New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 22 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

डिजिटल इकोसिस्टम में वास्तविक सुधार की आवश्यकता 

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सूचना प्रौद्योगिकी, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका)

संदर्भ 

हाल ही में, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम को लागू कर दिया गया। इसमें संदेश सेवा प्रदाताओं को शिकायत अधिकारियों की नियुक्ति के साथ कुछ विशेष स्थिति में संदेशों के मूल स्रोत की जानकारी उपलब्ध करानी होगी। 

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87(2) के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उपयोग करते हुए ये नियम तैयार किये गए हैं। इन नियमों कोसूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियम 2011’ के स्‍थान पर लाया गया है।
  • इन नियमों का भाग-II इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगाजबकि डिजिटल मीडिया के संबंध में आचार संहिता, प्रक्रिया एवं सुरक्षा उपायों से संबंधित भाग-III को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगा।
  • सोशल मीडिया मध्यवर्ती इकाइयों द्वारा नए नियमों में सुझाई गई जाँच-परख का अनुपालन किये जाने की स्थिति मेंसेफ हार्बरका प्रावधान उन पर लागू नहीं होगा।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 मध्यवर्ती इकाइयों को एकसेफ हार्बरप्रदान करती  इसके अंतर्गत यदि वे सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करती हैं तो उपयोगकर्ता-जनित सामग्री की ज़िम्मेदारी से उन्हें छूट प्राप्त होती है।

निजता का प्रश्न

  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021’ का नियम 4 (2) संदेश सेवा प्रदान करने वाले महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों पर उनके प्लेटफॉर्म पर सूचना के मूल स्रोत (सूचना प्रवर्तक) का पता लगाने (ट्रैसबिलिटी) का दायित्व सुनिश्चित करता है।
  • इस प्रावधान को लागू कर पाने की स्थिति में मध्यस्थों (मध्यवर्ती संदेश सेवा प्रदाता, जैसे- व्हाट्सएप, फेसबुक आदि) को उनके प्लेटफॉर्म पर अवैध सामग्री के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
  • ये नियम हाल ही में लागू हुए हैं। परिणामस्वरूप व्हाट्सएप ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करते हुए कहा है कि संदेश ट्रैसबिलिटी का आदेश भारतीय नागरिकों के गोपनीयता निजता के अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिससे व्हाट्सएप एन्क्रिप्टेड सेवाएँ प्रदान करने में असमर्थ है।

सरकार का तर्क 

  • इसके जवाब में सरकार ने व्हाट्सएप की याचिका के तथ्य और समय पर सवाल उठाया है। हालाँकि, यह प्रतिक्रिया तर्कसंगत प्रतीत नहीं होती है।
  • सरकार का प्राथमिक तर्क है कि गोपनीयता एक पूर्ण अधिकार (निरपेक्ष अधिकार) नहीं है और ट्रैसबिलिटी एक आनुपातिक दायित्व है, जिस पर पर्याप्त प्रतिबंध है।
  • नए नियम संदेश सेवाएँ प्रदान करने वाले महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों के मामले में किसी अदालत या सरकारी एजेंसी के आदेश के अधीन और किसी अन्य विकल्प के अभाव में ट्रैसबिलिटी की क्षमता को अनिवार्य बनाते हैं। ये नियम 50 लाख उपयोगकर्ताओं वाले सोशल मीडिया मध्यस्थों को मानना होगा, जैसे कि व्हाट्सएप।
  • हालाँकि, गोपनीयता को पूर्ण अधिकार नहीं माना गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने के.एस. पुट्टास्वामी के निर्णयों (वर्ष 2017 और 2018 के) में स्पष्ट किया है कि गोपनीयता के अधिकार पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध आवश्यक आनुपातिक होने के साथ-साथ इसके दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपायों को शामिल करने वाला होना चाहिये।

