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जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में ओज़ोन संधि

(प्रारंभिक परीक्षा- पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 :संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।)

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये ‘ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों’ से संबंधित ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ के तहत किये गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को स्वीकृति दे दी है। इस संशोधन को अक्तूबर 2016 में रवांडा की राजधानी किगाली में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक के दौरान अपनाया गया था।

आवश्यकता

  • किगाली संशोधन, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन या एच.एफ.सी. ‘एयर कंडीशनिंग, रेफ्रिजरेशन और फर्निशिंग फोम’ उद्योग में बड़े पैमाने पर उपयोग किये जाने वाले रसायनों के  ‘क्रमिक फेज-डाउन’ को सक्षम बनाता है।
  • एच.एफ.सी. वैश्विक उष्मन के संदर्भ में कार्बन डाइऑक्साइड से भी प्रभावशाली माना जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली 22 एच.एफ.सी. की औसत वैश्विक उष्मन क्षमता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में लगभग 2,500 गुना अधिक है।
  • उक्त संशोधन वर्ष 2019 की शुरुआत से ही लागू हो गया है, लेकिन इसकी पुष्टि का निर्णय इस वर्ष नवंबर में ग्लासगो में होने वाले ‘वार्षिक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन’ की पृष्ठभूमि में किया गया है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल

  • वर्ष 1989 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ऊपरी वायुमंडल की ओजोन परत को संरक्षित करने के लिये किया गया था।
  • यह समझौता मूलतः जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध नहीं किया गया था। इस समझौते के अंतर्गत प्रतिबंधित रसायन ‘क्लोरोफ्लोरोकार्बन या सी.एफ़.सी.’ ऊपरी वायुमंडल की ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचा रहे थे।
  • उनके व्यापक उपयोग से ओज़ोन परत का ह्रास हुआ और अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर एक वृहत् ‘ओजोन छिद्र’ का निर्माण हुआ था।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने सी.एफ़.सी. और अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) के पूर्ण समापन को अनिवार्य कर दिया था।
  • सी.एफ़.सी. को धीरे-धीरे प्रतिस्थापित किया गया; पहले एच.सी.एफ.सी. या हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन और अंततः एच.एफ.सी., जिनका ओजोन परत पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है।

एच.एफ.सी. गैस

  • एच.एफ.सी. ओजोन परत के लिये नुकसानदायक नहीं है, लेकिन यह एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  • नई सहस्राब्दी में वैश्विक उष्मन सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों के रूप में उभरने के कारण एच.एफ.सी. का उपयोग भी जाँच के दायरे में आ गया।
  • एच.एफ.सी. अभी भी कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक छोटा हिस्सा है, लेकिन एयर कंडीशनिंग की माँग में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण इसका उपयोग हर वर्ष लगभग 8 प्रतिशत बढ़ रहा है।
  • चूँकि एच.एफ.सी. ओज़ोन-क्षयकारी नहीं है, इसलिये यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित पदार्थ नहीं था।
  • इसके उत्सर्जन को वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल और वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के माध्यम से कम करने की माँग की गई थी।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, जलवायु परिवर्तन समझौतों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी और सफल रहा है। इसके परिणामस्वरूप पहले ही 98.6 प्रतिशत ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा चुका है।
  • तदनुसार, यह निर्णय लिया गया कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का उपयोग एच.एफ.सी. को भी चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिये किया जाए। इसके लिये मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन की आवश्यकता थी।

किगाली संशोधन

  • वर्ष 2016 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित पदार्थों की सूची में एच.एफ.सी. को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की और इसके क्रमिक समापन के लिये एक कार्यक्रम निर्धारित किया गया।
  • इस सदी के मध्य से पहले, वर्तमान एच.एफ.सी. के उपयोग को कम से कम 85 प्रतिशत तक कम करना है। ऐसा करने के लिये देशों द्वारा अलग-अलग समय-सीमा नियत की गई है।
  • भारत को यह लक्ष्य वर्ष 2047 तक प्राप्त करना है, जबकि विकसित देशों को इसे वर्ष 2036 तक प्राप्त करना है। चीन और कुछ अन्य देशों का लक्ष्य वर्ष 2045 तक है।
  • विकसित देश को कटौती तुरंत शुरू करनी होगी, जबकि भारत तथा कुछ अन्य देश वर्ष 2031 से अपने एच.एफ.सी. उपयोग में कटौती शुरू करेंगे।
  • यदि इस समझौते को सफलतापूर्वक लागू किया जाता है तो किगाली संशोधन से इस सदी के अंत तक वैश्विक उष्मन में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस वृद्धि को रोकने में सहायता मिलेगी।
  • सी.एफ़.सी. ओज़ोन-क्षयकारी होने के अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसें भी हैं। उसके समापन ने वर्ष 1990 से 2010 के मध्य अनुमानित 135 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्ष उत्सर्जन को पहले ही टाल दिया है।
  • यह मौजूदा वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का तीन गुना है। यू.एन.ई.पी. का अनुमान है कि किगाली संशोधन के कारण सदी के अंत तक 420 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन को टाला जा सकता है।

भारत के प्रयास

  • भारत ने किगाली संशोधन संबंधी बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी। इस समझौते को घरेलू उद्योगों के लिये महत्त्वपूर्ण माना गया, क्योंकि उद्योग अभी भी एच.सी.एफ.सी. से एच.एफ.सी. एक संक्रमण प्रक्रिया में हैं। 
  • गौरतलब है कि एच.एफ.सी. का जलवायु-अनुकूल विकल्प अभी तक कम लागत पर व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है।
  • किगाली संशोधन के मुख्य वास्तुकारों में से एक होने के बावजूद भारत इसकी पुष्टि करने वाला अंतिम प्रमुख देश है।
  • हालाँकि, भारत ने शीतलन उद्योग के लिये एक ‘महत्त्वाकांक्षी कार्य योजना’ का अनावरण किया, जो एच.एफ.सी. के फेज़-आउट की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

‘इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान’

  • वर्ष 2019 में जारी 20 वर्षीय ‘इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान’ (ICAP) कूलिंग को ‘विकासात्मक आवश्यकता’ के रूप में वर्णित करता है और सतत् कार्यों के माध्यम से ‘भवनों से लेकर कोल्ड-चेन’ तक कूलिंग में बढ़ती माँग को पूरा करने का प्रयास करता है।
  • योजना का अनुमान है कि अगले 20 वर्षों में राष्ट्रीय शीतलन माँग आठ गुना तक बढ़ जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप एच.एफ.सी. के उपयोग में शामिल रेफ्रिजरेटर्स की माँग में पाँच से आठ गुना तक वृद्धि होगी।
  • आई.सी.ए.पी. का लक्ष्य अगले 20 वर्षों में रेफ्रिजरेटर्स की माँग को 25 से 30 प्रतिशत तक कम करना है।
  • आई.सी.ए.पी. के एक भाग के रूप में सरकार ने एच.एफ.सी. के कम लागत वाले विकल्प विकसित करने के उद्देश्य से ‘लक्षित अनुसंधान एवं विकास प्रयासों’ की भी घोषणा की है।
  • हैदराबाद स्थित ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी’ और आई.आई.टी. बॉम्बे में इस तरह के प्रयास पहले से ही संचालित है।
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