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नॉर्ड स्ट्रीम 2: भू-राजनैतिक तथा सामरिक महत्त्व 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामायिक घटनाओं से सबंधित प्रश्न )
(मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र- 2; अंतर्राष्ट्रीय सबंध,द्विपक्षीय ,क्षेत्रीय तथा वैश्विक करार से सबंधित विषय )

संदर्भ

हाल ही में विवादों के बावजूद बाल्टिक सागर के अंदर से जर्मनी को रूस से जोड़ने वाली गैस पाइपलाइन परियोजना (नॉर्ड स्ट्रीम-2) का कार्य पूरा हो गया है।

क्या है नॉर्ड स्ट्रीम-2 (NS2)?

  • यह रूस द्वारा जर्मनी को गैस निर्यात बढ़ाने हेतु सबसे छोटा, किफायती और पर्यावरण-अनुकूल मार्ग है।
  • इसे वर्ष 2016 से प्रारंभ किया गया था,1224 किलोमीटर लंबी इस लिंक परियोजना को बाल्टिक सागर के भीतर बनाया गया है, जिसकी लागत लगभग 11 बिलियन डॉलर है।
  •  इस पाइपलाइन परियोजना में रूसी कंपनी गाजप्रोम के अलावा फ्रांस की एंजी, ब्रिटिश डच कंपनी शेल, ऑस्ट्रिया की ओ.एम.वी. और जर्मनी की यूनिपर और विंटरशाल कंपनियाँ शामिल हैं

महत्त्व

  • इस गैस पाइपलाइन का भू-राजनैतिक महत्त्व है। जर्मनी, नीदरलैंड और ब्रिटेन में भूगैस का भंडार कम होता जा रहा है, ऐसे में यह परियोजना पश्चिम यूरोप को गैस सप्लाई की गारंटी देती है
  • पाइपलाइन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ऊर्जा व्यापार को स्थिरता प्रदान करती है, क्योंकि यह यूरोपीय संघ और रूस की एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ाती है
  • नॉर्ड स्ट्रीम हर साल 55 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का परिवहन, लगभग 26 मिलियन घरों तक पहुँच बनाते हुए भंडारण को बहाल करने की क्षमता रखती है

यूक्रेन की चिंता

  • रूस तथा यूरोप के बीच पहले से ही यूक्रेन से होकर गुजरने वाली गैस पाइपलाइन मौजूद है। इस गैस परिवहन पर रूस यूक्रेन को पारगमन शुल्क देता है, अतः नॉर्ड स्ट्रीम-2 के निर्माण से यूक्रेन को नुकसान होगा।
  • इस वर्ष यूरोपीय गैस कीमतों ने रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि हुई, यह लगभग $ 1,000 प्रति हजार क्यूबिक मीटर पहुँच गई, जिससे अनेक उद्योगों और खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं में तनाव उत्पन्न हुआ।
  • उपरोक्त समस्या से निपटने हेतु यूक्रेन ने अक्तूबर के लिये प्रति दिन 15 मिलियन क्यूबिक मीटर रूसी गैस के अतिरिक्त पारगमन क्षमता की पेशकश की, लेकिन रूस ने घरेलू माँग का हवाला देते हुए इसके केवल 4.3% पर ही सहमति जताई।
  • यूक्रेन ने यह आरोप लगाया है कि पाइपलाइन एक रूसी भू-राजनीतिक हथियार है, जिसका उद्देश्य यूक्रेन में राजनीतिक तनाव उत्पन्न करना और उसे महत्त्वपूर्ण राजस्व से वंचित करना है।
  • यदि रूस यूक्रेन के गैस परिवहन के पारगमन शुल्क में कटौती करता है, तो यूक्रेन को इससे अरबों डॉलर का नुकसान होगा। साथ ही, चिंता का एक विषय यह भी है कि रूस यूक्रेन के उपभोग के लिये आवश्यक ऊर्जा आपूर्ति में कटौती कर सकता है।
  • यूक्रेन की अर्थव्यवस्था विविधतापूर्ण नहीं है, ऐसे में नॉर्ड स्ट्रीम-2 से पारगमन शुल्क में कमी से अर्थव्यवस्था को हानि होगी।