एक प्रणालीगत विशेषता के रूप में ट्रैसबिलिटी

  • इस संदर्भ यह तर्क दिया जाता है कि कुछ प्रकार की डिजिटल सेवाओं में प्रणालीगत विशेषता के रूप में ट्रैसबिलिटी का सामान्य दायित्व तो उपयुक्त है और ही आनुपातिक है।
  • इसके अतिरिक्त, इन नियमों में प्रभावी सुरक्षा उपायों का अभाव है क्योंकि ये नियम कार्यपालिका द्वारा किये गए ट्रेसिंग के अनुरोधों के स्वतंत्र निरीक्षण  प्रणाली प्रदान करने में विफल रहते हैं। यह सरकारी एजेंसियों को किसी भी मैसेजिंग उपयोगकर्ता की पहचान करने की क्षमता प्रदान करता है। 
  • हालाँकि, विशेष रूप से पत्रकारिता स्रोत संरक्षण के संदर्भ में और व्हिसल-ब्लोअर के लिये सरकार की ओर से नाम को गुप्त रखना (पहचान छुपाना) महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इसलिये पहचान को सार्वजनिक रूप से उजागर करने संबंधी निर्णय लेने के लिये एक स्वतंत्र न्यायिक विचार की आवश्यकता होती है।
  • साथ ही, इस बात की भी जाँच होनी चाहिये कि एन्क्रिप्शन सिस्टम के कमज़ोर होने से कानून प्रवर्तन निकायों के लाभ की सीमा क्या होगी? इस प्रकार, समग्र साइबर सुरक्षा और निजता के संदर्भ में सामान्य डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र पर इस तरह के उपायों के प्रभावों पर विचार करने की आवश्यकता है। आम तौर पर यह माना जाता है कि कमज़ोर होता एन्क्रिप्शन व्यक्तियों की गोपनीयता और सुरक्षा से समझौता करेगा।

अन्य विकल्प  

  • सरकार के पास पहले से ही ऑनलाइन अपराधों की जाँच के लिये प्रासंगिक जानकारी हासिल करने के कई वैकल्पिक साधन हैं, जिसमें अनएन्क्रिप्टेड डेटा जैसे मेटाडेटा और मध्यस्थों से अन्य डिजिटल ट्रेल्स तक पहुँच शामिल है। इसलिये वर्तमान नियम जाँच प्रक्रिया को छोटा करने का प्रयास हैं। हालाँकि, पर्याप्त जाँच की कमी के चलते इन प्रक्रियाओं से सरकारी एजेंसियों द्वारा दुरुपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • इसके अलावा, किसी भी मामले में सरकार की निगरानी शक्तिययाँ विस्तृत और व्यापक हैं। इसे वर्ष 2018 की न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है। सरकार को पहले से ही आई.टी. अधिनियम के तहत एन्क्रिप्टेड डेटा तक पहुँच प्राप्त है।
  • उल्लेखनीय है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 (3) और सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्सन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिये प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 के नियम 17 और 13 के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास कोई विकल्प उपलब्ध होने की स्थिति में मध्यस्थों को डिक्रिप्शन में सहायता करने की आवश्यकता है। 
  • हालाँकि, वर्तमान नियमों में एन्क्रिप्शन के उपयोग या उसके बिना उपयोगकर्ता की निजता की रक्षा के लिये वैकल्पिक विधि खोजने की ज़िम्मेदारी मध्यस्थों की है।

निष्कर्ष 

  • सरकार का दावा है कि नए नियम व्यापक परामर्श के अनुसार पेश किये गए थे। वर्ष 2018 में जारी नियमों के मसौदे में ट्रैसबिलिटी से संबंधित प्रावधान को सेवा प्रदाताओं, शिक्षाविदों और नागरिक समाज संगठनों से लेकर कई हितधारकों के विरोध का सामना करना पड़ा। नए ट्रैसबिलिटी प्रावधान काफी हद तक उसी के समान हैं। 
  • कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि सरकार का यह कदम विदेश-आधारित प्रौद्योगिकी कंपनियों के खिलाफ एक व्यापक पहल का हिस्सा है। हालाँकि, डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में कई समस्याएँ हैं जो प्रायः मध्यस्थों के कार्य करने के तरीके से और बढ़ जाती हैं। वास्तव में सही समाधान लोकतांत्रिक और दीर्घकालिक तरीकों पर आधारित होना चाहिये। इसमें पुराने आई.टी. अधिनियम, 2000 और अन्य विधायी परिवर्तनों में संशोधन एवं सुधार शामिल हैं।
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR