पर मुकदमा चलाने के लिये प्रक्रियात्मक मार्गदर्शन की कमी से ग्रस्त है।

    आगे की राह 

    • अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्र के साथ और बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुरूप, भारत को ऐतिहासिक बाल यौन शोषण से निपटने के लिये अपने कानूनी और प्रक्रियात्मक तरीकों को संशोधित करना चाहिये।
    • कम से कम, केंद्र सरकार को उन मामलों में प्रभावी और उद्देश्यपूर्ण अभियोजन को निर्देशित करने के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिये, जो पॉक्सो के दायरे में नहीं आते हैं।

    निष्कर्ष 

    • ब्रिटेन ने ऐतिहासिक बाल यौन शोषण के मामलों में पुलिस की सहायता के लिये वर्ष 2003 के यौन अपराध अधिनियम के तहत बाल यौन शोषण के मामलों पर मुकदमा चलाने पर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
    • भारत का पॉक्सो अधिनियम वर्ष 2012 से पहले यौन शोषण के शिकार बच्चों की दुर्दशा को दूर करने में विफल रहा है। विभिन्न विकासों के लिये हमारे कानूनों में सुधार और संशोधन की तत्काल आवश्यकता है, जैसे कि बाल यौन शोषण की ऐतिहासिक रिपोर्टिंग के संबंध में।
    Have any Query?

    Our support team will be happy to assist you!

    OR