New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

धर्मांतरण के विरुद्ध अध्यादेश : एक समीक्षा

(प्रारंभिक परीक्षा- भारतीय राज्यतंत्र और शासन-संविधान, लोकनीति व अधिकार संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : सामाजिक सशक्तीकरण और धर्मनिरपेक्षता)

संदर्भ

उत्तर प्रदेश में नवंबर माह में प्रख्यापित ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध  अध्यादेश, 2020’ अंतर-धार्मिक विवाहों की पुष्टि करता है। हालाँकि, इस अध्यादेश में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जो कुछ हद तक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इसके अतिरिक्त, इस अध्यादेश को तत्काल प्रख्यापित करने की परिस्थितियों की समीक्षा भी आवश्यक है।

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 का औचित्य

  • इस अध्यादेश को सामान्यता एंटी-लव जिहाद अध्यादेश भी कहा जाता है। इस अध्यादेश के लिये तात्कालिक परिस्थितियों पर अगर विचार किया जाए तो ऐसी विशेष परिस्थितियाँ दृष्टिगत नहीं होती।
  • अगर यह अध्यादेश छलपूर्वक, बलप्रयोग, अनुचित प्रभाव, दबाव, प्रलोभन एवं धोखाधड़ी के माध्यम से होने वाले विवाह का प्रतिषेध करता है तो इसके लिये वर्तमान अध्यादेश की आवश्कता नहीं थी, क्योंकि इस संबंध में तो पहले से ही पुलिस को यह शक्ति प्राप्त है कि वह ऐसे विवाहों को रोके।
  • साथ ही, राज्य सरकार के पास भी ऐसा निगरानी तंत्र विद्यमान है जिससे उसे बलपूर्वक या धोखाधड़ी से होने वाले सामूहिक धर्मांतरण की जानकारी पहले से ही होती है, अतः इसे भी आवश्यक कार्यवाई से रोका जा सकता है।
  • इस बात की संभावना अत्यंत क्षीण है कि बड़े पैमाने पर धर्मांतरण गुप्त और एक साथ होंगे, हालाँकि अगर ऐसा होता है तो भी मौजूदा कानूनी प्रावधानों को लागू करके सतर्क पुलिस बल द्वारा इन्हें रोका भी जा सकता है।
  • अगर तत्काल परिस्थितियों को देखें तो हाल के कुछ समय में ऐसी कोई भी घटना प्रकाश में नहीं आई जिसमें दर्जनों या सैंकड़ो अंतर-धार्मिक विवाह एक साथ हुए हों। ऐसे में यह अध्यादेश तत्काल कार्यवाही की आवश्कता को न्यायोचित नहीं ठहराता है।

प्रावधान और उनका प्रभाव 

  • इस कानून की धारा 3 के द्वारा गैर-कानूनी तरीकों एवं धोखाधड़ी या विवाह के माध्यम से धर्मांतरण को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाने के साथ-साथ कारावास का प्रावधान किया गया है। जबरदस्ती या धोखाधड़ी से धर्मांतरण का समर्थन नहीं किया जाना चाहिये और इसे रोकने के लिये कानूनी प्रावधान होने भी चाहिये, परंतु विवाह के माध्यम से होने वाले धर्मांतरण को अपराध मनना उचित प्रतीत नहीं होता।
  • दो व्यस्क अगर आपसी सहमती से अंतर-धार्मिक विवाह करते हैं और विवाह से पूर्व या विवाह उपरांत दोनों में से कोई एक धर्मांतरण करता है अर्थात् यदि पत्नी, पति का धर्म अपनाती है या पति, पत्नी का धर्म अपनाता है तो इससे राज्य को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।
  • इस अध्यादेश में उल्लेखित ‘धर्मांतरण का प्रयास’, अधिकारों से संबंधित एक गंभीर मुद्दा है। धारा 7 के अनुसार, अगर धर्मांतरण से संबंधित कोई सूचना (वह सूचना गलत भी हो सकती है) प्राप्त होती है तो एक पुलिस अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश तथा वारंट के बिना ही इस तर्क के आधार पर धर्मांतरण का प्रयास करने वाले को गिरफ्तार कर सकता है कि बिना इस व्यक्ति को गिरफ्तार किये धर्मांतरण को रोकना असंभव है।
  • सूचना की प्रकृति में किसी प्रलोभन, लालच या उपहार को भी शामिल किया गया है, अर्थात् अगर सूचना में यह बताया गया है कि किसी व्यक्ति ने किसी दुसरे को व्यक्ति को धर्मांतरण के लिये किसी प्रकार का उपहार दिया है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। साथ ही, उस व्यक्ति के परिवार के सदस्यों या मित्रों को भी उसका साथ देने के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • कोई व्यक्ति धर्मांतरण करना चाहता है परंतु विवाह नहीं करना चाहता तो उस व्यक्ति को एक घोषणा के माध्यम से योजना के दो महीने पहले ज़िला मजिस्ट्रेट (DM) को सूचित करना होगा तथा धारा 8 के तहत डी.एम. पुलिस को धर्मांतरण के वास्तविक उद्देश्य की जाँच करने का आदेश देगा। ऐसे में यह प्रश्न खड़ा होता है कि अगर पुलिस धर्मांतरण के वास्तविक उद्देश्यों की पहचान नहीं कर पाती तो क्या व्यक्ति धर्मांतरण नहीं कर सकेगा?
  • धारा 9 तहत धर्मांतरण के वास्तविक उद्देश्य की जाँच पूरी होने के बाद व्यक्ति को धर्मांतरण की सूचना डी.एम. को देनी होगी और डी.एम. इस सूचना को पुष्टि होने तक कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करेगा। हालाँकि इस सूचना से अगर किसी व्यक्ति को कोई आपत्ति होगी तो इसके लिये क्या प्रावधान किये गए हैं, इसका उल्लेख अध्यादेश में नहीं किया गया है।
  • धारा 12 में यह प्रावधान किया गया है कि धर्मांतरण किसी प्रलोभन एवं धोखाधड़ी के कारण नहीं बल्कि स्वेछा से किया गया है, इस बात को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी धर्मांतरण करवाने वाले पर होगी न कि धर्मांतरण करने वाले पर, तो ऐसे में यह प्रश्न विचारणीय है कि धर्मांतरण करवाने वाला व्यक्ति भला किस प्रकार दुसरे व्यक्ति के मनोभावों को बता सकता है।