पाइपलाइन से संबंधित मुद्दे

  • इस गैस पाइपलाइन परियोजना के संदर्भ में रूस तथा जर्मनी दोनों अमेरिका-जर्मनी- यूरोपीय संघ के बीच हुए समझौते के अधीन हैं।
  • कुछ यूरोपीय राजनेता रूस पर नॉर्ड स्ट्रीम-2 की शुरुआत में तेज़ी लाने के लिये दबाव बना रहे हैं।  लेकिन इस परियोजना को यूरोपीय प्रमाणन की आवश्यकता है, जिसमें अतिरिक्त्त चार माह लग सकते हैं।
  • हालाँकि, जर्मनी ने अभी तक ऑपरेटिंग लाइसेंस जारी नहीं किया है, वह अगले जनवरी में इसे संचालित करेगा।
  • जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल पर पोलैंड और यूक्रेन द्वारा रूस को नॉर्ड स्ट्रीम-2  के माध्यम से अधिक लाभ देकर यूरोपीय संघ की राजनीतिक एकता और रणनीतिक सामंजस्य को कमज़ोर करने का आरोप लगाया जाता है।

यूक्रेन को सहायता

  • नॉर्ड स्ट्रीम-2 पर आम सहमति बनाने के लिये जर्मनी ने हाइड्रोजन ऊर्जा के विकास के लिये यूक्रेन को सहायता देने का वादा किया है, हालाँकि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इन वादों पर शंका व्यक्त की है।
  • अमेरिका ने यूक्रेन को आश्वासन दिया है कि यदि रूस अपनी नई पाइपलाइन का दुरुपयोग करता है तो वह रूस पर और भी कड़े प्रतिबंध आरोपित करेगा।
  • साथ ही, अमेरिका ने जर्मनी की कंपनियों को यूक्रेन के ऊर्जा क्षेत्र का विकास करने में सहयोग तथा रूस पर दबाव बनाया है कि वह वर्ष 2024 के समझौते की समाप्ति के  बाद भी यूक्रेन के रास्ते गैस परिवहन को जारी रखे।

अन्य देशों के हित

  • अमेरिका यूरोपीय देशों में अपनी ऊर्जा आपूर्ति को बढ़ाना चाहता है परंतु नॉर्ड स्ट्रीम-2  के निर्माण के बाद इसमें कमी आएगी।
  • पश्चिमी यूरोपीय देशों में ऊर्जा का भंडार लगातार कम होता जा रहा है, ऐसे में नॉर्ड स्ट्रीम-2 उन्हें किफायती ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।
  • सोवियत यूनियन से अलग होने के बाद पूर्वी यूरोपीय देशों के रूस के साथ सबंध अच्छे नहीं रहे हैं, ऐसे में वे अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।

भारत के लिये निहितार्थ

  • भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये काफी हद तक मध्य-पूर्व के देशों पर निर्भर है। इसने भी पाकिस्तान पर निर्भरता कम करने हेतु ईरान-भारत गैस पाइपलाइन परियोजना का विचार रखा है।
  • भारत को भी पारगमन सबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो इसकी ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करेगा।
  • अमेरिका द्वारा रूस पर लगाये गए प्रतिबंधों से भारत भी प्रभावित हो सकता है इसे अमेरिका के सी.ए.ए.टी.एस.ए. (CAATSA) प्रतिबंधों के माध्यम से समझा जा सकता है।

निष्कर्ष

नॉर्ड स्ट्रीम-2 से यूरोप में ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा, परंतु इससे रूस पर इन देशों की निर्भरता भी बढ़ेगी। साथ ही, यूक्रेन की उपेक्षा इस क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, जो अंततः ऊर्जा संकट उत्पन्न करेगी। ऐसे में विभिन्न हितधारकों को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना को आगे बढ़ाना चाहिये।

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