अध्यादेश के नकरात्मक प्रभाव

  • अध्यादेश के कुछ नकरात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे- झूठे मुकदमें करने के लिये डराना-धमकाना, मनमानी गिरफ्तारी और धर्मांतरण करने व करवाने वाले का शोषण आदि।
  • यह अध्यादेश कई मायनों में असंगत तथा अस्पष्ट है। साथ ही, यह सभी अंतर-धार्मिक विवाहों की पुष्टि करता है और वयस्कों द्वारा अपनी पसंद के विवाह करने की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाता है।
  • यह एक प्रकार से निजता के अधिकार का हनन करता है और जीवन, स्वतंत्रता एवं गरिमा के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।

क्या वर्तमान प्रख्यापित अध्यादेश आवश्यक शर्तों को पूरा करते हैं?

  • हाल ही में, ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये आयोग अध्यादेश’ में तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता के लिये चार पृष्ठ का औचित्य दिया गया था, जबकि ‘कृषि उत्पादन व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश, 2020 में केवल प्रस्तावना में कहा गया था कि अध्यादेश क्या प्रदान करता है, लेकिन तत्काल कार्यवाही के लिये परिस्थितियों का उल्लेख नहीं किया था।
  • ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध  अध्यादेश, 2020’ में केवल यह बताया गया कि यह  अध्यादेश क्या प्रदान करता है, अर्थात् इसमें केवल यह बताया गया कि एक धर्म से दुसरे धर्म में विवाह करने के लिये छलपूर्वक, बलप्रयोग, अनुचित प्रभाव, दबाव, प्रलोभन एवं धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन प्रतिषेध होगा। इसमें भी अध्यादेश के लिये आवश्यक परिस्थतियों का उल्लेख नहीं किया गया।
  • एक लोकतांत्रिक देश में यह आवश्यक है कि किसी भी अध्यादेश को, विधानमंडल में सत्र न होने पर, इसे प्रख्यापित करने की परिस्थिति बताई जानी चाहिये। इससे कानून में पारदर्शिता बढ़ेगी और परिस्थिति की गंभीरता का भी अनुमान लगाया जा सकेगा।

अध्यादेश प्रख्यापित करने संबंधी संवैंधानिक प्रावधान : 

 अध्यादेश प्रख्यापित करने संबंधी राष्ट्रपति की शक्ति

  • राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के आधार पर उस परिस्थिति में अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा, जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों और किसी समय राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिसके कारण तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक हो गया है। [अनु. 123  (1) ]
  • अनुच्छेद 123(2) के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के अधिनियम का होता है, किंतु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश –
    • संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुनः समवेत (Reassemble) होने की तिथि से छः सप्ताह की अवधि तक प्रभावी होगा, यदि छः सप्ताह के पूर्व संसद उसके अनुमोदन का संकल्प पारित न कर दे। 
    • ऐसा कोई भी अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकेगा। 
  • अनुच्छेद 123(3) के अनुसार, यदि कोई अध्यादेश ऐसा उपबंध करता है जिसे अधिनियमित करने की शक्ति संसद के अधीन नहीं है तो वह अध्यादेश शून्य होगा।

 अध्यादेश प्रख्यापित करने संबंधी राज्यपाल की शक्ति

  • अनुच्छेद 213 (1) के अनुसार, उस समय को छोड़कर, जब किसी राज्य की विधानसभा सत्र में हो, या विधान परिषद् वाले राज्य में विधानमंडल के दोनों सदन सत्र में हों, यदि किसी समय राज्यपाल को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, जिनके लिये यह आवश्यक है कि वे तत्काल कार्यवाही करें, तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उन परिस्थितियों के अनुकूल हों।
  • अर्थात् राज्यपाल द्वारा किसी अध्यादेश को  प्रख्यापित  करने के लिये तीन पूर्व शर्तें अनिवार्य हैं- 
    • राज्य विधानमंडल सत्र में नहीं होना चाहिये
    • परिस्थितियाँ ऐसी हों जिन पर तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता हो।

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR